Thursday, 2 December 2021

गुरु तो ज़माने में कई मिले
पर कोई अपने मेडिकल गुरजी  
के समक्ष  ,कोई न जरा सा भी न टिके ...

कुछ ने DH में कितना  डराया 
प्रचंड खौफ में शिशु मेडिको सकपकाया 
इसलिए तो spleen के specimen को 
उसने सर खुजाते हुए suprarenal gland बतलाया ..

physio के वो लेक्चर भी गज़ब थे 
फर्राटे की अंग्रेजी से हम असहज थे 
सब सर के ऊपर से चला  गया 
आधा अधूरा ही लिखा गया ...

लिखा ? वो भी ऐसा जो बाद में 
 खुद हम से ही पढ़ा न जाये 
स्पेलिंग और घसीटे दफ्न  वाक्य 
कैसे अपना मतलब समझाए 

बायोकेमिस्ट्री के   गुरूजी 
अलग ही मिट्टी के बने थे 
ग्लूकोस का स्ट्रक्चर समझाते 
बिलकुल कुनैन से सने  थे 

हम तो  अपनी अलग ही धुन में रमे थे 
अम्ल ,क्षार की उन  मैली  हो चुकी
बोतलों के पीछे जमे थे ...
कनखियों से दूर  नज़र आ रही
सहपाठिनों में 
पूरी ईमानदारी के साथ 
अपनी अपनी  चुन रहे थे ....


माइक्रोबायोलॉजी लैब में 
एक जबरदस्त सन्नाटा
जरा सी हरकत पे
गुरुदेव ने  क्या खूब डांटा
बाद मेंअंजाम भुगतने की बात ने
हमें अन्दर तक हिलाया
होठ सी लिए हमने
जरा सा भी किसी से ना बतियाया

patho के HOD का अलग ही रौला था
धधकती आग का बड़ा सा गोला था
UG क्या PG वालों की भी दगती थी
पूरे विभाग में गज़ब की सख्ती थी

SPM वाले प्रोफेसर साहब
short attendance से डराते
बहुत शातिर हमारी प्रोक्सी पकड़ मुस्कुराते
कहते ये चाले हम से न चलो
अब पकड़ लिए गये हो तो
तुरंत मुर्गा बनो

दो ही प्रोफेसर
और दोनों ही जबर
हर बात हर हरकत की
इनको फ़ौरन खबर

वो मीठी बोली
वो कातिल मुस्कान
फोरेसिक वाले प्रोफेसर साहब की
यही तो पहचान...

फार्मा के गुरुवर हॉस्टल वर्डन बने थे
दवाओं के क्लासिफिकेशन से जटिल
सबकी समझ के परे थे
बच्चे बिना बिजली पानी के तीन दिन से बेहाल
बिल्ली के गले बांधे कौन घंटी
उठा ये सवाल ....

इन सब से अल्हेदा
क्लिनिकल साइड वाले
बिलकुल ही अलग ग्रह के प्राणी ...
अपने अपने आभा मंडल
लगते अंतर्यामी ....

अहम का टकराव 
यहाँ पर भी घूब घना था
सर्जिकल , नॉन-सर्जिकल  का
एक अघोषित खेमा बना था ...

सर्जरी के विभागाध्यक्ष
पूरे दल बल के साथ मार्निंग राउंड लगाते
तिल का ताड़ बना सबको
हपक के गरियाते ...

आंख में मोटा चश्मा
अत्यंत दुबली काया
पुरपेच लटकते गेसुओं ने
किसी शायर का आभास कराया

तभी किसी रेजिडेंट को
अपना स्कूटर देखने के लिए दौड़ाया
मेडिसिन वाले गुरूजी ने
अच्छे अच्छे को नचाया ...

हड्डी रोग विभाग तो
एकदम अलग सांचे में ढला था
यहाँ का हर एक रेजिडेंट
अपने हाव भाव से बिलकुल
प्रोफेसर लग रहा था ...

