Tuesday 31 December 2013

वक्त फिर से बे-वफाई कर गया
देखो कितनी जल्दी फिर से साल बदल गया

कुछ मिला तो कुछ रह गया अधूरा
जिंदगी है चलता रहेगा ये सिलसिला

फुर्सत निकालिए
अपनों के और करीब आते रहिये

साल तो आते-जाते रहेंगे
किसी न किसी बहाने
खुशियाँ मनाते रहिये ....


Monday 11 November 2013

उन्हें हमारे शौक से  शिकवा
हम उनकी बेजा फिक्र से नाराज 
हम  कभी-कभार  शौकिया  मैपरस्त
उनके हमेशा  उखड़े -उखड़े अंदाज़
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मैपरस्त=शराबी







Saturday 9 November 2013

हर रोज झाड़ा, पटका ,धोया और रगड़ दिया
पति था कपड़ा नहीं , तभी इतने साल चल गया

Friday 8 November 2013

अपनी बस यही हालत है.

तुम्हे पाने के ख्वाब कैसे देखे ?
अपनी तो नींद ही नदारद है
तुम से मिलने के बाद
अपनी बस  यही हालत है.…


Thursday 7 November 2013

झाड़ पे ऊँचा चढ़ा  गए
उनसे आशिकी के  ख्वाब दिखा गए 
दोस्त साले कमीने थे
बस सुपुर्द-ए -खाक करवा गए

Thursday 31 October 2013

कुछ तो किया जाये

कुछ तो किया जाये
फुर्सत है चलो पिया जाये
तरबतर होकर इस मैकदे में
खुदी छोड़ , फ़क़ीर हुआ जाये 

दुःखती रग दबा गए

दुःखती रग दबा गए 
सामने आये और तड़पा  गए 
ग़लतफ़हमी थी के भूल बैठे है उन्हें 
हमें बस आइना दिखा गए 




Wednesday 30 October 2013

दर्द ए दिल की दवा नहीं 
पर मर्ज ये इतना भी बुरा नहीं 

गिरफ्त में जब इसके आओगे 
तरह-तरह के मशवरे पाओगे

वो तो शायद मिल जाये
पर तुम खुद ही खो  जाओगे 





Tuesday 29 October 2013

अपनी इबादत का असर दिखने लगा है
कोई हमें देख अब हँसने लगा है 

इफ्तिताह ए-इश्क़  में हो गई बड़ी मुश्किल 
जमाना हम पे अब फ़िक़रे कसने लगा है 

बदनाम हुए तभी तो नाम हुआ 
उनकी रज़ा मंदी में दिल चैन से अब धड़कने लगा है 

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इफ्तिताह=शुरुआत 



Monday 21 October 2013

एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए
दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए

भूले हैं रफ़्ता-रफ़्ता[1] उन्हें मुद्दतों में हम
किश्तों में ख़ुदकुशी[2] का मज़ा हमसे पूछिए

आगाज़े-आशिक़ी[3] का मज़ा आप जानिए
अंजामे-आशिक़ी[4] का मज़ा हमसे पूछिए

जलते दीयों में जलते घरों जैसी लौ कहाँ
सरकार रोशनी का मज़ा हमसे पूछिए

वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हमसे पूछिए

हँसने का शौक़ हमको भी था आप की तरह
हँसिए मगर हँसी का मज़ा हमसे पूछिए

हम तौबा करके मर गए क़ब्ले-अज़ल[5] "ख़ुमार"
तौहीन-ए-मयकशी[6] का मज़ा हमसे पूछिये

****ख़ुमार बाराबंकवी****
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शब्दार्थ:
1.धीरे-धीरे
2. आत्म-हत्या
3. प्रेम-आरम्भ
4.प्रेम का अंत
5.मौत से पहले
6.शराब का निरादर 

Monday 9 September 2013

फिर से वो हिमाकत कर गया 
हम में बस  हिकारत भर गया 
बहा के लहू सड़को पे 
दाव ए सियासत चल गया.… 









Friday 6 September 2013

रजामंद तुम भी थे हम भी  थे
मगर चाहत खामोश रही 
खिलाफत के सामने 

पशोपेश में तुम भी थे हम भी थे 
बागवत हो न सकी 
अपनों से अपनों के सामने… 

अब भटक रहे है  
तुम भी और हम भी 
करार कैसे आये गैरो के सामने











Wednesday 4 September 2013

और कितनी अपनी छीछालेदर करवाओगे ?
कब तक लोगो  की लानते खाओगे?

बहुत हुआ बहानो का दौर
कहाँ तक सच को छुपाओगे ?

सारा मुल्क तो तुम चाट चुके
अब और क्या नया गुल खिलाओगे ??

सत्ता सुख बहुत भोग लिया
अब और कितना आवाम को नचाओगे ??

शांति से रुखसत लोगे
या फिर इन्कलाब से जाओगे …



Tuesday 3 September 2013

अपनी जवानी फूल सी
और अपनों का बुढ़ापा
भार सा लगता है

जिंदगी का हर रिश्ता
तुमको  व्यापार सा लगता है।

मत भूलो  के
एक दिन तुम  भी ढल जाओगे
जैसा बोया है तुमने
वैसा  ही काट कर जाओगे …

Monday 2 September 2013

सूली पे चढ़े
और फनाह हो गए
जुर्म कुछ भी न था
हम बस शादीशुदा हो गए 
मुनासिब नहीं के 
रोज तेरे दर पे आऊँ 
तेरी इल्तिजा करूँ 
और तुझे मनाऊँ … 

इतना भी कमज़ोर नहीं 
के तुझे भूल न पाऊँ 
तेरी चाहत के फेर में 
अपनी हस्ती ही मिटाऊँ 
 
तेरा साथ न मिले तो न ही सही 
तेरी खुदगर्ज आशिकी से बेहतर 
अपना ये बेशकीमती वक्त  
किसी नेक काम में लगाऊँ … 

Sunday 1 September 2013

जेबे भरी है ,बड़ी है 
पर दिल छोटा है 
मेरी तरक्की का 
अब आलम यही है 

इससे तो  अच्छे थे 
पुराने ग़ुरबत के दिन 
जेबे खाली थी
और  दिल बड़ा था 






Saturday 31 August 2013

जो बार-बार गिरे
रोज गिरे 
लगातार गिरे 
बोलो किया ???

