Wednesday 18 March 2015

रिश्ते कब होते है
सीधे सपाट
हो जाते अक्सर
हमारे अहम का शिकार

जाने-अनजाने
पड जाती कितनी गांठे
और हम  कर देते
एक दूसरे को अस्वीकार

फिर  बार-बार आता
एक ही ख्याल
बोलना चाहिए था
थोड़ा सोच विचार



 

Sunday 15 March 2015

***GSVM Medical college में हमारे समय में प्रचलित कुछ short forms (भावार्थ सहित)***
1. KLPD - अत्यधिक श्रम के उपरान्त अपेक्षित परम आनंद की प्राप्ति होने के जरा सा पहले सब कुछ गुड-गोबर हो जाना ....हाथ आना पर मुंह को ना लगना ....
2. MCA - College बंटने वाला एक ऐसा अनुदान जो बालको इस जन्म में तो कभी भी नहीं मिल सकता...
3. NCNCNNJK - ये ऐसे नखरे है जो चिरकाल से जारी है और चिरकाल तक जारी रहेंगे ...जब तक इनको उठाने वाले जिंदा है...
4. LLT -नौसीखियो की ऐसी परीक्षा जिसको लेने वाला यह मानता है की उन्हें सम्पूर्ण ज्ञान मिल चुका है...
5. BBC -ऐसी उपाधि जो नियमित रूप से 'बहुत ही बड़ा उछालने' वालो को मिलती है...
6. FRCS -कॉलेज के शुरू के दिनो में वरिष्ठो द्वारा प्रदान की जाने वाली instant डिग्री...
7. MD- वो ही प्रक्रिया जो महाभारत में गांधारी ने अपने पुत्र दुर्योधन के शरीर को वज्र समान कठोर बनाने के की थी ...यह कार्य यहाँ वरिष्ठो द्वारा कार्यान्वित होता है
8. PLD -प्रचंड युवाओ को मिलने वाला ख़िताब जिससे वो जीवन भर गौरवान्वित होते रहते है...
9. MLD -दुर्घटना स्वरुप मिला ख़िताब जिसका जिक्र न ही हो तो बेहतर
10. DLP - ऐसी सुस्त,ढीली-ढाली हस्ती जिससे कछुवा भी शर्मा जाये...
11. WT -एक ऐसा जोखिम जिसे उठाने वाला अगली बार भी इसे उठाने को लालायित रहता है ...
12. SAKAKU - लडकियों द्वारा प्रयोग में लाये जाने वाले very simple, non malignant so called अपशब्द...
13. GH - ऐसा महल जिसके अन्दर क्या होता है ये जानने की प्रबल उत्सुकता बाहर हर किसी में होती है...
14. BH -एक ऐसा किला जिसकी मजबूत दीवारे बिलकुल ही पारदर्शी है ...अन्दर क्या हो रहा है ये जगजाहिर है...
15. DH-एक ऐसा विशाल कक्ष जहाँ ची-ची कर सरकते धातु के बने स्टूलो की धव्नि के मध्य पढाई गई बातो का सबसे ज्यादा OHT i mean Over Head Transmission होता है...
16. LT- Wooden benches के ascending order वाला वो स्थान जहाँ बैठ सामने से आते हुए चेहरों को निहारने में घोर आनंद का अनुभव होता है ...व्याख्यान से पूर्व के 15 min, एक घंटे वाले व्याख्यान से ज्यादा रसदाई होते है...
17. NS- एक ऐसी supply जो चाहे हो न पर seniors इसके बारे हरदम पूछते रहते है ...
18. PG-एक ऐसी गाजर जो पूरे MBBS हमेशा आँखों के आगे लटकी रहती है....Internship में यह हड्डी में परिवर्तित हो जाती और इसके लिए श्रमदान करने वाले कुत्तो में...
19. DP-तनाव मुक्ति के लिए बूढ़े पुजारी की उपस्थिति में होने वाला एक ऐसा भव्य अनुष्ठान जो आदिकाल से कॉलेज परिसर में होता आया है और आगे भी सदैव होता रहेगा...
20. BC - 'कॉलेज की आत्मा '...कानो में रस घोलती वो मधुर धव्नि जिसको उत्पन्न करने वाले और सुनने वाले सभी लोग दिव्यता को प्राप्त करते है ...

