Saturday, 17 February 2018


सरसो का तेल चुपुड़ के तैयारी की शुरुआत
शुभ होली लिखी   टोपी पहन बालो का बचाव
छोटी -छोटी पन्नियों रखे रंग विभिन्न  प्रकार
पुरानी पैंट कमीज पहन निकले हम बाहर


वो गलियों में दौड़ते कूदते  बिंदास
सने हाथ लिए रंग अबीर गुलाल
पानी के गुब्बारे भरे बेहिसाब
पिचकारियां बनी बालयुद्ध का हथियार

पानी की भरी बाल्टी के लिए छीना -झपटी
रोने पे डरपोक होने  की साथी ने कसी फबती
पास-पडोस का हर आंगन अपना
बिन थके हम भागते दौड़ते कितना

कभी-कभी लग जाती माँ की फटकार
घर वापस आने को हम कहाँ तैयार
गुजिया पापड़ चिप्स दही बड़े
छक के खाये गिनती कौन गिने

ठंडाई को पीने से पहले पूरी  पड़ताल
 भांग मिले होने की संभावनाए हजार
गुप्ता जी की नई पुती दीवार पे छापे दो हाथ
उनका खिसयाना हमें अब तक याद

बालपन की  किशोरावस्था में तब्दीली
साथ बड़ी मिनी तब  आइटम लगती
हाथ उसके गोरे गालो के  स्पर्श को  लालायित
होली के मौके पे न होगी उसे भी कोई  शिकायत

मोहल्ले के साथ आधा शहर दिया नाप
घर की छतों से आता रगीन पानी का छिडकाव
तन मन फाल्गुन की मस्ती में रमे
घर लौटने की जल्दी क्यों कोई करे

आंखिर में थके मांदे घर की ओर किया रुख
काया से रंग छुड़ाने के यत्न ने छीना सारा सुख
कान नाक चेहरे से रंग निकलता ही रहे
अकेले हम नहाने में पानी की टंकी आधा किये

नहा धो जैसे ही निकले गुसलखाने से
साथी फिर पोत गए होली के बहाने से
कहने लगे हमने कहा खेली उन संग होली
हम भी तो हैं तुम्हारे खासमखास हमजोली

सच में बड़ा होना अब कितना अखरता है
विशिष्टता का अहंकार हमें अलग थलक करता है
अब हर फाल्गुन पुराने  घर की याद दिलाता है
दिल में वही पुराना बचपन मचलता है फड फडाता

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