रुपिया … 
गलत जवाब … 
सही जवाब है … 

अपना बेगैरत  मुखिया 

नज़र नज़र का फेर है

वो किसी को देखें
तो इनायत है

और हम देखें  तो
नज़र लगने की शिकायत है 
तुम्हारी शराफत
किस काम की
ये तो है बस
सिर्फ नाम की 

मुल्क लुटता रहा 
और तुम चुप रहे
हाथ पे हाथ धरे 
बस बैठे रहे 

यह दरबार जनता का है 
जवाब तो देना होगा 
कुछ न कुछ इल्जाम 
तुमको  अपने सर लेना होगा 

कल जो तवारीख लिखी जाएगी 
तुम्हारी इस खता के लिए 
यक़ीनन तुमको भी 
मुजरिम ठहरायेगी 





जिस की लाठी उस की भैंस
तो कहानी कुछ यों है कि एक ब्राह्मण को कहीं से यजमानी में एक भैंस मिली। उसे लेकर वह घर की ओर रवाना हुआ। सुनसान रास्ते में वह पैदल ही चला जा रहा था। बीच रास्ते में उसे एक चोर मिला। उसके हाथ में मोटा डण्डा था और शरीर से भी वो अच्छा तगड़ा था। उसने ब्राह्मण को देखते ही कहा – “क्यों ब्राह्मण देवताखूब दक्षिणा मिली लगती हैपर यह भैंस तो मेरे साथ जाएगी।
ब्राह्मण ने झट कहा- क्यों भाई?”
चोर बोला- क्यों क्याजो कह दिया सो करो। भैंस छोड़ कर चुपचाप यहाँ से चलते बनोवरना लाठी देखी हैतुम्हारी खोपड़ी के टुकड़े- टुकड़े कर दूँगा।
अब तो ब्राह्मण का गला सूख गया। हालाँकि शारीरिक बल में वह चोर से कम नहीं था। पर खाली हाथ वह करे भी तो क्या करेविपरीत समय में बुद्धिबल काम आया। ब्राह्मण बोला- ठीक है भाईभैंस भले ही ले लोपर ब्राह्मण की चीज यों छीन लेने से तुम्हें पाप लगेगा। बदले में कुछ देकर भैंस लेते तो पाप से बच जाते।
चोर बोला- यहाँ मेरे पास देने को धरा क्या है?” ब्राह्मण ने झट कहा- और कुछ न सहीलाठी देकर भैंस का बदला कर लो।
चोर ने खुश हो कर लाठी ब्राह्मण को पकडा दी और भैंस पर दोंनो हाथ रख कर खड़ा हो गया। तभी ब्राह्मण कड़क कर बोला- चल हट भैंस के पास सेनहीं तो अभी खोपड़ी दो होती है।
चोर ने पूछा-“ क्यों?”
ब्राह्मण बोला-“ क्यों क्या जिस की लाठी उस की भैंस।
चोर को अपनी बेवकूफी समझ आ गयी और उसने वहाँ से भागने में ही भलाई समझी। किसी ने सच ही कहा है कि जिसमें अक्ल हैउसमें ताकत है।

तो अब समझे कि यह कहावत यहीं से शुरू हुईजिस की लाठी  उस की भैंस।

Thursday 29 August 2013


too many economists  in a government ruin the economy of a nation
एक सरकार में ज्यादा  अर्थशास्त्री  ,देश की अर्थव्यवस्था का  भट्टा बैठा देते है.… 

Tuesday 27 August 2013

बंदगी उसकी करता रहा
कुछ ना कुछ 
पाने की ख्वाइश लिए ...

उसको ही पाने की करता 
तो सब कुछ मिल जाता
बिन ख्वाइश किये  ...
जब भी खुद को
मुसीबत में पाता हूँ
अकेला पड़ जाता हूँ 
पिताजी का हाथ 
अपने कंधो पे पाता हूँ 

अपनी नादानियो पे 
कितना लजाता हूँ 
लड़कपन में मिली 
उनकी डांट की अहमियत 
अब जान पाता हूँ 

समझ में आता है हमारे 
बचपन में क्यों सख्त था
मिजाज उनका
जब रोजमर्रा की जिंदगी में 
अपने को बेहतर पाता हूँ 

खुदा सलामत रखे
साथ हमारा
अपने हर दिन  को
उनके तजुर्बो से
रोशन पाता हूँ …





***खाद्य सुरक्षा बिल पारित होने की बधाई ***

ये खेल सियासत का
बड़ा अजब  है

खिलाड़ी  की हमेशा फ़तेह
और देखने वाले की
हर दफे शिकस्त है

Monday 26 August 2013

सुना है उनकी तबियत नासाज़ है
चमचो की भीड़ एकाएक उमड़ी तो खबर हुई… 
बेतरतीब सा फैला है
सामान  मेरे घर का
मुद्दते हुई  किसी
खैरख्वाह को आये

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खैरख्वाह =शुभचिंतक 
तेरी ग़ुरबत भी
जल्द दूर हो जाएगी
बस तू उनकी तरह
अपने ईमान का
सौदा कर ले …