Thursday 12 March 2015

हम थे मसरूफ अपने
रोजमर्रा के कामों में
अपनी सहूलियतों के हिसाब से
तरजीह दे उनको  निबटाने में

ख्वाहिशो की परवाज पे  सवार
खुद की ही  सोच 
और सब से अनजान 
इस बीच 
पता ही नहीं चला
मां-बाप कब बूढ़े हो गए ?

Monday 2 March 2015

कुछ कड़वी यादों को अगर छोड़ दे तो अतीत हमेशा प्यारा ही लगता है , उसमें अच्छा या बुरा  सब कुछ घटित जो हो चुका होता है , वर्त्तमान का  बिना फल वाला संघर्ष या फिर भविष्य की अनिश्चतता    नहीं होती और अपनी  त्रुटियों को सुधार कर आगे के   जीवन को बेहतर बनाने की बहुत सारी सीख भी होती है... 

आज से पच्चीस वर्ष पहले त्यौहार इतने व्यवसायिक न थे , बाजारवाद इतना हावी न था जो हमारी सोच को प्रभावित कर सके , जश्न मनाने का तरीका अपनापन लिए हुए था , एक दूसरे के सहयोग से काफी काम होते , मानवीय स्वाभाव की मूलभूत खामियां उस समय भी थी पर आज के जैसा अपनी विशिष्ठता का अहंकार न था ....

होली के दिनों की अपने उस सुनहरे अतीत की यादें आज भी मुझे अपनी जमीन से जोड़े रखती है और अपने  द्वारा ही बनाये गए इस भागदौड़ भरे मौहोल में संभवतः संरक्षित करती है मेरे वजूद को ..... ........................................................................................................................

होली से दस  दिन पूर्व  पास-पड़ोस की आंटियों का जमघट आज हमारे घर पर है , आज पापड़ और चिप्स बनाने का प्रोग्राम है , कल शाम ही सब्जी मंडी से ३ धड़ी आलू मंगवा लिए गए  थे , परचून से साबूदाना, मसालें  और तेल भी आ चुका है , पिछले साल खरीदे  हमारे पहले फ्रिज की पन्नी को माँ ने उस समय धोकर  सहेज के रख लिया था और आज उसके उपयोग का दिन आ ही गया  , घर के पांच लीटर के प्रेशर कुकर से आज बात नहीं बनेगी इसलिए मेहता आंटी के यहाँ से उससे बड़ा प्रेशर कुकर मंगवा लिया है , ईमानदस्ता पन्त जी के यहाँ से मंगवाया गया है, पूरे मौहल्ले भर एक ही तो ईमानदस्ता है जो जरूरत के समय हर किसी के घर घूमता रहता है , हमारे  घर का कद्दूकस अपनी धार खो चुका  है , इसमें कसने से आलू के बढ़िया चिप्स नहीं निकल पाएंगे यह जानकर माँ ने कल शाम को ही बबलू के यहाँ से उनका इम्पोर्टेड वाला कद्दूकस मंगा लिया था ... 

इतने सारे पापड़ , चिप्स , कचरी आदि को  बनाने में बहुत सारी गैस लगने वाली है और गैस एजेंसी के नखरे और  त्यौहार के वक्त सिलिंडर के लिए मची मारामारी  के मध्य गैस खत्म होने का जोखिम  नहीं लिया जा सकता इसलिय अपना पुराना मिटटी के तेल से चलने वाला स्टोव भी निकाल लिया गया है , महरी जो अक्सर हमारे राशन कार्ड से मिटटी का तेल ले जाती  है उससे दो लीटर यह जीवश्मीय ईंधन  आज के इस खाद्य सामग्री निर्माण कार्यक्रम के दौरान आवश्यक अतिरिक्त उष्मीय ऊर्जा की जरूरत को पूर्ण करने के लिए मंगवा लिया गया है ...

