Saturday, 14 September 2019

रीयूनियन की पैकिंग ....
२५ साल हो गये ...पता ही नहीं चला समय कैसे बीत गया ...सहपाठी के फोन पे प्रदत्त सूचना ने जैसे मुझे एका एक ही २५ वर्ष पीछे धकेल दिया ...
जेहन में कई मिश्रित से भाव थे ... कॉलेज जाने और पुराने संगी साथियों से इतने वर्ष उपरान्त एकसाथ मिलने का रोमांच तो था पर इस बड़े खर्चे. इतनी दूर के सफर और उससे जुडी तैयारियों को लेकर थोड़ी असहजता भी थी , अकेले जाऊं कि सपरिवार ...फैसला नहीं ले पा रहा था ... अभी समय काफी था इसलिए निर्णायक सोच को फ़िलहाल के लिए मुल्तवी किया जा सकता था ....
धर्मपत्नी से जिक्र हुआ तो तुरंत ही परामर्श का चुभता हुआ नश्तर निकल चुका था ... ये परामर्श कम और खीज मिश्रित, सीख/शिकायत सा था ...
रीयूनियन में जा रहे तो जरा ढंग से जाना , ऐसे जैसे हरदम बने रहते हो ऐसे तो बिलकुल भी न जाना ... जरा ढंग के कपडे ले लेना , अपनी ये फटीचर सैंडल जिन्हें तुम पहनकर यहाँ वहां टूला करते हो हरगिज भी न ले जाना ...
ढंग का बैग खरीद लो... उस सड़े गले उधड़ते अपनी शादी के समय खरीदे बैग से अब तो तौबा कर लो ... ख़बरदार उसको ले जाकर हमारी नाक न कटाना ...
खैर तुम्हारी पार्टी मुझे क्या ....मेरा सुना भी कब है तुमने ... मै सिर्फ बोलती रहतीहूँ तुम्हारी कान में तो जूं भी नहीं रेगती ... मै और बच्चे नहीं आ रहे ... तुम अपने दोस्तों के साथ दारू पीकर मस्त रहों ... हम तुम्हारे जश्न में खलल नहीं डालने वाले ...
न खाया न पीया ... गिलास तोडा बारह आना .... श्रीमती जी की बात कुछ कुछ समझ में आ चुकी थी ... मित्रो के साथ की गई अभी हाल में दारू पार्टी का बिल उनके द्वारा आज फाड़ा जा रहा था ....
साथ साथ मेरे मन में भी सर के बाल से लेकर पैर की छोटी अंगुली के नाख़ून तक को बदलने के अनेक परामर्श आ जा रहे थे .... मोबाइल , गाड़ी और वस्त्र तो जनाब छोटी मोटी चीजे हैं यहाँ तो फितरत और आदतें बदलने पर भी जोर अजमाइश चल रही थी ...
पर हम तो ठहरे विशुद्ध कनपुरिये थोड़ी ही देर बाद तमाम भौतिक साधनों से इतर अपना दिल कुछ और ही उधेड़बुन में मसरूफ था .... साला और कुछ चाहे लू न लू ... कम से कम एक क्रैट अच्छी दारू तो रखनी पड़ेगी ही ...
ये पुनर्मिलन है ... कोई शक्ति प्रदर्शन तो नही ... मै वही पुराना २५ साल वाला ही बनके अपने साथियों से मिलूँगा जिस आधार पे हमारी मित्रता की नीव पडी थी ....खर्चे की तो कोई भी सीमा नहीं .... खोज तो ख़ुशी की ही है ना और फकीरी में जो दरियादिली और अमीरी है वो अन्यत्र और कहाँ ...
तो सभी साथियों सभी से निवेदन है जहाँ हो जिस हाल में भी हो बस चले आओं , ये तुम्हारे खुद के बनाये सफलता और असफलता की मानक व्यर्थ है ... इनको अपने पैरों की बेड़ियाँ न बनने दो ...
खुशी और संतोष ही सबसे बड़ी सफलता है और ये सिर्फ और सिर्फ आपकी सोच पे निर्भर करती है
२५ साल बाद फिर से मिलने का सौभाग्य और सुअवसर प्राप्त हुआ है इसे दोनों हाथों से लपक लो...
SILVER JUBILEE (ENTRY) PARA O1