तुझको भी उनकी
बेपनाह मुहब्बत मिल जाएगी
बस तू  अपनी खुद्दारी से
समझौता कर ले…

तेरी ये मुफलिस सी आवारगी
जलवा-आराई में तब्दील हो जाएगी
बस तू अपनी जुबान की
सिलाई कर ले

तेरी भी हर मुराद पूरी हो जाएगी
बस तू सही-गलत के फेर में
न पड़ने का अपने से
वादा कर ले …

तेरी भी रंगत बदल जाएगी
बस तू इस हमाम में
सबके साथ नहाने का
पक्का इरादा कर ले…







Saturday 24 August 2013

खामोश रहने और सहने की
सजा क्या खूब पाई है
कहने को ही लोकतंत्र है
घोटाले  है ,महंगाई है

गैरो की बात छोड़ो
अपनों ने अपनी बस्ती जलाई है

बगैरतो के हाथो
मुल्क  की बागडोर सौंप 
खुद ही हमने
अपनी लुटिया डुबाई  है …







इश्क़ में राय बुज़ुर्गों से नहीं ली जाती...मुनव्वर राना

इश्क़ में राय बुज़ुर्गों से नहीं ली जाती


आग बुझते हुए चूल्हों से नहीं ली जाती

इतना मोहताज न कर चश्म-ए-बसीरत मुझको


रोज़ इम्दाद चराग़ों से नहीं ली जाती

ज़िन्दगी तेरी मुहब्बत में ये रुसवाई हुई


साँस तक तेरे मरीज़ों से नहीं ली जाती

गुफ़्तगू होती है तज़ईन-ए-चमन की जब भी


राय सूखे हुए पेड़ों से नहीं ली जाती

मकतब-ए-इश्क़ ही इक ऐसा इदारा है जहाँ


फ़ीस तालीम की बच्चों से नहीं ली जाती....मुनव्वर राना

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बसीरत=चातुर्य ,मकतब-ए-इश्क़ =प्रेम की पाठशाला , 
इदारा =सभा
अजब कायदा है सियासत का मेरे मुल्क में
मुलजिम भी खुद ,मुंसिफ भी खुद … 

Friday 23 August 2013

बसर रही है अपनी जिंदगी
कुछ इस तरह से
लोग खफा है
अलग-अलग वजह से...





Thursday 22 August 2013

और क्या मांगता
खुदा से ए बन्दे ?
रहमते बख्शी है
तुझपे बेपनाह उसने

अब तो कर अपनी
मेहनत पे यकीं
खैरात में मिली चीज
ज्यादा नहीं चलती …

खुदा दुश्मनों को  सलामत रखे 
अपनों की वकालत आजकल बंद है 
छल से
बल से
दल  से
खल से
चले सियासत हमारी

पैसो से
ऐसो से
वैसो से
कैसो से
चले सरकार हमारी

जात से
घात से
लात से
मात से
चले  नेतागिरी हमारी

किन्तु …

आन से
मान से
शान से
जान से
चले  सेना हमारी 












कब्र पे उनकी आये हो,
जरा सब्र तो धरो
अब तो मुखातिब हो ,
मुखतलिफ न रहो

न कर पाएंगे तुमसे
अब वो जिरह
दो  फूल अकीदत के
कम से कम  पेश तो करो। …


अपना रुपिया चवन्नी हो रिया है
डालर उसे हर दिन धो रिया है

देश का अर्थशास्त्री सो रिया है
मुंगेरी लाल के हसीन सपनो में खो रिया है

आम आदमी  रो रिया है
महंगाई का बोझा बस ढो रिया है.…





Wednesday 21 August 2013

त्यौहारो पर बाज़ार हावी है
बस खरीदारी ही खरीदारी है 
खुशियों के अब बदल गए मायने 
तोहफों से ही तय होती औकात हमारी है… 
बांध सकता कौन
तरंगिणी के उन्मुक्त प्रवाह को 
कौन ले  सकता 
गहरे जलधि की थाह को 

गगन के विस्तार को 
कौन जान पाया 
सम्पूर्ण धरा को 
कहाँ कोई  माप पाया

बरसते रवि अनल से
क्या कोई  बच पाता  है ?
अनिल के वेग समक्ष
कब कौन ठहर पाता है ?


अविष्कारों ,खोजो के बल पे
मनुज कितना इतराता
अपनी शक्ति का दंभ भरता
इसका विवेक मर जाता

संसाधनों का असीमित दोहन कर
वो सोचता है 
दक्ष है, सर्वेश्रेष्ठ है वो 
ये सब उसके लिये  ही बना है 

सहनशील प्रकृति कुछ समय 
उसकी यह  धृष्टता सहती 
और अति होने पर आपदा ला 
दुगुना वसूल कर लेती ....
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तरंगिणी =River,जलधि =Sea, रवि =Sun, अनल=Fire,अनिल=wind







Tuesday 20 August 2013

बेकार ,बेमतलब , बेफिजूल के सरकारी विज्ञापन = मीडिया को दी जाने वाली घूस 

Monday 19 August 2013

बड़ा तंग है मिजाज उनका
सामने आते है पर भाते नहीं … 



Sunday 18 August 2013

रो लेना जार-जार  मेरी कब्र पे आके
नए चिने गए ईंटो को तराई की जरुरत होती है 
दायें हाथ को पता नहीं
इनका बायां हाथ क्या करता है
ये अपने  नेता है भईया
देश इन्ही से चलता है???…

देशहित  की बाते पुरानी
कौन यहाँ इन्हें करता है
रेत,कोयला ,खेल,खेत  खा गए
पर पेट इनका कहाँ भरता है ??
हर बार ही  कुछ नया खाने को
इनका जी मचलता है