इन सबके सरदार
बड़े डॉक्टर साहब
अलग ही करतब दिखलाते
OT ड्रेस में स्कूटर चला
कॉलेज में कहीं भी पहुँच जाते ...


हाथी निकल गया , पूँछ अटक गयी
मेडिसिन सर्जरी पास
ENT ,OPHTHA में लग गयी
क्योंकि बालक की धृष्टता
गुरूजी को अखर गई...

इसलिए कभी किसी को
कम करके न आंको
जैसा ये चलाये वैसा चलो
चुपचाप अपना वक्त काटो...

हैरान परेशान ,गज़ब की मारामारी है
स्त्री एवं प्रसूति वालों के कन्धों पे
लगता है पूरे जगत की जिम्मेदारी है

लडकों के लिए सहज
लड़कियों के लिए खतरा है
गुरुआइन का  आतंक
चारो ओर पसरा है ....

कुछ शांत ,प्रशांत ,हसमुख से चेहरे  है
दूर से सबको के देख बहुते मौज ले रहे हैं
बेहोशी वाले  ,रेडियो वाले डॉक्टर अपने को कह रहे है ...
अपनी ही ब्रांच चुनने का लालच
अपने सुखमय जीवन से दे रहे हैं...












Friday, 7 February 2020

✋✋👯सबसे ज्यादा आज के दौर में अगर किसी ने विश्वसनीयता खोयी है तो वो है मीडिया , प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों ने ही ....

विरोध और पक्ष दोनों की अति ही है और अति सर्वथा वर्जयेत् ... अति किसी भी तरह से हितकारी नही हो सकती ...

समाचार पत्र और न्यूज़ चैनल मानो खबर नहीं एजेंडा चला रहे हो , अपने सोच आप पे थोपने का प्रयास है

ख़बर नहीं शोर शराबा है ,ड्रामा है ....

मुझे याद है पिताजी व् अन्य बड़े लोग बचपन में सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिए दूरदर्शन समाचार देखने की सलाह देते थे , उन दिनों 24x7 TV नही था , TV देखना पढने लिखने वालों की निशानी नही होती थे , ये बुरा माना जाता था, किसी व्यसन की तरह ....

देखने में इतनी जबरदस्त राशनिंग के बावजूद भी समाचार के समय TV खोल ही दिया जाता था ताकि सबका ज्ञानवर्धन हो सके ....आज के वक्त क्या आप ऐसी तवक्को रख रकते हैं .... जवाब एक दम ही स्पष्ट है ... एकदम नहीं ....

प्रिंट मीडिया और ज्यादा उदास और क्षुब्ध करता है ये अभी तक तथाकथित बुद्धिजीवियों की गिरिफ्त आजाद नहीं हुआ ... पढ़ने का शौक रखने वालों के लिए क्या कोई विकल्प बचा है ... जवाब हैं नहीं ... वो बस मन मसोस कर ही रह जाते हैं ... गाहे बगाहे सोशल मीडिया पे कुछ लिख के अपना frustatation दूर करते है जैसा इस वक्त में कर रहा हूँ ...

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बढती लोकप्रियता और सहजता ने वैसे ही आजकल बच्चो को किताबो/अख़बारों /पत्र-पत्रिकओं से दूर कर रखा है , कॉलेज आदि में परंपरागत पढाई के तौर तरीके तेजी से बदल रहें हैं ...
अब e- book ,PPT, you tube video और app based study का जमाना है ....

अख़बार आजकल headline पढने के बाद ही रद्दी हो जाता हैं ....

मीडिया पे आजकल विश्वनीयता खोने , सोशल मीडिया के फैलाव की दो तरफ़ा मार है ....

अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब ये सब इतिहास के कूड़ेदान में निस्तेज पड़े होंगे ....

