Tuesday, 3 November 2015

आज का दिन हम सबके लिए  बेहद खास है 
सबकुछ अच्छा होगा इसका प्रबल अहसास है 
पिताजी के मामाजी के घर ये आयोजन है 
लड़का-लड़की को एक दूसरे से मिलाने का प्रयोजन है 

फल -मिठाई मेवे सब के सब मेज पे सजे हैं 
विविध प्रकार के पकवान भी आज घर पे बने हैं 
नाते-रिश्तेदारों की सीमित चहल पहल है 
शुरुआत हैं , बात बिगड़ जाने का भी तो  डर है 

सबके नयन प्रतीक्षारात घर के गेट पे टिके हैं 
कान भी हर आहट को सुनने की कोशिश करने लगे है 
वक्त देखों अब काटे नहीं कटता है 
कुछ याद आने पे भईया झट माँ के पास दौड़ पड़ता है 

दीदी की साड़ी पहनने से न नुकुर है 
इस दुविधापूर्ण क्षण में कैसे संभलेगी इसका डर है 
बड़े-बूढों के परामर्श का न उसपे  कोई असर है 
झट आंसू टपका देती , ये कन्या आज बड़ी नर्वस है 

चाय की ट्रे ले जाने में भी असमर्थ है 
ले गई तो पक्का गिरेगी , बहस करना व्यर्थ है 
कह रही मुझे बार-बार टोक के और न हडबड़ाओं 
क्या करना क्या न करना मुझे और न बतलाओ 

पहली बार फंसी इसमें तुम सबके कहने में 
क्या मै अखरने लगी थी साथ रहने में 
उन्मुक्त जीवन मेरा, जिम्मेदारी विहीन था 
कॉलेज और हॉस्टल जीवन जीवंत और रंगीन था 

खीचतान ,नोकझोक के मध्य आंखिर वो समय आ ही गया 
लड़का अपने लाव-लश्कर के साथ देखो घर पधार  गया 
खुसर-पुसर और कानाफुसियों के मध्य कितना संकोच है 
नये बनते संबंधों में शुरूआती तकल्लुफो का ही जोर है 

इस विचित्र से सन्नाटे को लड़के की भाभी ने तोड़ा 
परिचय कराते हुए हमारी दीदी से मुस्कुराते हुए बोला 
चाय की चुस्कियों के बीच औपचारिक वार्तालाप है 
दो परिवारों का यह मिलन कितना खास है...

अरे बेटा तुमने तो कुछ खाया ही नहीं 
तुम्हे क्या पसंद है तुमने तो बतलाया ही नहीं 
शर्म झिझक से भला किसका भला हुआ 
मुस्कुराते हुए चाची ने लड़के को छेड़ दिया 

माँ ने झट धर दिए संभावित दामाद की प्लेट में 
एक गुलाब जामुन दो समोसे 
अविरल बहती बातों की इस चासनी के मध्य 
कोई न भी तो कैसे बोले ...

बातों के बीच अक्सर उठता हंसी ठठा है 
वर्जनाए लगी टूटने , संबंध अब आत्मीय लगता है 
केवल लड़का-लड़की खामोश पड़े लजाते है 
बरबस मिल जाते नयन और होठ काट मुस्कुराते है 

शोर अब थम गया , 
फिर से सन्नाटा छा गया 
लगता है लड़का-लड़की के 
एकांत में बातें करने का वक्त आ गया 

बारी-बारी सब उठ खड़े 
इधर-उधर हो लिए 
भाभी जी मुस्कुरा के कहें 
बोलिए जी अब खुल के बोलिए 

बड़ी ही अजब स्थिति आज यहाँ बनी है
संभावित सात जन्मो के संबंधो की शायद नीव पडी है
प्रारंभिक हिचकिचाहट से पार पा
ये जोड़ी अब आपस में बोल पड़ी है
पसंद-नापसंद सब कह डाले
बहुत सी बातें फिर भी कहने को  बची हैं ...

समय बहुत  जल्दी बीता , ढेरों  हुई बात
असंख्य यादें संजोयगी इनकी ये पहली मुलाकात
माँ ने खटखटाए किवाड़ कहा खाना लग गया
बेटी का खिला-खिला चेहरा उसे कितना जच गया


भोजन उपरांत फिर से चाय का दौर है
दीदी अलग कमरे में ,दिमाग पे बहुत जोर है
हाँ करूँ के न करूँ अभी खुलके समझ न पाऊँ
असमंजस की इस स्थिति अभी निर्णय से घबराऊँ

तभी आया सन्देश लड़के वालों को लड़की पसंद है
दीदी की चिंता और बड़ी मन में अनेको द्वन्द है
माँ ,पिताजी ,बाबा दादी सब लगे उसे समझाने
घर बैठे आये इस बढ़िया रिश्ते को हाथ से न देंगे जाने


इतने लोगो के हां कहने पे वो भी साथ चलदी
पलके झुकाते हुए धीमी आवाज में उसने भी हामी भर दी
पिताजी के ननिहाल अब जश्नों का दौर है
मुबारक हो मुबारक हो का देखो मच गया शोर है ....






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