ये अपने  नेता है भईया
देश इन्ही से चलता है …

कुर्सी से चिपकते ऐसे
लाज शर्म बेचीं हो जैसे
गरीब की सुध ले ये  कैसे ??
इनके हर कार्य होते ही ऐसे
की दिन-रात  इन्ही का  परिवार पनपता है

ये अपने  नेता है भईया
देश इन्ही से चलता है…

हर किसी को अपने पैरो की जूती समझे
जो मन में आये वो कह दे
पांच साल जनप्रतिनिधी चुने जाने का
कितना दंभ यह भरता है
कुछ भी गलत इसे कब कहाँ अखरता है

ये अपने  नेता है भईया
देश इन्ही से चलता है…


धर्म न हुआ धंधा हो गया
वोटो के खातिर दंगा हो गया
इंसानियत का भाव मंदा हो गया 
धू-धू कर जलते घरो पर
यह कितना तेल छिड़कता है

ये अपने  नेता है भईया
देश इन्ही से चलता है… 









Saturday 17 August 2013

थाली में छेद
अर्थव्यवस्था फेल
महंगाई की रेलमपेल
मुंहजोरी में ही श्रेष्ठ

घर का भेद
शत्रु का खेल
सेना का मनोबल ढेर
इनकी कथनी -करनी बेमेल

हर रोज घोटाले अनेक
अपना ही घर भरे सदैव
मौनव्रतधारी धृतराष्ट्र कृपा विशेष
खुल्ली छूट ,कुछ नहीं निषेध

किसी की नीयत नहीं नेक
किसी बात का नहीं खेद
सत्तालोलुपो का छदम वेश
जमीर तनिक भी नहीं शेष

साम्प्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्ष
मिथ्या दुष्प्रचार,मन में द्वेष
जल्द तख़्त छूटने के मिल रहे स्पष्ट संकेत 
भयाक्रांत हो  मचा रहे सिर्फ क्लेश …



















अपने मक़सद से अगर दूर निकल जाओगे

ख्वाब हो जाओगे अफ़सानो में ढल जाओगे


ख्वाबगाहों से निकलते हुए डरते क्यों हो

धूप इतनी तो नहीं है के पिघल जाओगे



अब तो चेहरे के खद ओ ख़ाल भी पहले से नहीं

किसको मालूम था तुम इतने बदल जाओगे



दे रहे हैं तुम्हे जो लोग रफाक़त का फरेब

इनकी तारीख पढ़ोगे तो दहल जाओगे



अपनी मिट्टी पे ही चलने का सलीका सीखो

संग ए मरमर पे चलोगे तो फिसल जाओगे



तेज़ क़दमों से चलो और तसादुम से बचो

भीड़ में सुस्त चलोगे तो कुचल जाओगे



हमसफ़र ढूँड़ो न गैरों का सहारा चाहो

ठोकरें खाओगे तो खुद ही संभल जाओगे



तुम हो एक ज़िंदा जावेद रिवायत की मिसाल

तुम कोई शाम का सूरज हो जो ढल जाओगे



सुबह सादिक़ मुझे मतलूब है किस से माँगूँ

तुम तो भोले हो चिरगों से बहल जाओगे

( इक़बाल अज़ीम )

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रफाकत = रफीक या साथी होने का भाव , मेल-जोल
तसादुम =परस्पर टकराना
जावेद =स्थायी
रिवायत =सुनी सुनाई बात
सादिक =सत्यनिष्ठ 

Friday 16 August 2013

आज एक  नेक काम करते है
चलो मैकदे संग-संग जाम भरते है 
हफ्ते से पड़े इस मुर्दा शरीर में  
चलो फिर से जान भरते है ....

HAPPY WEEKEND...CHEERS...:)


Tuesday 13 August 2013

बड़े इज्ज़तदार है वो
कौम के  सिपहसलार है वो
रहनुमा बन लोगो के
हुए काफी मालदार हैं वो…

सुना है कुर्सी  के लिए
अपना ज़मीर बेच दिया
लालच की बुनियाद पर
फरेब का महल खड़ा किया

अब वो पहनते है खादी
और घूमते है लाल बत्ती में
नाम शुमार है सियासत की 
बड़ी हस्तियों में …





यूँ ही न लपेटो
मेरी हर बात को
जरा गौर से देखो
इस दिल को मिले घाव को

खाली-मूली  में हमारे तेवर
बागी न हुए
अल्फाज तल्ख़ और हम
इंकलाबी न हुए

कुछ तो शरारत की  होगी
इस नामुराद सियासत ने
हमारे साथ
वरना हम भी चैन से
घर बैठते
हाथो पे धरे हाथ ....
पराजय स्वीकार्य नहीं
अपने हौसलों  की
कभी भी  हार नही

लड़ता रहूँगा ,भिड़ता रहूँगा 
मुसीबतों से जूझता रहूँगा 

नहीं थकूंगा , नहीं रुकूँगा
लक्ष्य को अपने नहीं चूकूंगा

क्योंकि ये संसार
मेहनतकश  लोगो के लिए है
उन्ही की  होती सदैव
जय और विजय है …









जितना ऊँचा उठते है
उतना ही नीचे गिरते है
अपने देश में नेता
ऐसे ही मिलते है …



Monday 12 August 2013

क्यों मचाते हो चरस ?
काहे बो रहे  धान ?
क्यों करते  हो लकड़ी ?
काहे बाँटने लगते
हर बात पे अपना ज्ञान ?