इसका कोई हल फिलहाल मुझे सुझाई नही दे रहा अगर आपके पास हो तो मार्गदर्शन करें

Saturday, 14 September 2019

रीयूनियन की पैकिंग ....
२५ साल हो गये ...पता ही नहीं चला समय कैसे बीत गया ...सहपाठी के फोन पे प्रदत्त सूचना ने जैसे मुझे एका एक ही २५ वर्ष पीछे धकेल दिया ...
जेहन में कई मिश्रित से भाव थे ... कॉलेज जाने और पुराने संगी साथियों से इतने वर्ष उपरान्त एकसाथ मिलने का रोमांच तो था पर इस बड़े खर्चे. इतनी दूर के सफर और उससे जुडी तैयारियों को लेकर थोड़ी असहजता भी थी , अकेले जाऊं कि सपरिवार ...फैसला नहीं ले पा रहा था ... अभी समय काफी था इसलिए निर्णायक सोच को फ़िलहाल के लिए मुल्तवी किया जा सकता था ....
धर्मपत्नी से जिक्र हुआ तो तुरंत ही परामर्श का चुभता हुआ नश्तर निकल चुका था ... ये परामर्श कम और खीज मिश्रित, सीख/शिकायत सा था ...
रीयूनियन में जा रहे तो जरा ढंग से जाना , ऐसे जैसे हरदम बने रहते हो ऐसे तो बिलकुल भी न जाना ... जरा ढंग के कपडे ले लेना , अपनी ये फटीचर सैंडल जिन्हें तुम पहनकर यहाँ वहां टूला करते हो हरगिज भी न ले जाना ...
ढंग का बैग खरीद लो... उस सड़े गले उधड़ते अपनी शादी के समय खरीदे बैग से अब तो तौबा कर लो ... ख़बरदार उसको ले जाकर हमारी नाक न कटाना ...
खैर तुम्हारी पार्टी मुझे क्या ....मेरा सुना भी कब है तुमने ... मै सिर्फ बोलती रहतीहूँ तुम्हारी कान में तो जूं भी नहीं रेगती ... मै और बच्चे नहीं आ रहे ... तुम अपने दोस्तों के साथ दारू पीकर मस्त रहों ... हम तुम्हारे जश्न में खलल नहीं डालने वाले ...
न खाया न पीया ... गिलास तोडा बारह आना .... श्रीमती जी की बात कुछ कुछ समझ में आ चुकी थी ... मित्रो के साथ की गई अभी हाल में दारू पार्टी का बिल उनके द्वारा आज फाड़ा जा रहा था ....
साथ साथ मेरे मन में भी सर के बाल से लेकर पैर की छोटी अंगुली के नाख़ून तक को बदलने के अनेक परामर्श आ जा रहे थे .... मोबाइल , गाड़ी और वस्त्र तो जनाब छोटी मोटी चीजे हैं यहाँ तो फितरत और आदतें बदलने पर भी जोर अजमाइश चल रही थी ...
पर हम तो ठहरे विशुद्ध कनपुरिये थोड़ी ही देर बाद तमाम भौतिक साधनों से इतर अपना दिल कुछ और ही उधेड़बुन में मसरूफ था .... साला और कुछ चाहे लू न लू ... कम से कम एक क्रैट अच्छी दारू तो रखनी पड़ेगी ही ...
ये पुनर्मिलन है ... कोई शक्ति प्रदर्शन तो नही ... मै वही पुराना २५ साल वाला ही बनके अपने साथियों से मिलूँगा जिस आधार पे हमारी मित्रता की नीव पडी थी ....खर्चे की तो कोई भी सीमा नहीं .... खोज तो ख़ुशी की ही है ना और फकीरी में जो दरियादिली और अमीरी है वो अन्यत्र और कहाँ ...
तो सभी साथियों सभी से निवेदन है जहाँ हो जिस हाल में भी हो बस चले आओं , ये तुम्हारे खुद के बनाये सफलता और असफलता की मानक व्यर्थ है ... इनको अपने पैरों की बेड़ियाँ न बनने दो ...
खुशी और संतोष ही सबसे बड़ी सफलता है और ये सिर्फ और सिर्फ आपकी सोच पे निर्भर करती है
२५ साल बाद फिर से मिलने का सौभाग्य और सुअवसर प्राप्त हुआ है इसे दोनों हाथों से लपक लो...
SILVER JUBILEE (ENTRY) PARA O1

Thursday, 13 June 2019

४० के पार हर जन्मदिन विशेष है ... बढती उम्र की टीस तो है पर इसके साथ साथ है अपने खुशनसीब होने का अहसास भी ... ईश्वर कृपा से हमने ये पड़ाव भी पार कर लिया और माँ- बाप की छत्र छाया  अभी भी हमारे ऊपर है , परिवार और इष्टमित्रों का भरपूर स्नेह और आशीर्वाद भी मिल रहा है ....

