बड़ा ही व्यथित हृदय लिए दोनों अलग अलग कमरों में सोने चले गए , छोटी सी बात इतनी बड़ी बहस में तब्दील हो जाएगी ऐसा किसने सोचा था ? , दोनों अपने-अपने तर्कों पे अडिग... आरोप, प्रत्यारोप के बीच इस वाक-युद्ध में पूर्व के न जाने कितने गढ़े मुर्दे उखाड़े जा चुके थे फिर उनको झाड़-पोछ कर आज के विवाद से जोड़ अपनी बात को वजन देने और अपने शोर को तर्कसंगत बनाने की चेष्टा दोनों ने ही की थी .... क्रोध के आवेग में शालीनता के सारे बंध टूट चुके थे ये दोनों ही जानते थे पर उस समय इसकी परवाह किसी को भी न थी....
बिस्तर पे करवट लेते हुए मै भुनभुना रहा था , हर बार ये ऐसा ही करती है, इस बार मै बिलकुल भी नहीं झुकूँगा चाहे जो हो जाये पर हर बार की तरह इस बार भी अन्दर से चिटकनी लगे दरवाजे पे उसके खटखटाने की चाह भी थी .... समय धीरे-धीरे व्यतीत हो रहा था... क्रोध की विकराल ज्वाला अब शांत हो चुकी थी पर अहम् की अग्नि अभी भी प्रज्जवलित थी.... विवाद का विच्छेदन मन ही मन आरंभ था , धीरे-धीरे पश्चाताप के साथ ग्लानि भी उत्पन्न हो रही थी पर अहम् के समक्ष उनको तत्काल ख़ारिज भी कर दिया जा रहा था और इस उधेड़बुन में नींद न जाने कब आ गयी पता ही नहीं चला ...
सुबह उठा तो रात्रि के अनर्गल वार्तालाप से मन भारी था , अब अपनी गलती का अहसास अत्यधिक बलवती था, मन बहुत कुछ बोल रहा था पर पुरुष अहंकार के आगे लब हिलने को तैयार न थे , तभी चाय के प्याले के साथ सुप्रभात का स्वर सुनाई दिया , 08 बज चुके थे पूनम सुबह घर के काफी काम निबटा चुकी थी ....
चाय की चुस्कियो के बीच दोनों के ही नेत्र एक दूसरे से क्षमायाचना में मसरूफ थे ....
बिस्तर पे करवट लेते हुए मै भुनभुना रहा था , हर बार ये ऐसा ही करती है, इस बार मै बिलकुल भी नहीं झुकूँगा चाहे जो हो जाये पर हर बार की तरह इस बार भी अन्दर से चिटकनी लगे दरवाजे पे उसके खटखटाने की चाह भी थी .... समय धीरे-धीरे व्यतीत हो रहा था... क्रोध की विकराल ज्वाला अब शांत हो चुकी थी पर अहम् की अग्नि अभी भी प्रज्जवलित थी.... विवाद का विच्छेदन मन ही मन आरंभ था , धीरे-धीरे पश्चाताप के साथ ग्लानि भी उत्पन्न हो रही थी पर अहम् के समक्ष उनको तत्काल ख़ारिज भी कर दिया जा रहा था और इस उधेड़बुन में नींद न जाने कब आ गयी पता ही नहीं चला ...
सुबह उठा तो रात्रि के अनर्गल वार्तालाप से मन भारी था , अब अपनी गलती का अहसास अत्यधिक बलवती था, मन बहुत कुछ बोल रहा था पर पुरुष अहंकार के आगे लब हिलने को तैयार न थे , तभी चाय के प्याले के साथ सुप्रभात का स्वर सुनाई दिया , 08 बज चुके थे पूनम सुबह घर के काफी काम निबटा चुकी थी ....
चाय की चुस्कियो के बीच दोनों के ही नेत्र एक दूसरे से क्षमायाचना में मसरूफ थे ....