Thursday, 13 June 2019

४० के पार हर जन्मदिन विशेष है ... बढती उम्र की टीस तो है पर इसके साथ साथ है अपने खुशनसीब होने का अहसास भी ... ईश्वर कृपा से हमने ये पड़ाव भी पार कर लिया और माँ- बाप की छत्र छाया  अभी भी हमारे ऊपर है , परिवार और इष्टमित्रों का भरपूर स्नेह और आशीर्वाद भी मिल रहा है ....

सभी शुभचिंतको का इस दिन को अपनी मंगलकामनाओ और विशेष बनाने के कोटि कोटि धन्यवाद.... आपकी ये भावनाये अनमोल हैं....

Saturday, 8 June 2019

बचपन से ही अनुशासन में जिये , चीज़े उपलब्ध तो हुई पर इफ़रात में नहीं ... एक मध्यमवर्गी परिवार अब इसे निम्न ,मध्य या उच्च में और तकसीम न कीजिये ... सिर्फ मध्यमवर्गी ही रहने दीजिये ...पिताजी नौकरीपेशा माँ गृहकार्यों में दक्ष गृहलक्ष्मी ... पिताजी की इमेज जेठ के तपते सूर्य जैसी तो मां उससे बचाती ठंडी पुरवा , अषाढ़ का मेघ जो तुरंत शीतलता देता और साथ ही साथ अच्छी बातों और संसकारों से सींच देता ...

पिताजी के एक ध्येय वाक्य को अक्सर सुना करते ... पढ़ लिख लो .. आगे अच्छा करोंगे तो अपने लिए ही करोगे और पढाई के अलावा तुम्हारे पास कोई विकल्प है भी नही ... न हमारे पास पैसा है और ना ही व्यापार ...

बचपन और तरुणाई में न जाने कितनी छोटी बड़ी इच्छाओ , अभिलाषाओं का दमन हुआ ... इस करके नहीं कि साधन नहीं थे बल्कि इस सोच के साथ कि विद्यार्थी जीवन कहीं अपने गंतव्य से भटक न जाये ... अपने अनुभवों और समाज में सुनी सुनाई बातों पर पिताजी के अपने तर्क थे जो शत प्रतिशत सत्य तो नहीं पर काफी हद तक देश काल और परिस्थिति वश उचित थे ...

खैर तमाम उपकरणीय व्यवधानों वंचित विद्यार्थी जीवन अपनी राह खोज ही बैठा और हम कुछ कर पाए पर दिमाग के किसी कौने में वो दबी कुचली लालसायें जो अनुशासन और आर्थिक निर्भरता के कारण अबतक सुसुप्त पडी थी ....जागने लगी ...

हालाँकि माँ पिताजी की मितव्ययी होने की सीख अभी भी थी पर हाथ में आये नए नए पैसे के आगे वो इतनी प्रभावी न थी ... अधीर मन जैसे किसी पाश के मुक्त हुआ जो बस उचित अनुचित में भेद न कर बाजारवाद के प्रलोभनों पे सवार ऊँची उड़ान भरने को आतुर ...

अब चीजों को सहेज कर रखने से ज्यादा उनकों खरीदने पे जोर था ... जरुरती और गैरजरूरती का भेद ... हम कंजूस नही ... इतना तो हम कर ही सकते हैं के आगे विलुप्त सा हो गया ... भरा घर और भरता चला गया ... पुरानी अच्छी बातें नित्य नए ख़र्चों के नीचे दबती चली गईं...

