Saturday 14 September 2019

रीयूनियन की पैकिंग ....
२५ साल हो गये ...पता ही नहीं चला समय कैसे बीत गया ...सहपाठी के फोन पे प्रदत्त सूचना ने जैसे मुझे एका एक ही २५ वर्ष पीछे धकेल दिया ...
जेहन में कई मिश्रित से भाव थे ... कॉलेज जाने और पुराने संगी साथियों से इतने वर्ष उपरान्त एकसाथ मिलने का रोमांच तो था पर इस बड़े खर्चे. इतनी दूर के सफर और उससे जुडी तैयारियों को लेकर थोड़ी असहजता भी थी , अकेले जाऊं कि सपरिवार ...फैसला नहीं ले पा रहा था ... अभी समय काफी था इसलिए निर्णायक सोच को फ़िलहाल के लिए मुल्तवी किया जा सकता था ....
धर्मपत्नी से जिक्र हुआ तो तुरंत ही परामर्श का चुभता हुआ नश्तर निकल चुका था ... ये परामर्श कम और खीज मिश्रित, सीख/शिकायत सा था ...
रीयूनियन में जा रहे तो जरा ढंग से जाना , ऐसे जैसे हरदम बने रहते हो ऐसे तो बिलकुल भी न जाना ... जरा ढंग के कपडे ले लेना , अपनी ये फटीचर सैंडल जिन्हें तुम पहनकर यहाँ वहां टूला करते हो हरगिज भी न ले जाना ...
ढंग का बैग खरीद लो... उस सड़े गले उधड़ते अपनी शादी के समय खरीदे बैग से अब तो तौबा कर लो ... ख़बरदार उसको ले जाकर हमारी नाक न कटाना ...
खैर तुम्हारी पार्टी मुझे क्या ....मेरा सुना भी कब है तुमने ... मै सिर्फ बोलती रहतीहूँ तुम्हारी कान में तो जूं भी नहीं रेगती ... मै और बच्चे नहीं आ रहे ... तुम अपने दोस्तों के साथ दारू पीकर मस्त रहों ... हम तुम्हारे जश्न में खलल नहीं डालने वाले ...
न खाया न पीया ... गिलास तोडा बारह आना .... श्रीमती जी की बात कुछ कुछ समझ में आ चुकी थी ... मित्रो के साथ की गई अभी हाल में दारू पार्टी का बिल उनके द्वारा आज फाड़ा जा रहा था ....
साथ साथ मेरे मन में भी सर के बाल से लेकर पैर की छोटी अंगुली के नाख़ून तक को बदलने के अनेक परामर्श आ जा रहे थे .... मोबाइल , गाड़ी और वस्त्र तो जनाब छोटी मोटी चीजे हैं यहाँ तो फितरत और आदतें बदलने पर भी जोर अजमाइश चल रही थी ...
पर हम तो ठहरे विशुद्ध कनपुरिये थोड़ी ही देर बाद तमाम भौतिक साधनों से इतर अपना दिल कुछ और ही उधेड़बुन में मसरूफ था .... साला और कुछ चाहे लू न लू ... कम से कम एक क्रैट अच्छी दारू तो रखनी पड़ेगी ही ...
ये पुनर्मिलन है ... कोई शक्ति प्रदर्शन तो नही ... मै वही पुराना २५ साल वाला ही बनके अपने साथियों से मिलूँगा जिस आधार पे हमारी मित्रता की नीव पडी थी ....खर्चे की तो कोई भी सीमा नहीं .... खोज तो ख़ुशी की ही है ना और फकीरी में जो दरियादिली और अमीरी है वो अन्यत्र और कहाँ ...
तो सभी साथियों सभी से निवेदन है जहाँ हो जिस हाल में भी हो बस चले आओं , ये तुम्हारे खुद के बनाये सफलता और असफलता की मानक व्यर्थ है ... इनको अपने पैरों की बेड़ियाँ न बनने दो ...
खुशी और संतोष ही सबसे बड़ी सफलता है और ये सिर्फ और सिर्फ आपकी सोच पे निर्भर करती है
२५ साल बाद फिर से मिलने का सौभाग्य और सुअवसर प्राप्त हुआ है इसे दोनों हाथों से लपक लो...
SILVER JUBILEE (ENTRY) PARA O1