सभी शुभचिंतको का इस दिन को अपनी मंगलकामनाओ और विशेष बनाने के कोटि कोटि धन्यवाद.... आपकी ये भावनाये अनमोल हैं....

Saturday, 8 June 2019

बचपन से ही अनुशासन में जिये , चीज़े उपलब्ध तो हुई पर इफ़रात में नहीं ... एक मध्यमवर्गी परिवार अब इसे निम्न ,मध्य या उच्च में और तकसीम न कीजिये ... सिर्फ मध्यमवर्गी ही रहने दीजिये ...पिताजी नौकरीपेशा माँ गृहकार्यों में दक्ष गृहलक्ष्मी ... पिताजी की इमेज जेठ के तपते सूर्य जैसी तो मां उससे बचाती ठंडी पुरवा , अषाढ़ का मेघ जो तुरंत शीतलता देता और साथ ही साथ अच्छी बातों और संसकारों से सींच देता ...

पिताजी के एक ध्येय वाक्य को अक्सर सुना करते ... पढ़ लिख लो .. आगे अच्छा करोंगे तो अपने लिए ही करोगे और पढाई के अलावा तुम्हारे पास कोई विकल्प है भी नही ... न हमारे पास पैसा है और ना ही व्यापार ...

बचपन और तरुणाई में न जाने कितनी छोटी बड़ी इच्छाओ , अभिलाषाओं का दमन हुआ ... इस करके नहीं कि साधन नहीं थे बल्कि इस सोच के साथ कि विद्यार्थी जीवन कहीं अपने गंतव्य से भटक न जाये ... अपने अनुभवों और समाज में सुनी सुनाई बातों पर पिताजी के अपने तर्क थे जो शत प्रतिशत सत्य तो नहीं पर काफी हद तक देश काल और परिस्थिति वश उचित थे ...

खैर तमाम उपकरणीय व्यवधानों वंचित विद्यार्थी जीवन अपनी राह खोज ही बैठा और हम कुछ कर पाए पर दिमाग के किसी कौने में वो दबी कुचली लालसायें जो अनुशासन और आर्थिक निर्भरता के कारण अबतक सुसुप्त पडी थी ....जागने लगी ...

हालाँकि माँ पिताजी की मितव्ययी होने की सीख अभी भी थी पर हाथ में आये नए नए पैसे के आगे वो इतनी प्रभावी न थी ... अधीर मन जैसे किसी पाश के मुक्त हुआ जो बस उचित अनुचित में भेद न कर बाजारवाद के प्रलोभनों पे सवार ऊँची उड़ान भरने को आतुर ...

अब चीजों को सहेज कर रखने से ज्यादा उनकों खरीदने पे जोर था ... जरुरती और गैरजरूरती का भेद ... हम कंजूस नही ... इतना तो हम कर ही सकते हैं के आगे विलुप्त सा हो गया ... भरा घर और भरता चला गया ... पुरानी अच्छी बातें नित्य नए ख़र्चों के नीचे दबती चली गईं...

और इन सब का सबसे ज्यादा खामियाजा उठाया हमारी संतानों ने जो इस ऐशो आराम को ही जीवन का शाश्वत सत्य मान बैठी और अकर्मण्य हो गई ... कभी कभी गुस्से में आपे से बाहर हो झुंझला के हमारा ये कहना कि तुम्हारी उम्र में मुझे ये नसीब न था और मै मेहनत किया करता था एक क्षणभंगुर पानी के बुलबुले से ज्यादा कुछ और नही ..