स्कूल से बचने का इससे बढ़िया बहाना मुझे क्या मिलेगा ? इसलिए माँ के बार-बार मना करने पर भी आज मै इस स्कूल नहीं गया  इस तर्क के साथ के अगर बीच में किसी समान की जरूरत पड़ गयी तो भाग दौड़ कौन करेगा ??

आंटी लोगों का हमारे घर जमवाड़ा लग चुका है , पिताजी कॉलेज जा चुके है इसलिए पुरुष विहीन इस घर में बिना किसी संकोच के उनका आपसी हंसी मजाक से सराबोर  वार्तालाप प्रारंभ है, बीच –बीच में जोर-जोर से खुल के हंसने के स्वर भी वातावरण में गूंज रहे हैं  .... पूरे साल भर घर  एक जैसे काम में अपने को खपाने वाली इन मेहनतकश घरेलू महिलाओं को आज इक्कठा हो कुछ अलग करने को जो मिला है और फाल्गुन की मस्ती भी तो अपना थोड़ा बहुत असर दिखाएगी ही ...

थोड़े से विचार-विमर्श के उपरान्त आज के होने वाले कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार कर ली गयी है , आलू गैस और केरोसिन स्टोव पे उबलने के  लिए चढ़ा दिए गए है , कुछ आलू छीले जा रहे है , ये मैले कुचैले से ,आवरण विहीन हो कितनी जल्दी एक नवीन रूप को धारण कर रहे है और फिर कद्दू कस से कसे जाने के उपरांत अपना पिंडिय स्वरुप खोकर धारी युक्त हो ये और भी  आकर्षक लग रहे है, रात भर का भीगा हुआ साबूदाना भी बड़े से  डेग में उबल पारदर्शी हुआ जा रहा है , तभी माँ ने गाना शुरू किया 

शिव के मन माहि बसे काशी -२
आधी काशी में बामन बनिया,
आधी काशी में सन्यासी, 
शिव के मन माहि बसे काशी -२
काही करन को बामन बनिया,
काही करन को सन्यासी, 
शिव के मन माहि बसे काशी -२
पूजा करन को बामन बनिया,
सेवा करन को सन्यासी, …
शिव के मन माहि बसे काशी -२
काही को पूजे बामन बनिया,
काही को पूजे सन्यासी, 
देवी को पूजे बामन बनिया,
शिव को पूजे सन्यासी, …
शिव के मन माहि बसे काशी -२
क्या इच्छा पूजे बामन बनिया,
क्या इच्छा पूजे सन्यासी, 
शिव के मन माहि बसे काशी -२
नव सिद्धि पूजे बामन बनिया,
अष्ट सिद्धि पूजे सन्यासी, 
शिव के मन माहि बसे काशी -२

और बांकी सारी महिलओं का स्वर पा शरीर के रोमों को जागृत करता यह  गायन कितना दिव्य सा प्रतीत हो रहा है ....

आलू उबल चुके है , उन्हें छील, फोड़ कर पापड़ बनाने की  अन्य सामग्री और मसालों को मिलाने के दौरान  पता  चला कि हींग तो घर में ख़तम हो चुकी है, वार्ष्णेय जी ने पिछले साल ये डल्ले वाली हींग हाथरस से भेजी थी ,  खुशबूं में बेजोड़ बहुत जरा सी  लगती थी और  किसी भी खाने के स्वाद में चार चाँद लगा देती , खासकर जब दाल में इसका तड़का लगता तो मुख में लार के स्राव को प्रेरित करती  इसकी महक हर किसी के भूख जगा देती और पिताजी कह ही उठते “ श्रीमती जी अगर खाना बन गया हो लगा दो , तुम्हारे से तडके की गंध ने मेरी भूख जगा और बड़ा दी है ...

