उच्चारित कुछ शब्द
अपने मूल अर्थो से कितने पृथक
प्रस्फुटित तत्काल अकारण ही
कितना क्षोभ, कितनी भावनाए …
कितनी देर तक
विचलित होते तुम और मै
उधेड़ते न जाने कितने
पूर्व-कथन और क्रियाएँ
और किसी निष्कर्ष पे पहुंचे बिना
पटाक्षेप होता एक और विवाद
अपनी-अपनी त्रुटियों को कर स्वीकार
हर दिन प्रगाढ़ होता ये सम्बन्ध,,,
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