हम नहीं इतने भी नादान
आगे बढ़ो और अब
हम पे कृपा करो श्रीमान …


Sunday 11 August 2013

हम में ही कुछ कमी रही होगी
तेरी नज़र यूहीं न फिरी होगी …

कल तक तो थे तुम
हमारे  कायल कितने
खता हम से जरुर
बहुत बड़ी हुई होगी … 
शिष्ट हो
निष्ठ हो
अभीष्ट हो
उत्कृष्ट हो
बच्चे हमारे

स्वस्थ हो
मस्त हो
आश्वस्त हो
सरपरस्त हो
बुजुर्ग हमारे

सहज हो
प्रत्यक्ष  हो
उपलब्ध हो
समृद्ध हो
मित्र हमारे

धुले हो
खुले हो
मिले हो
खिले हो
दिल हमारे

विश्वसनीय हो
दर्शनीय हो
प्रशंसनीय हो
अतुलनीय हो
कर्म हमारे

सीधी हो
सपाट हो
विराट हो
विशाल हो
सोच हमारी

खुश हो
खुशहाल हो
रोशन हो
मालामाल हो
घर हमारे ….




























ग़दर क्यों मचाई तुमने
हमारे देर से घर आने पे ?
हम कभी नहीं करते मौज
काम के बहाने से …

मुद्दे और भी है,
जो वख्त लेते है
जरा यकीं तो करो
जो हम कहते है

शक करना तो तुम्हारी
फितरत में शुमार है
पर इस अंधी दौड़ की
हम पर बेतहाशा मार है

दौड़ते रहते दिन-रात
एक बेहतर कल के लिए
अपना सुकूं खो दियें  है
चंद सिक्को के लिए …







वो बेवजह नहीं काटता
तलवे नहीं चाटता
लोगो को नहीं बांटता 

सीनाजोरी नहीं करता 
अपनी शक्ति का दंभ नहीं भरता 
सत्ता के लिए नहीं मरता 

कभी झूठ नहीं बोलता 
swiss बैंक में खाता नहीं खोलता 
बिन पेंदी के लोटे की तरह नहीं डोलता 

परिवारवाद नहीं चलाता 
भ्रष्टाचार  नहीं फैलता 
संसद में नहीं चिल्लाता 

गिरगिट के जैसे रंग नहीं बदलता 
कुर्सी के लिए  नहीं मचलता 
पैसे के लिए नहीं उछलता 

खादी नहीं पहनता 
अपनी शर्म को नहीं बेचता
शत्रु समक्ष घुटने  नहीं टेकता

इसलिए इस नागपंचमी
आप सब से  अनुरोध है

नेताओ को नाग  न कहे
उनके लिए उनके कार्यकलापो  अनुसार
अन्य कोई और उपयुक्त शब्द चुने

नाग को सिर्फ नागदेवता मान
सच्चे मन से उनकी स्तुति करे …


















Friday 9 August 2013

तेरे  तीखे तलख तेवर
मेरी मजबूर,मजलूम मुहब्बत 

संग साथ-साथ रहे
तो कैसे रहे ???
क्या क्या छोड़े ???
क्या क्या सहे  ???

तेरी तंग, तुनक मिजाज तबियत 
मेरी मस्त ,मलंग ,मनमौजी फितरत 




अहसान कौन
मानता मुल्क का
वो तो अपने इल्म के
गुरुर में जीते है

देने को और कुछ नहीं
तोहमतो के  सिवाय
इनके पास

बस अपना मतलब निकाल
रुखसत यहाँ से
ये अहसान फरामोश हो लेते है 

Thursday 8 August 2013

अजी तुमने
क्या पी शराब ??
कब कहाँ
मचाया बवाल ?

भसड फैलाई ?
ग़दर मचाई ?
अंग्रेजी सुनाई ?
बोतल ख़त्म करने की
शर्त लगाई ??

क्या कभी
ऐसे कदम लड़खड़ाये ?
शाम के घुसे
यारो पर  लदे
सुबह को ही
मैकदे से घर को आये …

क्या कभी जोर से चिल्लाये
अपनी न हुई
माशूका के नाम के
नारे लगाये ???

किसी  को गरियाये ??
बापू द्वारा  पकडे जाने पर लजाये ?
hostel के कमरे में
खाली बोतलों को सजाये ??

कभी रात भर
पलटियां  मारी ??
सुबह hangover ने
किया सिर को  भारी ??
निम्बू पानी से नहीं
एक और छोटा ले
दूर की अपनी
ये आफत सारी  ??

विलायती छोड़
देशी को सुख लूटा
पहली धार के ठर्रे ने
स्कॉच को भी
क्या कभी किया फीका ??

अगर नहीं तो फिर
तुमने क्या पी शराब ??
कब कहाँ
मचाया  बवाल ?








Wednesday 7 August 2013

उनकी गुस्ताखियाँ
किस कदर परवान चढ़ती है
हर रोज ही 
हम सबको  हैरान करती है 

अपने कहे से 
उनको कब कहाँ गुरेज ???
उनकी जुबां तो हमेशा 
खंजर का ही काम करती है 

पाले है कनेर के शजर  
हमने   आंगन में अपने 
अब उनसे  मीठे फल की चाहत 
हमको  ही बदनाम करती है 

धुँआ  घर की चौके से नहीं उठता मेरे 
हर रोज की फाकाकशी ही 
अपनी ज़िन्दगी बयां करती  है 

खुदगर्ज सियासत चिपकी  
जोंक सी मुल्क को मेरे 
रफ्ता-रफ्ता  हमारा  ही 
कत्लेआम करती है 






अपनी फाकाकशी में
उनसे आशिकी कर बैठे 
अंजाम की परवाह बिना 
हाय ये क्या गजब कर बैठे

जाल उनकी मस्त निगाहों ने फेका 
और  हम अपनी औकात भूल बैठे 
अपना ये मरदूद, मुफलिस दिल 
हाय क्यों बिन सोचे ही  दे बैठे 

शौक बहुत महंगे है उनके 
हम कंगाली में आटा गीला  कर बैठे 
अपने ही  हाथो से 
हाय अपनी ही जेबतराशी कर बैठे 

 








Tuesday 6 August 2013

हमारे इस दिमाग में
तरह-तरह के
ख्यालो  का  डेरा है

अपनी पेट भरने की
चिंता सबसे पहले
देश पीछे कहीं
छूटा अकेला है

मरता है तो मरे
सरहद पे सैनिक
उसकी सुध कौन लेता है ???