और इन सब का सबसे ज्यादा खामियाजा उठाया हमारी संतानों ने जो इस ऐशो आराम को ही जीवन का शाश्वत सत्य मान बैठी और अकर्मण्य हो गई ... कभी कभी गुस्से में आपे से बाहर हो झुंझला के हमारा ये कहना कि तुम्हारी उम्र में मुझे ये नसीब न था और मै मेहनत किया करता था एक क्षणभंगुर पानी के बुलबुले से ज्यादा कुछ और नही ..

बबूल हमारे गलत निर्णयों और अहं में पनप चुका है आम की दरकार अब उचित नहीं ...

घोर निराशावादी प्रतीत हो रहा हैं ना ये सब ... क्या अब कुछ नहीं हो सकता ...क्यों नहीं हो सकता बिलकुल हो सकता है बशर्ते आप अपनी गलती स्वीकारें और मूल में लौट चले ... वृक्ष कितना भी विशाल , हराभरा , फलदार क्यों न हो अगर अपनी जड़ों से कट गया तो निश्चित ही सूख जायेगा ...
*बच्चे अपने दादा दादी , नाना नानी के साथ समय जरुर व्यतीत करें , अनुभवों और संस्कारों का ये खजाना / पाठशाला बेशकीमती है ...

*अपनी कमाई और खर्चों की खुलम-खुल्ला चर्चा बच्चों के सामने न करें .. .

* संतुलित और नियमित दिनचर्या जी के बच्चों के आगे नजीर प्रस्तुत करें उन्हें केवल उपदेश न दें ...

* मदिरा / सिगरेट आदि का सेवन बच्चों के सामने कभी न करें ...

*घर के छोटे बड़े काम खुद भी करें और बच्चों को भी इसमें सम्मलित करें

*अपने संघर्षों के प्रतीक अपने स्कूल /कॉलेज / छात्रावास / किराये के कमरे के दर्शन अपने बच्चों को जरुर करायें

* बच्चों के सम्मुख उनके स्कूल / टीचर की बुराई कभी न करें ..
*चीजों की अहमियत समझाए ... कुछ भी तुरंत खरीद के न दे दें
* प्रातः और संध्याकालीन दीया जलाएँ और आरती करें और बच्चों को इसमें भागीदार अवश्य बनाये....

एक बात जान लीजिये कमाई के तौर तरीके अनगिनत है पर आपकी क्षमता सीमित .... असली निवेश आपकी संतान ही है उनको भरपूर समय दें ...

पैसे की शक्ति इसमें नहीं के आप क्या क्या खरीद सकते हैं .वो तो कोई भी कर सकता है .. आपकी बड़ी हुई हैसियत एक जिम्मेदारी है ,एक संयम है जिसमें कि आप विवेकशील हो शान्त भाव उचित -अनुचित / जरूरती -गैर जरूरती में भेद कर सके...

सब कुछ बच्चों पे जोर जबरदस्ती से नाफ़िज नहीं किया जा सकता , अच्छे कार्यकलापों और संस्कारों से उनमें सोच विकसित करें जिससे वो स्वयं ही सही गलत के निर्णय लेने के काबिल बन सकें...

Friday, 26 April 2019

नाथ शंभु धनु भंजन हारा, होईये कोऊ इक दास तुम्हारा

सीता स्वयंवर के समय प्रभु राम ने उस शिव धनुष जिसे बांकी राजा लोग टस से मस भी नहीं कर पा रहे थे , फूल की भांति उठा क्षण भर में ही खंडित कर दिया ..

आकाश में तेज गर्जना के साथ ,आंधी तूफान की तरह भगवान परशुराम तुरंत ही स्वयंवर स्थल 'मिथिला' में आ धमके और कोड़ों से वे सभी राजाओं-सेवकों को पीटते जा रहे थे और इसी तरह वे मंच पर जा चढ़े। यहां परशुरामजी ने ललकार कर पूछा कि ये शिवजी का धनुष किसने तोड़ा। तब लक्ष्मणजी से उनका वाद-विवाद हो गया।

इस पर भगवान राम ने बीच में आकर कहा कि- नाथ शंभु धनु भंजन हारा, हाईये कोऊ एक दास तुम्हारा। भगवान राम के श्रीमुख से खुद के लिए ऐसे सम्मान भरे सरल वचन सुनकर भगवान परशुराम का क्रोध शांत हुआ। क्योंकि रामजी ने परशुरामजी से कह दिया था कि हे प्रभु! भगवान शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा....


