अपनी दोस्ती का जश्न मनाने के लिए क्या हमें कोई तारीख मुकर्रर करने की जरुरत है ? भइया हम तो रोज मनाते है और जमकर मनाते है.…
ईश्वर ने नेक माँ-बाप दिए , लाड करने वाले भाई बहन , सबसे पुराने,पक्के और सच्चे दोस्त आज भी वही है.… हमारे पिता थोड़े सख्त मिजाज के थे , उस समय प्रचलन भी वैसा था , होते हुए भी बच्चों से स्नेह का खुल्लम-खुल्ला प्रदर्शन प्रायः पिता नहीं किया करते थे पर इसकी भरपूर भरपाई माँ के द्वारा कर दी जाती थी.… , हमारी गलतियों ,शैतानियों ,परेशानियों ,जरुरतो और गुस्से का पहला ठिकाना वो ही थी ,माँ कवच की तरह होती थी, हर विपदा में रक्षण उसी से प्राप्त होता था.…
अच्छे संस्कार मिले ,पढ़ लिख के अल्लाह मियां की गाय की तरह कॉलेज पहुंच गए.… बस यहीं से लाइफ ने एक जबरदस्त यू-टर्न मारा। अपनी क़ाबलियत सिद्ध होने के तमगे साथ-साथ एकाएक आज़ाद माहौल मिला, सुबह के संडास से लेकर रात के २ बजे की चाय के बीच हर छोटी बड़ी चीज हमारे लिए नई थी.… और हमारे साथ पहली बार जिस किसी ने इनका अनुभव किया वो कमीने दोस्त ही जिंदगी की कमाई हुई सबसे बड़ी दौलत है और हमारे सबसे बड़े राजदार भी...
कौन सा दिन नहीं जब ये ससुरे याद नहीं आते , इन्हे गरियाने,लतियाने का मन नहीं करता, बस बंधे रहते है कुछ खुद की बनाई हुई मजबूरियों से और काफी समय यूँ ही गुजर जाता है इन से मिले और बात किये हुए.…
और जब कभी सोमरस के आधिपत्य में बहुत खुश और Senti हो जाते है तो फ़ोन पे चिल्लाकर देर तक बात करके इन्हे अपने होने अहसास करा देते है.… फिर से मिलने के वादो के बीच हम फिर से मशगूल हो जाते है अपने अपने उन्ही रोजमर्रा के कामो में.…
शादी के बाद बीवी से आस रहती उन्ही कमीनो के थोड़े बहुत अंश की जो पूरी न होने पर अक्सर हमारे बीच एक न खत्म होने वाली बहस का कारण बन जाती है.....
ईश्वर ने नेक माँ-बाप दिए , लाड करने वाले भाई बहन , सबसे पुराने,पक्के और सच्चे दोस्त आज भी वही है.… हमारे पिता थोड़े सख्त मिजाज के थे , उस समय प्रचलन भी वैसा था , होते हुए भी बच्चों से स्नेह का खुल्लम-खुल्ला प्रदर्शन प्रायः पिता नहीं किया करते थे पर इसकी भरपूर भरपाई माँ के द्वारा कर दी जाती थी.… , हमारी गलतियों ,शैतानियों ,परेशानियों ,जरुरतो और गुस्से का पहला ठिकाना वो ही थी ,माँ कवच की तरह होती थी, हर विपदा में रक्षण उसी से प्राप्त होता था.…
अच्छे संस्कार मिले ,पढ़ लिख के अल्लाह मियां की गाय की तरह कॉलेज पहुंच गए.… बस यहीं से लाइफ ने एक जबरदस्त यू-टर्न मारा। अपनी क़ाबलियत सिद्ध होने के तमगे साथ-साथ एकाएक आज़ाद माहौल मिला, सुबह के संडास से लेकर रात के २ बजे की चाय के बीच हर छोटी बड़ी चीज हमारे लिए नई थी.… और हमारे साथ पहली बार जिस किसी ने इनका अनुभव किया वो कमीने दोस्त ही जिंदगी की कमाई हुई सबसे बड़ी दौलत है और हमारे सबसे बड़े राजदार भी...
कौन सा दिन नहीं जब ये ससुरे याद नहीं आते , इन्हे गरियाने,लतियाने का मन नहीं करता, बस बंधे रहते है कुछ खुद की बनाई हुई मजबूरियों से और काफी समय यूँ ही गुजर जाता है इन से मिले और बात किये हुए.…
और जब कभी सोमरस के आधिपत्य में बहुत खुश और Senti हो जाते है तो फ़ोन पे चिल्लाकर देर तक बात करके इन्हे अपने होने अहसास करा देते है.… फिर से मिलने के वादो के बीच हम फिर से मशगूल हो जाते है अपने अपने उन्ही रोजमर्रा के कामो में.…
शादी के बाद बीवी से आस रहती उन्ही कमीनो के थोड़े बहुत अंश की जो पूरी न होने पर अक्सर हमारे बीच एक न खत्म होने वाली बहस का कारण बन जाती है.....
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