हर सियाह यहाँ पे सफ़ेद है
अपनी मौजूदगी पे हमें खेद है
हक़ हलाल की बातें बेमानी
छीनने में कब किसे गुरेज है
लानत मिल रही है अपनी तरबियत पे
क्योंकि हमें बेमानी से परहेज है
क्या नेता क्या नौकरशाह
यहाँ तो अदना चपरासी भी सेठ है
सबने मिलके बना रकखी चौकड़ी
खींचतान, बन्दर बाँट का खेल है
जमीर मर चुका है कितनो का यहाँ
जिनमे बाँकी वो तो मटियामेट है
बचा लो इस मुल्क को नौजवानो
तुम से ही उम्मीद अब शेष है
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