मर्यादा पुरषोत्तम प्रभु राम ने मानव शरीर धर के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में कैसा आचरण हो इसके अनेकानेक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किये ... ऐसा आप भी करें , समूह में चर्चा या वाद विवाद के दौरान अपने मस्तिष्क पे क्रोध को हावी न होने दें .... वरिष्ठों की गलत बात का जरुर खंडन करें लेकिन विनय का दामन न छोड़े ... 

Tuesday, 16 April 2019

एक कमाल के मनोरोग चिकित्सक , बीमारी पे गज़ब की पकड़ , आला दर्जे  की डायग्नोसिस , अजी  परचा नहीं रामबाण कहिये , एक बार जो नुस्खा लिख दिया समझ लो बीमारी तीतर हो ली.... गज़ब की भीड़ होती थी डॉक्टर साहब की OPD में , एक दम रेलम पेल मची रहती थी , लेकिन डॉक्टर साहब थे बिलकुल अनुशासनप्रिय , सब मरीजों को  उनके आने के क्रम से ही  देखते , किसी की मजाल जो लाइन तोड़ के पहले घुस ले ...

सारे अर्दली ,चपरासी,JRs उनके इस मिजाज से भली भांति वाकिफ थे सो सभी इस बात को ensure करने की भरसक कोशिश करते कि बड़े डॉक्टर साहब के बनाये हुए कायदे कानूनों का अक्षरक्ष पालन हो ... नियमों का टूटना मतलब ज्वालामुखी विस्फोट , विभाग की शांति तो भंग होगी  ही और बहते लावे की जद सभी आयेंगे ,कोई नही बचेगा ...

लेकिन दुर्घटना से भला कौन बचा है ... एक दिन OPD में मची भसड के दौरान के मरीज लाइन तोड़ने की गुस्ताखी कर बैठा और डॉक्टर साहब के नज़दीक अपना परचा लिए पहुँच गया.... इसके पहले कि वो कुछ बोल पाता  प्रोफेसर साहब जो बेशुमार मरीजो की मार से पहले ही तिलमिलाए बैठे थे हत्थे से उखड लिए , कलम पटक दी गयी , कुर्सी पीछे धेकेल दी गयी , हाथ में पकडे परचे हवा हवाई हो गये , नथुने फुलाते हुए ,सर झटकते हुए , मेज पे जोरों से हाथ पटकते हुए दहाड़ते हुए बोले ....@#$% MC&*BC $$MKB ,BOSS.DK निकल बाहर... तेरी जुर्ररत कैसे हुई लाइन तोड़ने की ....

ये आपातकाल था ...सब के सब स्थिति सँभालने हेतु दौड़ पड़े , किसी अनहोनी के मद्देनज़र  मरीज को फुंकारते प्रोफेसर साहब की रेंज से  तुरंत  दूर किया गया ...

अब बोलने की बारी अपशब्दों के माउंट एवेरेस्ट के नीचे दबे मरीज की थी ... २ हफ्ते पहले जिस स्थिति में इस समय डॉक्टर साहब है बिलकुल DITTO ऐसी ही मेरी हालत थी , उस समय डॉक्टर साहब ने मुझे जंजीर से बाँधने , बिजली के झटके और कमरे में बंद करने के परामर्श दे डाले थे , मै तो ठीक हो गया पर लगता है मेरी बीमारी डॉक्टर साहब को लग गयी है अब इनका भी इलाज कराओ ...