स्वार्थ से
लहू श्वेत हो गया हमारा
जमा रहता
अब धमनियों में कहाँ बहता है ??

बेफ़जूल है
अब वतन परस्ती की बाते
इनसे हांसिल क्या होता है ???

ढूंढे से नहीं मिलता
नई नस्ल को
सच्चा रहनुमा कोई
अपना मुल्क अब
कितनी किल्लत में जीता है
















भरे दिन में 
कभी इतना अँधेरा न था 
जलालत बढ़ती गई  
और हुकूमत  सोती रही 

Saturday 3 August 2013

इस जीवन में
बस इतना ही कमा पाया हूँ
कुछ सच्चे दोस्त बना पाया हूँ

बहुत खुशकिस्मत हूँ
जो मिले है यार ऐसे
खुद से ज्यादा भरोसा
जिन पे कर पाया हूँ …













Friday 2 August 2013

अपने आप में सिमटते जाते है 
कितने तंग हम नज़र आते है 

हिमाकत खुद की है 
तो शिकायत किस से करे ?
रोज खुद की  नज़रो में 
खुद को ही मुजरिम पाते है 




Sunday 28 July 2013

मत हो कभी
जीवन में निराश
कायम रहे
अपने पे विश्वास

माना समस्याएं  है
परेशानियां  है
सिर  पे  पड़ी
सैकड़ो जिम्मेदारियां हैं



तनाव है ,दबाब है
अपनों से मनमुटाव है
हर दिन ही लगा रहता
शिकायतों का अंबार है

पर जीवन भी तो
इसी का नाम है
दुःख के साथ इसमें
सुख भी तो विद्यमान है


और संघर्ष कर
सभी  कष्टों से पार पाना ही
श्रेष्ठ मनुष्य का काम  है …




















नेता की बकी,
झेलते सभी
खौफनाक ,वाहियात
बिलकुल भी नहीं सही

अभी कही ,पलट अभी
मन करे इन्हें पटको वहीँ
गैरत गर्त में गिरी

मुल्क में गंद मची
हँसी , गुस्सा और तरस   भी
अब हर रोज का आलम यही …

नेता की बकी,
झेलते सभी



अपनी ज़िन्दगी
सांप-सीढ़ी का ही  खेल है
किस्मत पासे सा फेकती 
और हर दफे सांप से ही मेल है 

सीढ़ी खुद बने हुए है 
लोग चढ़ते रहते 
कहते हम बड़े  नेक है

इस्तेमाल करते
और भूल जाते
इस काया में
डंक के चिन्ह अनेक है


Thursday 25 July 2013

इत्ती भाग दौड़ से ,रे मूरख
बोल क्या बड़ा उखाड़ लिया ???
भविष्य की चाह में
अपना वर्तमान भी बिगाड़ लिया



Wednesday 24 July 2013

तन के लिए सब खाते
तू मन के लिए भी खा

मनुष्य जन्म पाया है तूने
तू कर्म भी  वैसे कर जा
बस अपनी 
इत्ती सी खता है 
खुद पे ही 
भरोसा किया है 

नामुराद हूँ
दुनियाँ की नज़र में 
लीक से हटके चलना 
जो शुरू कर दिया  है 

साथ कोई न आये 
तो रत्ती  भर भी गम नहीं 
फैसला ये दिमाग से नहीं 
अपने दिल से लिया है… 



बार-बार बना हूँ
कितना फर्जी इस जहां में
कितनी बार उधडा हूँ
न जाने कहाँ कहाँ से …

Monday 22 July 2013

बड़ी आसानी से
ज़िन्दगी को आसान कर लिया है
मुंह पे  लगाम धरी है
और सोचना बंद कर दिया है …



Sunday 21 July 2013

आज हम पे वो
बड़े मेहरबां  है
हमारे कसीदे पढ़ती
उनकी जुबां है 

ख्वाहिशो का ही मौसम
एक दफे फिर से जवां है ...



खबर:- खाद्य सुरक्षा बिल के बदले में आय से अधिक संपत्ति के मुकदमे वापस हों सकते है ...

क्या फिर से गिरने वाले  है  
नेताजी खान्ग्रेस की झोली  में ???
हमारे मुलायम कठोर थे ही कब ...???




Saturday 20 July 2013

मै कोई तमाशा हूँ
जो इस कदर देखते हो
क्यों मेरे जिस्म को दागते हो
बार बार अपनी नजरो से ...
मेरे कहे पे यकीं न कर 
बदलते माहौल की रंगत तो देख 
खोल दे अपने दिलो-दिमाग के बंद दरवाजे
इस नई फिजा में सैर करके तो देख ...



जब व्यवस्थायें  पुरानी हो जाये
सरकार बेमानी हो जाये
जब न्याय नहीं धिक्कार मिले
शोषित संपूर्ण  समाज दिखे

क्रांति हो क्रांति हो...