माँ को अपनी इस विशेष “हाथरसी हींग” को खत्म होने का मलाल  था और साथ ही साथ चिंता भी कि इस बार के  बने पापड़ो में शायद पिछले साल जैसी लज्जत  न हो , खैर मुझे इस हिदायत के साथ कि “लाला से कहना की बढ़िया हींग दे”, बाज़ार दौड़ा दिया गया , मै प्रसन्न था कि मुझे कुछ काम मिल गया और साथ ही साथ स्कूल न जाने के अपने फैसले को पुष्ट करती एक वाजिब वजह 

उबले आलुओं का मसाले और तेल युक्त गुन्द्का गूंध लिया गया है , हल्की पीली पृष्ठभूमि में चमकते लाल मिर्च और जीरे के काले  दाने इसके स्वादिष्ट होने का अहसास करा रहे है , मेरा मन तो इसे ऐसे ही खाने को मचल रहा है पर फिलहाल माँ के गुस्से के आगे ऐसा संभव नहीं ...

पन्नी के मध्य रख आलू की इस लोई को बेलते  समय हमारे लकड़ी  वाले चकले पे ध्यानी आंटी को असहजता  अनुभव हुई तो उन्होंने मुझे बुला के कहा – जा हमारे घर दौड़ के जा , दादी मिलेंगी उनसे कहना मैंने संगमरमर वाला चकला मंगवाया है ... उनके आदेश का तुरंत अनुपालन हुआ और मैं दौड़ के उनका इच्छित समान ले आया ...  इस कार्य में सम्मलित हो अपने योगदान के यह अनुभूति मुझे कितना हर्षा रही है  ... 

आलू के पापड़ बनने के बाद लम्बी सी पन्नी सूखने के लिए धूप में डाल दिये गए है , चिप्स भी माँ की धोती में सूर्य देव उन्मुख हो सूख के अकड़ रहे है , शायद अपने स्वरुप को खोने का शांत प्रतिरोध जता रहे  है, साबूदाने के पापड़ अपने सफ़ेद दानों के साथ अभी काफी गीले है , चावल की कचरी हाथ से चलने वाले इस मशीन से निकल अपने अवस्था परिवर्तन के दूसरे दौर में कितनी नाजुक लग रही है , जरा से ही हिलाने   से अपने स्वरूप को खो देने वाली ...

छत पे चलती हवा के मध्य मै थपकी , ईंट ,पत्थर , पुराने लोहे के पाइप , पुराने ख़राब ताले, अपने क्रिकेट के बल्ले और स्टम्प से पन्नी , मां और दादा जी इन फ़ैली हुई धोतियों  को दबा रहा हूँ जिनपे होली की यह विशेष खाद्य सामग्री सूखने हेतु  विराजमान है , माँ की  नजरों से बच ,  मन में उत्पन्न हड़बड़ी और  इनके  सूख जाने के न ख़त्म होते इंतज़ार के  बीच इन अधसूखे कच्चे पापड़ो का स्वाद ले चुका हूँ... उड़ते पक्षियों से इनके रक्षण का भार भी आज  मेरे ही  कंधो पे  है ....

आज हमारे घर का होली के अवसर पे होने वाला यह सामूहिक कार्य निबट चुका है , कल शाह आंटी के घर की बारी है और हास-विनोद करता महिलाओं का यह विशेष जमघट कल उनके घर ही लगेगा ...  कार्य सकुशल समाप्त  होने के  सुकून के मध्य चाय की चुस्कियां लेते हुए फाल्गुन का सत्कार गीतों के माध्यम से एक बार  पुनः प्रारंभ  है 

जल कैसे भरूं यमुना गहरी ..."
ठाड़े भरूं रजा राम देखत है
बैठे भरू भीजे चुनरी
जल कैसे भरूं यमुना गहरी ..."

विभिन्न घरो से एकत्र सामग्री को लौटने की जिम्मेदारी के मध्य मुझे इंतज़ार है अगले हफ्ते का जब ये संगठित नारी शक्ति पुनः हमारे घर कदम रखेगी , स्वादिष्ट गुजिया, मठरी, सेव और नमकपारे बनाने  करने  के लिए ....