मैंने कोई लाइन नहीं तोड़ी है , मई तो बस इतना पूछने आया था कि अगर नंबर आने में देर है तो तब तक तक मै चाय पी आता हूँ ....

सुना है लम्बे अरसे से साथ रहते रहते पति पत्नी की सूरत आपस में मिलने लगती है और शायद यही हम डॉक्टर्स के साथ भी होता है ,ईलाज करते करते हमारा आचरण भी मरीजों जैसा ही हो जाता है और मनोरोग चिकित्सक इस मामलें में कुछ ज्यादा ही बदनाम है ....

साभार - मनीष निगम बॉस

Thursday, 4 April 2019

कांस्टेंट फियर ...

हम न जाने क्यों एक कांस्टेंट फियर में जी रहें हैं , नौकरी/ पैसे /EMI की चिंता , अपने व परिवार के स्वास्थ की चिंता , सदैव किसी अनहोनी की आशंका, बच्चों की परवरिश उनकी शिक्षा को लेकर चिंता  ....

इसी चिंता , उधेड़बुन और भविष्य न जाने और क्या बेहतर हो जायेगा तब हम बहुत खुश हो जायेंगे की सोच में सलग्न अपना वर्तमान नकार देते हैं , अपने को सीमित कर देते हैं ,संबंधो को भी लाभ-हानि की दृष्टि से तोलने लगते हैं ...

महानगरीय जीवन शैली में दिनरात पिसे हम परिवार के साथ तीन चार महीने में किसी दूसरे शहर के सैर सपाटे, होटल या रिसोर्ट के निवास को ही स्ट्रेस बस्टर मान लेते हैं मगर अपनी दैनिक दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं करते ....

खाने का कोई निश्चित समय नहीं, देर रात तक जागते है , TV और मोबाइल में उलझे हुए , पारिवारिक संबंधो को सीचने हेतु जिस वार्तालाप की आवशयकता है उसका समय सोशल मीडिया खा जाता है .... देश दुनियां की खबर पर अपने पास पड़ोस से अंजान...

एक वाकया दिल्ली का मुझे याद है , एक फ्लैट में किसी वृद्ध की मृत्यु हो गयी , रात भर शव रखा रहा , परिचितों का आना जाना भी लगा रहा , सुबह क्रियाकर्म लिए शमशान भी ले गये , विधि विधान से सारे कर्म पूरे कर जब शाम को घर लौटे तो सामने के फ्लैट में रहने वाले सज्जन उपस्थित थे और पूछने लगे , आपके घर क्या कोई  कार्यकम था , काफी  भीड़ भाड़ थी ... प्रश्न सुनकर शोक संतृप्त परिवार निरुतर सा हो गया ... पडोसी के जब सही बात की जानकारी हुई तो एक अल्प अफ़सोस जाता के वापस अपने फ्लैट में घुस लिए ...

क्यों हम अपने छोटे छोटे कोष्ठको में कैद होकर रह गए हैं , परस्पर मेलजोल की जगह आपसी होड़ में ईर्षा ग्रस्त हो गए है , हमारी आर्थिक उन्नति तो हुई पर सोच क्यों छोटी हो गयी , प्रश्न कई है जो परेशान करते है पर उचित व पूर्ण उत्तर नहीं मिल पाता ...

Thursday, 7 February 2019

एक छोटे से कसबे के एक छोटे से मुहल्ले की छोटी सी कालोनी के एक कोने पे अपना मकान, ५ सदस्यों वाले परिवार के यत्नों ,प्रयत्नों , स्वप्नों , अकांक्षाओ , प्रेम और पुरषार्थ से बना घर .... तमाम मध्यमवर्गी संघर्षो को संजोये .... पुरुषप्रधान समाज का पुरुषप्रधान घर .... पापा ही सर्वोपरि , उनका हर कथन मानो एक आदेश ... सर्वोपरि ,सर माथे पे ...., माँ उसके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने-कराने में चौबीसों घंटे लगी एक उद्योंग निरत काया ...

