नाथ शंभु धनु भंजन हारा, होईये कोऊ इक दास तुम्हारा
सीता स्वयंवर के समय प्रभु राम ने उस शिव धनुष जिसे बांकी राजा लोग टस से मस भी नहीं कर पा रहे थे , फूल की भांति उठा क्षण भर में ही खंडित कर दिया ..
आकाश में तेज गर्जना के साथ ,आंधी तूफान की तरह भगवान परशुराम तुरंत ही स्वयंवर स्थल 'मिथिला' में आ धमके और कोड़ों से वे सभी राजाओं-सेवकों को पीटते जा रहे थे और इसी तरह वे मंच पर जा चढ़े। यहां परशुरामजी ने ललकार कर पूछा कि ये शिवजी का धनुष किसने तोड़ा। तब लक्ष्मणजी से उनका वाद-विवाद हो गया।
इस पर भगवान राम ने बीच में आकर कहा कि- नाथ शंभु धनु भंजन हारा, हाईये कोऊ एक दास तुम्हारा। भगवान राम के श्रीमुख से खुद के लिए ऐसे सम्मान भरे सरल वचन सुनकर भगवान परशुराम का क्रोध शांत हुआ। क्योंकि रामजी ने परशुरामजी से कह दिया था कि हे प्रभु! भगवान शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा....
मर्यादा पुरषोत्तम प्रभु राम ने मानव शरीर धर के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में कैसा आचरण हो इसके अनेकानेक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किये ... ऐसा आप भी करें , समूह में चर्चा या वाद विवाद के दौरान अपने मस्तिष्क पे क्रोध को हावी न होने दें .... वरिष्ठों की गलत बात का जरुर खंडन करें लेकिन विनय का दामन न छोड़े ...
सीता स्वयंवर के समय प्रभु राम ने उस शिव धनुष जिसे बांकी राजा लोग टस से मस भी नहीं कर पा रहे थे , फूल की भांति उठा क्षण भर में ही खंडित कर दिया ..
आकाश में तेज गर्जना के साथ ,आंधी तूफान की तरह भगवान परशुराम तुरंत ही स्वयंवर स्थल 'मिथिला' में आ धमके और कोड़ों से वे सभी राजाओं-सेवकों को पीटते जा रहे थे और इसी तरह वे मंच पर जा चढ़े। यहां परशुरामजी ने ललकार कर पूछा कि ये शिवजी का धनुष किसने तोड़ा। तब लक्ष्मणजी से उनका वाद-विवाद हो गया।
इस पर भगवान राम ने बीच में आकर कहा कि- नाथ शंभु धनु भंजन हारा, हाईये कोऊ एक दास तुम्हारा। भगवान राम के श्रीमुख से खुद के लिए ऐसे सम्मान भरे सरल वचन सुनकर भगवान परशुराम का क्रोध शांत हुआ। क्योंकि रामजी ने परशुरामजी से कह दिया था कि हे प्रभु! भगवान शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा....
मर्यादा पुरषोत्तम प्रभु राम ने मानव शरीर धर के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में कैसा आचरण हो इसके अनेकानेक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किये ... ऐसा आप भी करें , समूह में चर्चा या वाद विवाद के दौरान अपने मस्तिष्क पे क्रोध को हावी न होने दें .... वरिष्ठों की गलत बात का जरुर खंडन करें लेकिन विनय का दामन न छोड़े ...
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