Tuesday 4 August 2015

जम्हूरियत का खुल के तमाशा देखिये
दिखावे पे ही इसको अमादा देखिये

बनते है  जो मसीहा हम मुफलिसों के
उनके घर जश्न और शोर-शराबा देखिये

जुटी है महफ़िल सियासी लोगो की
सत्ता-विपक्ष की यारी  का खुलासा देखिये

राजसी ठाठों  में थम सी  गई मुखालफत
इस सियासत में  अवाम की हताशा देखिये

है खुला दिखावा  दौलत और हैसियत का
समाजवाद की यह नई परिभाषा देखिये

फिर लटक गया किसान मुल्क में कहीं
छोटे से कोने में अख़बार की दिलासा देखिये