"पापा से कह दूंगी".... एक ऐसा अमोघ अस्त्र जिसका वार कभी विफल नहीं जाता ... बच्चो को तुरंत ही अनुशासन का बोध कराता , गृहस्थी की चक्की के दो पाटों में पिसी नारी , माँ की ममता और सहधर्मिणी के कर्तव्यों का उचित निर्वहन करती हुई ....

माँ हमें कभी छत पे न जाने देती , घर बनने काफी सालो तक वहां बाऊँड्री वाल न थी , बेसुध हो दौड़ते भागते बच्चों के नीचे गिर जाने की प्रबल आशंका थी और हमारे एक मामा भी एक ऐसी ही दुर्घटना का शिकार हो चुके थे ... इसलिए छत पे जाने पे पूर्ण प्रतिबन्ध ... बोले तो इसके जीरो टॉलरेंस ... सीढ़ी चढ़ना मात्र ही हमारी सुताई सुनिश्चित कर देता ...

अनिष्ट की आशंका और डर से घबराई माँ अपने लाल को लाल करके ही मानती , सबक सिखाना तो उद्देश्य होता पर बाल उदंडता और अनवरत चलती घरेलू जिम्मेदारियों से खीजा और थका मन चाणक्य की "लालयेत पंचवर्षाणि दशवर्शाणि ताडयेत् " नीति का भरपूर अक्षरक्ष: पालन करता और कभी कभी अति भी कर देता ... हालाँकि तूफान गुज़र जाने के बाद शांति भी होती , माँ की ममता जाग जाती ,ग्लानि और अपराध बोध के साथ वो हमें मनाने और पुचकारने में जुट जाती , गाल और हाथ-पैर सहलाये जाते ,पैसे और खाने पीने की चीजों का प्रलोभन दिया जाता, छत में फिर से न चढने के वादे और कसमें ली जाती ....

हमारे कई कार्य केवल धनाभाव के चलते ही अपूर्ण नहीं रहते .... हमारी प्राथिमिकता और मन भी उनके पूर्ण न होने के मुख्य कारक होते है और जिसदिन बगल की ध्यानी जी की छत से बच्चा गिरा , हालाँकि प्रभु कृपा से उसे ज्यादा चोट नहीं आयी , पिताजी द्वारा निर्णय लिया जा चुका था , अगले ही दिन छत में जंगला डालने और चारदीवारी का काम शुरू हो चुका था ..

घर में किसी काम का शुरू होना , बालमन के लिए बड़े ही कौतुहल का विषय होता है , रोज की दिनचर्या से उलट यहाँ कुछ नया ,कुछ रोचक होता हुआ जान पड़ता है , हमने भी आने वाले ईंट ,सरिये , सीमेंट , मोरंग , बजरी कुछ न कुछ अपने खेलने के लिए ढूंढ ही लिया , माँ का काम और बढ़ चुका था , घर में हुई धूल मिटटी का अम्बार लग गया , आते जाते पांवो में किरकती मिटटी उसे ज्यादा रास न आती और वो दिन बार कई दफे झाड़ू लेकर साफ़ सफाई में जुटी रहती ...

छम्मन मिस्त्री ने हमारा घर बनाया था इस बार के काम के लिए भी वो ही आये, पुराने परिचित पे भरोसा ज्यादा होता है , ज्यादा देख रेख नहीं करनी पड़ती , ठेका तय हुआ , देहाड़ी पे काम कराने का पुराना कटु अनुभव था, काम बड़ी तीव्र गति से चला पांच ही दिन में छत जंगले और चारदीवारी का साथ पा बच्चो के लिए सुरक्षित हो चुकी थी ...

काम जल्दी निबट जाने पे मै दुखी हो गया अब मेरे पास शाम को मिस्त्री साहब के झोले की बसोली , कन्नी , छेनी-हथौड़ी और लोहे का लट्टू खेलने के लिए न थे ...