बबूल हमारे गलत निर्णयों और अहं में पनप चुका है आम की दरकार अब उचित नहीं ...

घोर निराशावादी प्रतीत हो रहा हैं ना ये सब ... क्या अब कुछ नहीं हो सकता ...क्यों नहीं हो सकता बिलकुल हो सकता है बशर्ते आप अपनी गलती स्वीकारें और मूल में लौट चले ... वृक्ष कितना भी विशाल , हराभरा , फलदार क्यों न हो अगर अपनी जड़ों से कट गया तो निश्चित ही सूख जायेगा ...
*बच्चे अपने दादा दादी , नाना नानी के साथ समय जरुर व्यतीत करें , अनुभवों और संस्कारों का ये खजाना / पाठशाला बेशकीमती है ...

*अपनी कमाई और खर्चों की खुलम-खुल्ला चर्चा बच्चों के सामने न करें .. .

* संतुलित और नियमित दिनचर्या जी के बच्चों के आगे नजीर प्रस्तुत करें उन्हें केवल उपदेश न दें ...

* मदिरा / सिगरेट आदि का सेवन बच्चों के सामने कभी न करें ...

*घर के छोटे बड़े काम खुद भी करें और बच्चों को भी इसमें सम्मलित करें

*अपने संघर्षों के प्रतीक अपने स्कूल /कॉलेज / छात्रावास / किराये के कमरे के दर्शन अपने बच्चों को जरुर करायें

* बच्चों के सम्मुख उनके स्कूल / टीचर की बुराई कभी न करें ..
*चीजों की अहमियत समझाए ... कुछ भी तुरंत खरीद के न दे दें
* प्रातः और संध्याकालीन दीया जलाएँ और आरती करें और बच्चों को इसमें भागीदार अवश्य बनाये....

एक बात जान लीजिये कमाई के तौर तरीके अनगिनत है पर आपकी क्षमता सीमित .... असली निवेश आपकी संतान ही है उनको भरपूर समय दें ...

पैसे की शक्ति इसमें नहीं के आप क्या क्या खरीद सकते हैं .वो तो कोई भी कर सकता है .. आपकी बड़ी हुई हैसियत एक जिम्मेदारी है ,एक संयम है जिसमें कि आप विवेकशील हो शान्त भाव उचित -अनुचित / जरूरती -गैर जरूरती में भेद कर सके...

सब कुछ बच्चों पे जोर जबरदस्ती से नाफ़िज नहीं किया जा सकता , अच्छे कार्यकलापों और संस्कारों से उनमें सोच विकसित करें जिससे वो स्वयं ही सही गलत के निर्णय लेने के काबिल बन सकें...

Friday, 26 April 2019

नाथ शंभु धनु भंजन हारा, होईये कोऊ इक दास तुम्हारा

सीता स्वयंवर के समय प्रभु राम ने उस शिव धनुष जिसे बांकी राजा लोग टस से मस भी नहीं कर पा रहे थे , फूल की भांति उठा क्षण भर में ही खंडित कर दिया ..

आकाश में तेज गर्जना के साथ ,आंधी तूफान की तरह भगवान परशुराम तुरंत ही स्वयंवर स्थल 'मिथिला' में आ धमके और कोड़ों से वे सभी राजाओं-सेवकों को पीटते जा रहे थे और इसी तरह वे मंच पर जा चढ़े। यहां परशुरामजी ने ललकार कर पूछा कि ये शिवजी का धनुष किसने तोड़ा। तब लक्ष्मणजी से उनका वाद-विवाद हो गया।

इस पर भगवान राम ने बीच में आकर कहा कि- नाथ शंभु धनु भंजन हारा, हाईये कोऊ एक दास तुम्हारा। भगवान राम के श्रीमुख से खुद के लिए ऐसे सम्मान भरे सरल वचन सुनकर भगवान परशुराम का क्रोध शांत हुआ। क्योंकि रामजी ने परशुरामजी से कह दिया था कि हे प्रभु! भगवान शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा....


