Friday 7 February 2020

✋✋👯सबसे ज्यादा आज के दौर में अगर किसी ने विश्वसनीयता खोयी है तो वो है मीडिया , प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों ने ही ....

विरोध और पक्ष दोनों की अति ही है और अति सर्वथा वर्जयेत् ... अति किसी भी तरह से हितकारी नही हो सकती ...

समाचार पत्र और न्यूज़ चैनल मानो खबर नहीं एजेंडा चला रहे हो , अपने सोच आप पे थोपने का प्रयास है

ख़बर नहीं शोर शराबा है ,ड्रामा है ....

मुझे याद है पिताजी व् अन्य बड़े लोग बचपन में सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिए दूरदर्शन समाचार देखने की सलाह देते थे , उन दिनों 24x7 TV नही था , TV देखना पढने लिखने वालों की निशानी नही होती थे , ये बुरा माना जाता था, किसी व्यसन की तरह ....

देखने में इतनी जबरदस्त राशनिंग के बावजूद भी समाचार के समय TV खोल ही दिया जाता था ताकि सबका ज्ञानवर्धन हो सके ....आज के वक्त क्या आप ऐसी तवक्को रख रकते हैं .... जवाब एक दम ही स्पष्ट है ... एकदम नहीं ....

प्रिंट मीडिया और ज्यादा उदास और क्षुब्ध करता है ये अभी तक तथाकथित बुद्धिजीवियों की गिरिफ्त आजाद नहीं हुआ ... पढ़ने का शौक रखने वालों के लिए क्या कोई विकल्प बचा है ... जवाब हैं नहीं ... वो बस मन मसोस कर ही रह जाते हैं ... गाहे बगाहे सोशल मीडिया पे कुछ लिख के अपना frustatation दूर करते है जैसा इस वक्त में कर रहा हूँ ...

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बढती लोकप्रियता और सहजता ने वैसे ही आजकल बच्चो को किताबो/अख़बारों /पत्र-पत्रिकओं से दूर कर रखा है , कॉलेज आदि में परंपरागत पढाई के तौर तरीके तेजी से बदल रहें हैं ...
अब e- book ,PPT, you tube video और app based study का जमाना है ....

अख़बार आजकल headline पढने के बाद ही रद्दी हो जाता हैं ....

मीडिया पे आजकल विश्वनीयता खोने , सोशल मीडिया के फैलाव की दो तरफ़ा मार है ....

अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब ये सब इतिहास के कूड़ेदान में निस्तेज पड़े होंगे ....

इसका कोई हल फिलहाल मुझे सुझाई नही दे रहा अगर आपके पास हो तो मार्गदर्शन करें

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