क्रमशः .... जारी रहेगा

Thursday, 24 January 2019

जाड़ो की एक अलमस्त सुबह
लेक्चर जाने को लेकर संशय 

तभी हमारे ज़मीर ने धिक्कारा 
रजाई छोड़ने के लिए धक्का मारा 

देर रात तक जगे नींद कैसे हो पूरी 
ये मॉर्निंग लेक्चर गज़ब की मज़बूरी 

क्या मस्त नरम-गरम बिस्तर  पड़े थे 
कितने हंसीं ख्वाब हम बुन रहे थे 

ये कम्बख्त रूम पार्टनर क्यों जग गया 
आलसी होने का तमगा हमपे जड़ गया 

ऐसा एक अहसास तुरंत हुआ उजागर 
जैसे कोई  पाप किया हो घरवालों से छुपाकर

पिताजी का  भेजा पैसा  कुछ याद दिलाने लगा
मध्यमवर्गी सपना कर्तव्यबोध कराने लगा 

 तुरंत आँखों का गीदड़ अँगुलियों से हटाया
ठण्ड के  प्रकोप में पञ्च स्नान से काम चलाया

बिना नाश्ता दौड़ पड़े रजिस्टर उठाकर
भागते हुए एप्रन पहने, देखो लड़खड़ा कर  


सुई के  कांटे से दौड़ हम जीते हफ -हफां  के
८ बजे से पहले पहुंचे ,साथी से लिफ्ट पा के

उनींदी आँखे आंखे  व्याख्यान को क्या समझे
वो तो सिर्फ अपनी वाली के दर्शन को तरसे ..

एकाएक वो नज़र आईं  , पीछे की पंक्ति में
आंखे सजग हुई दर्शन और भक्ति में

ये एकतरफ़ा प्रेम भी कितना अजीब है
प्रेमी है पर मौखिक अभिव्यक्ति से गरीब है

देखो खुमारी में होगया गुरूजी का  लेक्चर ख़त्म
अनुपस्थित महानुभावो का प्रॉक्सी से  उचित प्रबंध

उगे दिवाकर की गुनगुनी रश्मियों के तले
नाश्ते के लिए पैदल ही छात्रावास चल दिए ..





Friday, 11 January 2019

रीयूनियन ...

बहुत दिनों बाद आज रूम मेट का फ़ोन आया , काम के बीच में था इसलिए कुशलक्षेम पूछने के बाद, व्यस्तता  का हवाला देकर संध्या बात करने के वायदे के साथ फ़िलहाल के लिए रुखसती ले ली ...

जेहन में कई विचार एक साथ कौंध गए .... आज इसका फोन क्यों आ गया ? इतने सालो तो इसने कोई सुध नहीं ली , सुना बहुत बड़ा डॉक्टर बन गया है , दिन रात लक्ष्मी बरस रही है , सीधे मुहं तो किसी से बात भी नही करता , बीच में पारिवारिक कलह की बात भी सामने आयी थी , इतनी जल्दी इतना सारा पैसा सीधे तरीके से तो कमाया नहीं जा सकता ,कुछ सट -पट तो जरूर की होगी .... खैर मुझे क्या ? जैसा करेगा वैसा भरेगा .. पर एक बात तो पक्की है ... बिना मतलब के साले ने फ़ोन तो  नही किया होगा ...जरूर कोई काम होगा ... इसकी इमेज अब ऐसी ही बन चुकी है बैच में ...

तमाम शिकायतों ,आरोपों , मानमर्दन के उपरांत हम भी लग गए अपने कामो में पर आज काम में मन नही लग रहा था , कोई पुराना आज बड़े दिनों के बाद दिल में दस्तक दे चुका था और कुरेद चुका था कितनी पुरानी अपने-अपने तर्कों के हिसाब से अच्छी -बुरी बातें .... इस समय केवल  ख़राब बातो को याद करके ही निन्दारस का  सेवन किया जा रहा था ..

