अपना कालेज कई मायनो में
विशिष्ट था , है और
आगे भी रहेगा....
न जाने
कितनी पीढ़ियां निकल गयी इन BH-1
,BH-2,BH-3, BH-4 , GH और BH-5 ( हमारे
ज़माने में नहीं था ) से पढ़कर , बस समय बदला ,चेहरे
बदले ,प्राथमिकतायें
बदली पर किसी भी काल खंड में हम 'GANESHIANS' की फितरत न बदली । मेधा
,मस्ती और
उज्जड़पने की त्रिवेणी सदैव ही कायम रही और यही बात हम सबको आपस में जोड़े रखती है…
मोटे तौर
पे हॉस्टल के दिनों में हम लड़के दो भागो
(Groups ) में
विभाजित थे , एक जो
दारू पीते थे और दूसरे जो नहीं पीते थे.....
न पीने वाले highly image conscious लोगो
की श्रेणी में आते थे , इन्तेहाँ
नज़ाकत और नफासत पसंद... इनका हर एक काम GH को अपने जेहन में लेके होता था । साफ़-सुथरे,नहा धोके ,समय से सुबह 8 बजे वाले lecture में
पहुँचना , front row में
बैठना , टक-टकी
लगाये प्रोफेसर साहब को देखना ,
तीन-चार रंगो की कलमों (Pens )और शदीद
मशक्कत के साथ गुरूजी के द्वारा बोली और black board पे लिखी हर बात नोट करना
जैसे वो कोई ब्रह्मवाक्य हो इनकी रोज की आदत में शुमार था.…
हर पूछे सवाल पे
तुरंत अपना हाथ रूपी एंटीना खड़ा कर देना , और ऐसी कोई हरकत करना जिससे सबका ध्यान इनकी और आकर्षित हो और जवाब
देने के बाद वो विश्व-विजेता वाली चमक इनके चेहरे पे देखने लायक होती थी.… Lecture के बाद
जब तक ये किसी बालिका से लस न ले इनका सुबह का नाश्ता हजम नहीं होता था.…
इन लोगो का कमरा हमेशा
व्यवस्थित रहता था , बिलकुल
सफाई से,बिस्तर के पीछे लगा बिना सिलवटो वाला
प्लास्टिक वॉल पेपर,
उसके ऊपर पीतल की चौड़ी drawing pins से ठुकी black ribbon , सलीके से
सजी study table और उसके
ऊपर चमचमाता टेबल लैंप और emergency
light , करीने से रखी किताबे ,घर-परिवार, देवी
देवताओं की फोटो आदि-आदि ..... कितना विहंगम दृश्य प्रदान करती थी .…
इनके पास हमेशा घर से आये
लड्डू,मठरी ,देशी घी व अन्य खाद्य
सामग्री प्रचुर मात्रा विद्यमान रहती थी पर इनकी हर
जरुरी चीज ताले में बंद रहती थी और आप इनसे कुछ भी
मांगने की गुस्ताखी नहीं कर सकते थे, अगर गलती से आप से ये गुनाह हो गया तो ये अपनी लानत भरी नज़रो से आपको
ये जता देते थे कि आप से बड़ा भिखमंगा इस जहान में कोई दूसरा कोई और नहीं …
ये लोग व्यवस्थित थे पर
सीमित थे , इनके
दोनों सिरे आसानी से प्रदर्शित हो जाते थे.…
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और दूसरा group था पीने
वालो का ....धर्म, जाति ,शहर , स्कूल , पारिवारिक पृष्टभूमि , juniority, seniority का फर्क
यहाँ नदारद था.… RUM में रमे
ये लोग ख़ुदपरस्त नहीं खुदा-परस्त थे
भेद को मिटा देना उस मालिक
की सच्ची इबादत है और ये लोग इस कला में माहिर थे.…
जो सोये ही रात के
तीन बजे उसके लिए सुबह के lecture के क्या
मायने ? Proxy के सहारे
इनका वजूद
कायम था.…
ये लोग कॉलेज और कानपुर की
नस-नस से वाकिफ थे , हर छोटी ,बड़ी घटना पे इनकी सटीक और
पैनी नज़र होती थी , संगठन में शक्ति वाली कहावत को ये
लोग ही अपने पौरुष से चरितार्थ
करते थे....
GSVM में होने वाले हर छोटे बड़े आयोजन का भार इनके कंधो
पे ही होता था और ये लोग बख़ूबी उसे अंजाम भी देते थे.…
ये लोग BH के इतने आदी होते थे कि
इन्हे GH जाने की
आवश्यकता ही नहीं थी , सलीको में सिमटजाना इनके
मिज़ाज में था ही नहीं …
कमरा भी बेतरतीब सा फैला
रहता था , इधर ,उधर पड़े कपडे , किताबे, cassettes, हवा में
मौजूद जले तम्बाकू की गंध ,
फ़िल्टर सिगरेट के थूड्डो से लबालब स्टील की कटोरी ,कपड़ो
ख़राब करता दीवारो से छूटता
हुआ रंगीन चूना, उखड़ते
हुए हसीनाओं के फड-फडाते पोस्टर ,कमरे के बाहर नाश्ते और
खाने की औंधे मुँह गिरी हुई प्लेटे/गिलास
और न जाने क्या -क्या इन लोगो की
बहुमुखी प्रतिभा के विभिन्न रंगो को
प्रदर्शित करता था.… मजाल है
के आप इनके इस तरह से बिखरे हुए व्यक्तित्व का कोई सिरा तलाश कर पाए , ये सीमओं से परे था , असंख्य संभावनाए लिए …
कमरे की कोई भी चीज ताले के
सुपुर्द नहीं , अगर आपको
किसी भी चीज की जरुरत हो , पूछने की
जहमत ना कीजिये बस उठा के ले जाइए , इन्हे कोई मसला नहीं पर हाँ काम हो जाने के बाद शराफत से उसे
वापस रख दीजिये वरना गाली खा के तो आप को रखनी पड़ेगी ही .... :)
image build up की जगह ये खुद अपनी image destroy करने पे
ज्यादा यकीं रखते थे और हो भी क्यों न सम्पूर्ण विनाश ही तो नव-सृजन की
पहली शर्त है.…
संबंधो शर्त कैसी ? कोई पसंद
है तो उसे वैसे ही
पसंद कीजिये जैसे कि वो है , बिना किसी लाघ-लपेट के या
मीनमेख निकाले.... नए सबंधो को स्थापित करने में यदि दिमाग लगाओगे
तो हर दिन फायदे नुक्सान के हिसाब में ही मसरूफ रहोगे और चीजें अगर दिल से
तय होंगी तो प्यार और विश्वास हर दिन परवान चढ़ेगा ....
जिंदगी में अनेक मुकाम
हांसिल होंगे , बात तो
बस उनको हांसिल करने के सफ़र की है ,संजीदा रह के करोगे तो राह कठिन लगेगी, मस्त-मौला रह के करोगे तो दुश्वारियों का पता भी
नहीं चलेगा ...
उम्र के चौथे दशक की
और बढ़ते हुए, पुराने
दिन और याद आने लगे है , काफी समय
गुजर गया ज़िन्दगी और carrier के बीच सामंजस्य
बैठाते हुए.… ये कभी न
ख़त्म होने वाली जद्दोजेहद आगे भी जारी रहेगी ...
अपने कॉलेज के दिनों को याद
करके कुछ सुकूं हांसिल करने में हर्ज़ ही क्या है ? मै तो एक लम्बे अरसे से कर
रहा हूँ , आप भी
कीजिये
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