पहले खूब भाता था कितनो को
पर अब कितना अखर गया हूँ
मै जो मुख़ालफ़त पे उतर गया हूँ
हर दिन मुझे रहती है कोई शिकायत
लोग कहते है हद से गुजर गया हूँ
मै जो मुख़ालफ़त पे उतर गया हूँ
अल्फ़ाज़ अब न रहे चासनी सरीखे
सच की कडुवाहट में घुल गया हूँ
मै जो मुख़ालफ़त पे उतर गया हूँ.…
यार-दोस्त ,नदारद है आसपास से
गलत को सही कहने से मुकर गया हूँ
मै जो मुख़ालफ़त पे उतर गया हूँ.…
पर अब कितना अखर गया हूँ
मै जो मुख़ालफ़त पे उतर गया हूँ
हर दिन मुझे रहती है कोई शिकायत
लोग कहते है हद से गुजर गया हूँ
मै जो मुख़ालफ़त पे उतर गया हूँ
अल्फ़ाज़ अब न रहे चासनी सरीखे
सच की कडुवाहट में घुल गया हूँ
मै जो मुख़ालफ़त पे उतर गया हूँ.…
यार-दोस्त ,नदारद है आसपास से
गलत को सही कहने से मुकर गया हूँ
मै जो मुख़ालफ़त पे उतर गया हूँ.…
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