Thursday, 31 October 2013

कुछ तो किया जाये

कुछ तो किया जाये
फुर्सत है चलो पिया जाये
तरबतर होकर इस मैकदे में
खुदी छोड़ , फ़क़ीर हुआ जाये 

दुःखती रग दबा गए

दुःखती रग दबा गए 
सामने आये और तड़पा  गए 
ग़लतफ़हमी थी के भूल बैठे है उन्हें 
हमें बस आइना दिखा गए 




Wednesday, 30 October 2013

दर्द ए दिल की दवा नहीं 
पर मर्ज ये इतना भी बुरा नहीं 

गिरफ्त में जब इसके आओगे 
तरह-तरह के मशवरे पाओगे

वो तो शायद मिल जाये
पर तुम खुद ही खो  जाओगे 





Tuesday, 29 October 2013

अपनी इबादत का असर दिखने लगा है
कोई हमें देख अब हँसने लगा है 

इफ्तिताह ए-इश्क़  में हो गई बड़ी मुश्किल 
जमाना हम पे अब फ़िक़रे कसने लगा है 

बदनाम हुए तभी तो नाम हुआ 
उनकी रज़ा मंदी में दिल चैन से अब धड़कने लगा है 

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इफ्तिताह=शुरुआत 



Monday, 21 October 2013

एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए
दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए

भूले हैं रफ़्ता-रफ़्ता[1] उन्हें मुद्दतों में हम
किश्तों में ख़ुदकुशी[2] का मज़ा हमसे पूछिए

आगाज़े-आशिक़ी[3] का मज़ा आप जानिए
अंजामे-आशिक़ी[4] का मज़ा हमसे पूछिए

जलते दीयों में जलते घरों जैसी लौ कहाँ
सरकार रोशनी का मज़ा हमसे पूछिए

वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हमसे पूछिए

हँसने का शौक़ हमको भी था आप की तरह
हँसिए मगर हँसी का मज़ा हमसे पूछिए

हम तौबा करके मर गए क़ब्ले-अज़ल[5] "ख़ुमार"
तौहीन-ए-मयकशी[6] का मज़ा हमसे पूछिये

****ख़ुमार बाराबंकवी****
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शब्दार्थ:
1.धीरे-धीरे
2. आत्म-हत्या
3. प्रेम-आरम्भ
4.प्रेम का अंत
5.मौत से पहले
6.शराब का निरादर