प्रतिकर्षण
Monday, 9 September 2013
फिर से वो हिमाकत कर गया
हम में बस हिकारत भर गया
बहा के लहू सड़को पे
दाव ए सियासत चल गया.…
Friday, 6 September 2013
रजामंद तुम भी थे हम भी थे
मगर चाहत खामोश रही
खिलाफत के सामने
पशोपेश में तुम भी थे हम भी थे
बागवत हो न सकी
अपनों से अपनों के सामने…
अब भटक रहे है
तुम भी और हम भी
करार कैसे आये गैरो के सामने
Wednesday, 4 September 2013
और कितनी अपनी छीछालेदर करवाओगे ?
कब तक लोगो की लानते खाओगे?
बहुत हुआ बहानो का दौर
कहाँ तक सच को छुपाओगे ?
सारा मुल्क तो तुम चाट चुके
अब और क्या नया गुल खिलाओगे ??
सत्ता सुख बहुत भोग लिया
अब और कितना आवाम को नचाओगे ??
शांति से रुखसत लोगे
या फिर इन्कलाब से जाओगे …
Tuesday, 3 September 2013
अपनी जवानी फूल सी
और अपनों का बुढ़ापा
भार सा लगता है
जिंदगी का हर रिश्ता
तुमको व्यापार सा लगता है।
मत भूलो के
एक दिन तुम भी ढल जाओगे
जैसा बोया है तुमने
वैसा ही काट कर जाओगे …
Monday, 2 September 2013
सूली पे चढ़े
और फनाह हो गए
जुर्म कुछ भी न था
हम बस शादीशुदा हो गए
मुनासिब नहीं के
रोज तेरे दर पे आऊँ
तेरी इल्तिजा करूँ
और तुझे मनाऊँ …
इतना भी कमज़ोर नहीं
के तुझे भूल न पाऊँ
तेरी चाहत के फेर में
अपनी हस्ती ही मिटाऊँ
तेरा साथ न मिले तो न ही सही
तेरी खुदगर्ज आशिकी से बेहतर
अपना ये बेशकीमती वक्त
किसी नेक काम में लगाऊँ …
Sunday, 1 September 2013
जेबे भरी है ,बड़ी है
पर दिल छोटा है
मेरी तरक्की का
अब आलम यही है
इससे तो अच्छे थे
पुराने ग़ुरबत के दिन
जेबे खाली थी
और दिल बड़ा था
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