जब शब्द सुने न जाते हो
सेवक बन जाते शासक हो
जब अपना हित देशहित पे भारी हो
भ्रष्टाचार की महामारी  हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब शिक्षा अंको का खेल लगे
पैसे की ही रेलम पेल लगे
जब डिग्री रोटी न देती हो
योग्यता दम तोड़ देती हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब अस्पताल खुद बीमार पड़े
इनमे मौतों का अम्बार लगे
जब चिकित्सक के पास साधन न हो
देने को सिर्फ कोरे आश्वासन हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब रक्षक भक्षक बन बैठा हो'
वर्दी  पर हावी  नेता हो
जब जनता की सुध कोई न लेता हो
जुगाड़ ही  सब कुछ देता  हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब न्याय प्रक्रिया धीमी हो
अन्याय की ही गहमागहमी हो
जब मुक़दमा कील सा चुभता हो
तारीख दर तारीख खिचता हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब चुनाव पैसे-ताकत का संयोजन हो
पद पाना ही एकमात्र प्रयोजन हो
जब राजनीति स्वार्थ-सिद्धि  लगे
परिवार की ही  बेल फूले फले

क्रांति हो क्रांति हो...

जब धर्म -अधर्म में भेद न हो
कुकृत्यो पे किसी को  खेद न हो
जब लहू स्वेत सा लगता  हो
पहली प्राथमिकता पैसा हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब देश की गिरती साख लगे
पडोसी रोज गुस्ताख करे
जब सियासत अपनी लाचार दिखे
सेना का मनोबल तार-तार करे

 क्रांति हो क्रांति हो...

जब अर्थव्यवस्था मजाक लगे
रूपया रोज गर्त में गिरे
जब महंगाई कमरतोड़ बढे
हर तरफ हाहाकार मचे

क्रांति हो क्रांति हो ...

जब निर्धन के घर अँधियारा रहे
मुह से छिनता निवाला रहे
जब गरीबी एक अभिशाप लगे
पूर्व जन्म का किया कोई पाप लगे

क्रांति हो क्रांति हो...

जब जीवन सुरक्षित न लगता हो
हर चौक पे बम फटता हो
जब मौत सिर पर नाचती हो
और हुकूमत जिम्मेदारी से भागती हो

क्रांति हो क्रांति हो.












Friday 19 July 2013

कम से कम आ जाना 
मेरी क़ब्र पे फातिया पढने 
जिंदा रहते तो तुम्हे 
हमारे लिए फुर्सत ही नहीं 
तेरी गुस्ताखियों पे 
हम शांत है 
आम तौर पे हम 
अमन पसंद इंसान है 

इसको तू हमारी 
कमजोरी न समझना
हद में रहना 
हमें ज्यादा मत कुरेदना  

हम ठंडी राख के नीचे छुपे 
दहकते अंगारों की खान है ...




दम है तो दिखा
किसी नेता को
उसके AC चैम्बर से हिला

अपने गाँव की
प्राइमरी पाठशाला में
एक दिन अचानक बुला
बच्चो की Mid Day Meal खिला

ज़रा उसे भी तो
इसका स्वाद  चखा

और रोज हो रहे ऐसे
तंदुरुस्त भारत निर्माण के
तनिक  दर्शन तो करा ...

इस तरह नई
रंजिशे निभाई गई
के आंखे भी आँखों से
न मिलाई गई 

जी तो किया कई बार
फिर से बाहों में भर लेने का 
पर बेजा अकड़ ही 
अपनी  हसरतो पे छाई रही 




Tuesday 16 July 2013

***ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में / अदम गोंडवी***

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश 
नज़ारों में
मुसल्सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में

न इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई
खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लंबी क़तारों में

अदीबो! ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुलम्मे के सिवा क्या है फ़लक़ के चाँद-तारों में

रहे मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तज़रबे से
बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों में

कहीं पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद
जो है संगीन के साए की चर्चा इश्तहारों में
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मुसल्सल=लगातार ,अदबी=साहित्यिक ,इदारो =सभाओ ,
मुलम्मा =किसी वस्तु  पर चढ़ाई गई सोने या चांदी की पतली परत, 
रानाई=हुस्न/सुन्दरता,अदीबो=साहित्यकारों 

Monday 15 July 2013

for the fast friends arguing on credentials of NaMO & getting annoyed with each other... 


गुनाह किसने किया 
तोहमत किसके सिर लगी 
इस हिसाब के लिए 
अब खुदा ही सही ...
उसी के  पास सबका खाता-बही 
हम तुम  तो काट ही लेंगे 
अपनी बची ज़िन्दगी 
तेरी कही भी सही 
मेरी कही भी सही ...

Sunday 14 July 2013

हुनर बिकता है ,
इल्म बिकता है 
सिक्को की खनक के आगे 
बोलो क्या टिकता है???

पर कुछ लोगो में
होती है खुद्दारी
जो सब पे पड़ती है भारी ...
इसी पे टिकी दुनियाँ हमारी ...


नेता वही जिसमे नेतृत्व करने की

नेता वही जिसमे 
नेतृत्व करने की 
झलक मिलती हो 

ना के वो जिनमें 
सिर्फ चापलूसी की 
ललक मिलती हो 

कुछ ही पाते पद 
अपनी योग्यता के 
आधार पर 

और अधिकांश 
भोगते सत्ता -सुख 
विशेष गौत्र-परिवार में 
केवल जन्म  पाकर 

Saturday 13 July 2013

नमो का ही नाद है ...

***THE PUPPY SAGA***

नमो का ही नाद है 
अकारण ही विवाद है 
सत्तापक्ष हताश है 
मुद्दों की तलाश है 

मिथ्या सब प्रचार है 
मीडिया का साथ है 
डूबता इनका जहाज है 
भागते मूषको का 
निराशोन्मत्त ये प्रयास है 
----------------------------- 
निराशोन्मत्त=Desperate 







Friday 12 July 2013

बात का बतंगण

बात का बतंगण 

बनाये बइठे हो 


जबरदस्ती  का बवाल 

मचाये बइठे हो 


दिल में दुश्मनी का 

गुबार उठाये बइठे हो 


हम मुफलिसों से झगड़ के 

तुम्हे हांसिल  होगा क्या 


बेकार का ही मजमा 

लगाये बइठे हो

क्यों टोकते हो हमें

क्यों टोकते हो हमें
हमारे  पीने पे बार-बार

अब तो सच कह दो -
कि तुम्हे कभी भी न आती है
हमारी  खुशियाँ रास


the gen x

कलमें संवारते है
और कलम को त्यागते है
Class  नहीं,saloon में ही
अपना दिन गुजारते  है...