मर्यादा पुरषोत्तम प्रभु राम ने मानव शरीर धर के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में कैसा आचरण हो इसके अनेकानेक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किये ... ऐसा आप भी करें , समूह में चर्चा या वाद विवाद के दौरान अपने मस्तिष्क पे क्रोध को हावी न होने दें .... वरिष्ठों की गलत बात का जरुर खंडन करें लेकिन विनय का दामन न छोड़े ... 

Tuesday, 16 April 2019

एक कमाल के मनोरोग चिकित्सक , बीमारी पे गज़ब की पकड़ , आला दर्जे  की डायग्नोसिस , अजी  परचा नहीं रामबाण कहिये , एक बार जो नुस्खा लिख दिया समझ लो बीमारी तीतर हो ली.... गज़ब की भीड़ होती थी डॉक्टर साहब की OPD में , एक दम रेलम पेल मची रहती थी , लेकिन डॉक्टर साहब थे बिलकुल अनुशासनप्रिय , सब मरीजों को  उनके आने के क्रम से ही  देखते , किसी की मजाल जो लाइन तोड़ के पहले घुस ले ...

सारे अर्दली ,चपरासी,JRs उनके इस मिजाज से भली भांति वाकिफ थे सो सभी इस बात को ensure करने की भरसक कोशिश करते कि बड़े डॉक्टर साहब के बनाये हुए कायदे कानूनों का अक्षरक्ष पालन हो ... नियमों का टूटना मतलब ज्वालामुखी विस्फोट , विभाग की शांति तो भंग होगी  ही और बहते लावे की जद सभी आयेंगे ,कोई नही बचेगा ...

लेकिन दुर्घटना से भला कौन बचा है ... एक दिन OPD में मची भसड के दौरान के मरीज लाइन तोड़ने की गुस्ताखी कर बैठा और डॉक्टर साहब के नज़दीक अपना परचा लिए पहुँच गया.... इसके पहले कि वो कुछ बोल पाता  प्रोफेसर साहब जो बेशुमार मरीजो की मार से पहले ही तिलमिलाए बैठे थे हत्थे से उखड लिए , कलम पटक दी गयी , कुर्सी पीछे धेकेल दी गयी , हाथ में पकडे परचे हवा हवाई हो गये , नथुने फुलाते हुए ,सर झटकते हुए , मेज पे जोरों से हाथ पटकते हुए दहाड़ते हुए बोले ....@#$% MC&*BC $$MKB ,BOSS.DK निकल बाहर... तेरी जुर्ररत कैसे हुई लाइन तोड़ने की ....

ये आपातकाल था ...सब के सब स्थिति सँभालने हेतु दौड़ पड़े , किसी अनहोनी के मद्देनज़र  मरीज को फुंकारते प्रोफेसर साहब की रेंज से  तुरंत  दूर किया गया ...

अब बोलने की बारी अपशब्दों के माउंट एवेरेस्ट के नीचे दबे मरीज की थी ... २ हफ्ते पहले जिस स्थिति में इस समय डॉक्टर साहब है बिलकुल DITTO ऐसी ही मेरी हालत थी , उस समय डॉक्टर साहब ने मुझे जंजीर से बाँधने , बिजली के झटके और कमरे में बंद करने के परामर्श दे डाले थे , मै तो ठीक हो गया पर लगता है मेरी बीमारी डॉक्टर साहब को लग गयी है अब इनका भी इलाज कराओ ...

मैंने कोई लाइन नहीं तोड़ी है , मई तो बस इतना पूछने आया था कि अगर नंबर आने में देर है तो तब तक तक मै चाय पी आता हूँ ....

सुना है लम्बे अरसे से साथ रहते रहते पति पत्नी की सूरत आपस में मिलने लगती है और शायद यही हम डॉक्टर्स के साथ भी होता है ,ईलाज करते करते हमारा आचरण भी मरीजों जैसा ही हो जाता है और मनोरोग चिकित्सक इस मामलें में कुछ ज्यादा ही बदनाम है ....

साभार - मनीष निगम बॉस