शाम हो गयी और चाह के भी उसे फ़ोन न किया , अपना अहम अभी तक अपनी दोस्ती पे हावी था ... बड़ा तुर्रमखां समझता अपने को ... हम भी क्या कम है ... नहीं करूंगा साले को  फ़ोन ... मेरी चिढ़ और परवान चढ़ रही थी ...

तभी उसका फोन घनघना उठा ... मेरे अहम के अल्प विजय हो चुकी थी , कहने के बाद भी मैंने फोन नहीं किया ... देखो उसी को दोबारा करना पड़ा ...

कैसा है ? उसकी आवाज पूरी तरह गले से बाहर नही निकली थी , लम्बा सम्पर्काभाव दो जिगरियों के मध्य एक अपराधबोध के साथ औपचारिकता उत्पन्न कर रहा था ..

ठीक हूँ .. मेरी आवाज में नाराज़गी का रुखापान साफ़ जाहिर था ... 

लगता है नाराज है ... एक हंसी में लिपटा प्रश्नबाण उसकी तरफ से चल गया जिसने मेरी भीतर मौजूद गुबार के गुब्बारे को फोड़ ही दिया बस फिर क्या था , शब्दों -अपशब्दों , शिकायतों ,क्षोभ ,आरोपों  का फव्वारा ऊँचा उछल पड़ा ... मै दनादन बोलता रहा वो शांत भाव से सुनता रहा ....

इंटर्नशिप में अभिन्न मित्रता में पडी दरार आज दिल से निकले उद्गारो से पट रही थी , एक दूसरे की शादी में न जाने भड़ास आज बाहर निकल ,दिल को न कब से दबाये बैठे बोझ से मुक्ति दिला रही थी ..

काफी देर धाराप्रवाह बोल लेने के बाद मै चुप हो गया शायद कहने को कुछ शेष भी नहीं रह गया था  ...

तेरा हो गया ना ... अब मै बोलू ... जैसा भी हूँ , हूँ तो तेरा दोस्त ना .... कोई भी दिन हमारे घर में ऐसा न होगा जिसदिन तेरा जिक्र न आया हो , बात करता भी तो कैसे अपने बनाये मकडजाल में खुद ही उलझा बैठा था 
पर तेरी खोज खबर हमेशा रखता ....अपने बच्चो से हरदम कहता हूँ पापा जैसा नहीं ... पापा के  दोस्त जैसा बनना .... 

तुझे याद है ना अपने बैच का चरसी बाबा ... आज उसका फ़ोन आया था , बैच की सिल्वर जुबली रीयूनियन है इस साल के अंत में ... आने के लिए कह रहा था ... मैंने कह दिया मै जरूर आऊँगा और तुझे भी साथ लाऊंगा ...बच्चे तुझ से मिलने के लिए अति उत्साहित हैं ...

अब चुप रहने की बारी मेरी थी , भावनाओ का सैलाब उमड़ चुका था , सारे -शिकवे शिकायतें काफूर थी ..

तेरे साथ ही जाऊँगा साले ... कोला में ओल्ड मोंक  पीकर साथ नागिन डांस किये काफी दिन हो गए  ....

सारी गिरह खुल चुकी थी ... यार ने इतने दिनों बात नहीं की तो क्या हुआ... वो तो हमारी यादों के साथ  सपरिवार रोज जी रहा है ...

Thursday, 10 January 2019

ये मुलाकातों के दौर, मुसल्सल  जारी रहें
तमाम मरूफियतों के बीच जिन्दा यारी रहे

हो जा मस्त मलंग दिल खोल के तू अपना
हरदम जवां रहने की अपनी तैयारी रहे

तकादा कर रही है साथ न पी मय  कब से
वायदों की  हम पे अब न कोई उधारी रहे

आ गज़ब  शोर करे   मुदात्तो बाद मिल के
वो ही पुरानी गालियां, सारी की सारी रहें

जेब की चिंता में  देख  बीता  कितना वक्त
इस दोस्ती में अब ऐसी न कोई लाचारी रहे