बड़ो की हर  सीख को
पुरानी  कह कर  के टालते है
दोस्त -यारो  को ही
अपना सरमौर मानते है

माँ-पिता की बात में
नुख्स   निकालते  है
और फिजूल जेबखर्च के लिए
रोज हाथ पसारते है ...

बात ऐसे करते जैसे
दुश्मन दुश्मनी निभाते  है
मुंह से पत्थरों की
बौछार मारते है

सुबह से शामJeans,T Shirt,slippers
में गुजारते  है
लापरवाह लिबास को ही
नया  fashion मानते है

अपनी समृद्ध विरासत को छोड़
ये पश्चिम को भागते है
उनके शोर को ही
ये संगीत जानते  है

परिपक्व होने का दंभ भरते
सब कुछ करना चाहते है
पर जरा से तनाव  पे  ही
अपने हाथ -पाँव फुलाते  है

रफ़्तार के शौक़ीन
ये उड़ना चाहते है
पर मेहनत को bypass कर
सब कुछ instantly मांगते है


जिंदगी को एक
Time Pass जानते है
और अपने Time pass प्यार को
अपनी जिंदगी मानते है .....










मै चोरी करूँ ,तुम छिपाओ

मै चोरी करूँ ,तुम छिपाओ
तुम चोरी करो मै  छिपाऊँ

आओ सब मिल
इस छुपा- छुप्पी  को खेले
और देश को पेले ...

Thursday 11 July 2013

जिंदगी के मायनों को

जिंदगी के मायनों  को 
बदलते देखा है 
अपने को अपने आप में 
सिमटते  देखा है

शिकायत किसी  से भी नही
कई बार खुद को 
खुद की ही नज़रों में 
गिरते देखा है ....

गन्दगी में उतरने में ...

गन्दगी में उतरने में
पहले कदम की ही
हिचक होती है

दामन  में पहले दाग के 
लगने तक  की ही
 झिझक  होती है

नाचता है इंसान फिर
शैतान  की तरह
अपनी जेबे भरते रहता
किसी हैवान की तरह ..





बड़े अधिकारियो का

बड़े अधिकारियो का
भ्रष्टाचार  देखता हूँ
तो सोचता हूँ ...

जब इन्हें  गिरना ही था
तो इतना ऊँचे उठे ही क्यों ...


Tuesday 9 July 2013

जिंदगी कम बची है ...

जिंदगी कम बची है 
और तेरे गुनाह है ज्यादा 
अब तो उसकी इबादत का
 पक्का  इरादा कर ले ...


Monday 8 July 2013

जरुर कुछ बेशकीमती
मिला होगा
उनका  ज़मीर यू हीं
ना बिका  होगा...









दस्तरखान सजाते रहिये 
जिगरी यारो   बुलाते रहिये 
ज़िन्दगी का क्या भरोसा 
जाम से जाम  टकराते रहिये ...

सरकार




सरकार एक  अदद रेल   टिकट तो पूरी ईमानदारी  से दिला नहीं सकती और बात कर रही है देश  के करोडो लोगो को खाद्य सुरक्षा देने की ....

अलग सा सूनापन है

कामयाबी का भी
अलग सा सूनापन है
मतलब के लिए जुड़ते सभी
न कोई अपनापन है

इससे तो
पहले ही अच्छे थे
दोस्त कम थे
लेकिन सच्चे थे ...

Sunday 7 July 2013

मुफ़ीद नहीं

किसी के लिए हम मुफ़ीद नहीं
इसलिए कोई हमारे मुरीद नहीं
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मुफ़ीद=फायदेमंद , मुरीद =चेले ,शिष्य 

मेरे चेहरे की हंसी पे न जा

मेरे चेहरे की हंसी पे न जा 
दौलत की इस फरेबी पे न जा 
नज़दीक आ ज़रा दिल में झांक के तो देख 
दूर से इस लिबास की सफेदी पे न जा ....

Saturday 6 July 2013

हम तुम्हारी कला से अनभिज्ञ

हम तुम्हारी कला से  अनभिज्ञ
तुम हमारे हुनर से अनजान ...

तो फिर क्यों न
छोड़े सारी अदावते
एकसाथ मिल हासिल करे
और नए मुक़ाम

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अदावत =शत्रुता =enmity 

मरदूद यारो ने

मरदूद यारो ने
न  जाने कौन से जनम का
इन्तेकाम लिया

आगाज़ ए आशिकी का
चंद मिनटों में
काम तमाम किया

मसखरी में सालो ने
हमारी नई नवेली लैला को
हमारे नाम से  छेड़ा
और भाभीजान नाम दिया ...

शायरी ग़ुरबत में ही आती है

शायरी ग़ुरबत में ही आती है
अमीरी तो अल्हेदा फन सिखाती है

Friday 5 July 2013

निज़ाम उल्टा है

हमारे  मैकदे का
निज़ाम उल्टा है
साकी  खुद ही बेखुद
पर रिंद अब  तलक  सुलटा है
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मैकदे =शराबखाना (Bar), निज़ाम =प्रबंध ,व्यवस्था (arrangement ) , साकी =शराबखाने में शराब पिलाने का काम करने वाला (Bartender )
रिंद =शराबी