Friday, 8 August 2014

अच्छा खोजिए , हमेशा कुछ न कुछ जरूर मिलेगा ,

बात ये नहीं कि पहले के ज़माने में ही अच्छी फिल्में बनती थी ,आज कल भी बनती है बस जरा चकाचौध में खो जाती है.… पर काम बनती है
समय बदला है , लोग बदले है ,सामाजिक सरोकार बदले है ,इसलिए फिल्में भी बदली है.… अब मनोरंजन के अनगिनित साधन उपलब्ध है ,पहले ऐसा न था.… पूरे परिवार  को ले एक साथ सिनेमा हाल में फिल्म देखना किसी उत्सव से कम न था जो साल में यदाकदा ही संभव हो पाता था और और उसकी मधुर स्मृतियाँ जेहन में  आज भी शेष है.।

अब ज़माना weekend और multiplex का है। फिल्म देखना कईयों के लिए हफ्ते में एक बार होने वाला time pass है इसलिए फिल्म भी किसी disposable  item सरीखी हो गयी है.… दिमाग घर पे छोड़ के जाइये ,popcorn और ठन्डे आनंद लीजिये और हफ्ते भर से झुंझलाती और outing के लिए ताने मारते बीवी की क्रोधाग्नि पर centralized air conditioner की हवा मारिये कहानी , अभिनय गीत-संगीत जाए तेल लेने

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