Saturday, 23 August 2014

अक्सर पूनम और मेरे बीच बहस का एक मुद्दा होता  है  "कानपुर" .... हर बार की तकरार में वो हमेशा कहती रहै पता नहीं क्या है तुम्हारे इन कानपुर मेडिकल कॉलेज के दोस्तों में  जो तुम इनके पीछे बौराय हुए घूमते रहते  हो.… अगर कोई कनपुरिया घर आज जाए तो तुम अपनी सुध-बुध ही खो देते हो और तुम सब मिलके घंटो तक कानपुर -कानपुर की ही रट लगाये रहते हो.…

शादी के ७ सालो में लगभग ९०% लोग जो घर आ के खाना खा के गए वो Ganeshian ही थे.… उनके साथ अत्तीत के उन सुनहरे लम्हो को  बांटने में जो दिव्य  आनंद  मिला  है वो कहीं और कहाँ ,? MBBS  के बाद अर्जित की  गई डिग्रियां और  कमाए गए नोट उसके कहीं आस-पास भी नहीं फटकते...

 ऐसा इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि  हम सब आज भी उसी  पुरानेपन  को अपने में समाये हुए है ,कोई चाहे जिस भी मुकाम पे हो,  इन होनी वाली मुलाकातों में  अपना वहीं पुराना ट्रेडमार्क कमीनापन और अपनापन प्रदर्शित  करता है  जोकि  उसकी खास पहचान रही है , वर्तमान की उपलधियां अत्तीत की उन UG वाली संग की गई कारगुजारियों पे कभी भी हावी नहीं हो पाती

जिन संबंधो में स्वार्थ नहीं होता वे चिरस्थाई होते है …

कानपूर वालो को समझने के लिए कोई "Rocket  Science" की आवश्यकता नहीं , बस आपको उन्ही की तरह फक्कड़  और उन्ही की तरह दबंग, उन्ही के तरह मस्त और  उन्ही की तरह मलंग बनना पड़ेगा जो हर किसी के बूते की बात नहीं...

गंगा मैया का पानी किस्मत वालो को ही पीने को मिलता है  और हम कनपुरिये तो उस में नहाये हुए है.…

तो इस भाग-दौड़ और रेलम-पेल वाली ज़िन्दगी में मिलते रहिये , मेलजोल बड़ाते  रहिये,जाम टकराते रहिये और हमारे घर आते रहिये.... आप लोग ही मेरे लिए बेस्ट tranquilliser & best anti hypertensive हो ...






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