Thursday, 20 November 2014

उच्चारित कुछ  शब्द 
अपने मूल अर्थो से कितने पृथक 
प्रस्फुटित तत्काल अकारण ही 
कितना क्षोभ, कितनी भावनाए … 


कितनी देर तक 
विचलित होते तुम और मै 
उधेड़ते न जाने कितने 
पूर्व-कथन और क्रियाएँ 

और किसी निष्कर्ष पे पहुंचे बिना 
पटाक्षेप होता एक और विवाद 
अपनी-अपनी त्रुटियों को कर स्वीकार 
हर दिन प्रगाढ़ होता ये सम्बन्ध,,,









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