Friday 26 April 2019

नाथ शंभु धनु भंजन हारा, होईये कोऊ इक दास तुम्हारा

सीता स्वयंवर के समय प्रभु राम ने उस शिव धनुष जिसे बांकी राजा लोग टस से मस भी नहीं कर पा रहे थे , फूल की भांति उठा क्षण भर में ही खंडित कर दिया ..

आकाश में तेज गर्जना के साथ ,आंधी तूफान की तरह भगवान परशुराम तुरंत ही स्वयंवर स्थल 'मिथिला' में आ धमके और कोड़ों से वे सभी राजाओं-सेवकों को पीटते जा रहे थे और इसी तरह वे मंच पर जा चढ़े। यहां परशुरामजी ने ललकार कर पूछा कि ये शिवजी का धनुष किसने तोड़ा। तब लक्ष्मणजी से उनका वाद-विवाद हो गया।

इस पर भगवान राम ने बीच में आकर कहा कि- नाथ शंभु धनु भंजन हारा, हाईये कोऊ एक दास तुम्हारा। भगवान राम के श्रीमुख से खुद के लिए ऐसे सम्मान भरे सरल वचन सुनकर भगवान परशुराम का क्रोध शांत हुआ। क्योंकि रामजी ने परशुरामजी से कह दिया था कि हे प्रभु! भगवान शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा....


मर्यादा पुरषोत्तम प्रभु राम ने मानव शरीर धर के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में कैसा आचरण हो इसके अनेकानेक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किये ... ऐसा आप भी करें , समूह में चर्चा या वाद विवाद के दौरान अपने मस्तिष्क पे क्रोध को हावी न होने दें .... वरिष्ठों की गलत बात का जरुर खंडन करें लेकिन विनय का दामन न छोड़े ... 

Tuesday 16 April 2019

एक कमाल के मनोरोग चिकित्सक , बीमारी पे गज़ब की पकड़ , आला दर्जे  की डायग्नोसिस , अजी  परचा नहीं रामबाण कहिये , एक बार जो नुस्खा लिख दिया समझ लो बीमारी तीतर हो ली.... गज़ब की भीड़ होती थी डॉक्टर साहब की OPD में , एक दम रेलम पेल मची रहती थी , लेकिन डॉक्टर साहब थे बिलकुल अनुशासनप्रिय , सब मरीजों को  उनके आने के क्रम से ही  देखते , किसी की मजाल जो लाइन तोड़ के पहले घुस ले ...

सारे अर्दली ,चपरासी,JRs उनके इस मिजाज से भली भांति वाकिफ थे सो सभी इस बात को ensure करने की भरसक कोशिश करते कि बड़े डॉक्टर साहब के बनाये हुए कायदे कानूनों का अक्षरक्ष पालन हो ... नियमों का टूटना मतलब ज्वालामुखी विस्फोट , विभाग की शांति तो भंग होगी  ही और बहते लावे की जद सभी आयेंगे ,कोई नही बचेगा ...

लेकिन दुर्घटना से भला कौन बचा है ... एक दिन OPD में मची भसड के दौरान के मरीज लाइन तोड़ने की गुस्ताखी कर बैठा और डॉक्टर साहब के नज़दीक अपना परचा लिए पहुँच गया.... इसके पहले कि वो कुछ बोल पाता  प्रोफेसर साहब जो बेशुमार मरीजो की मार से पहले ही तिलमिलाए बैठे थे हत्थे से उखड लिए , कलम पटक दी गयी , कुर्सी पीछे धेकेल दी गयी , हाथ में पकडे परचे हवा हवाई हो गये , नथुने फुलाते हुए ,सर झटकते हुए , मेज पे जोरों से हाथ पटकते हुए दहाड़ते हुए बोले ....@#$% MC&*BC $$MKB ,BOSS.DK निकल बाहर... तेरी जुर्ररत कैसे हुई लाइन तोड़ने की ....

ये आपातकाल था ...सब के सब स्थिति सँभालने हेतु दौड़ पड़े , किसी अनहोनी के मद्देनज़र  मरीज को फुंकारते प्रोफेसर साहब की रेंज से  तुरंत  दूर किया गया ...

अब बोलने की बारी अपशब्दों के माउंट एवेरेस्ट के नीचे दबे मरीज की थी ... २ हफ्ते पहले जिस स्थिति में इस समय डॉक्टर साहब है बिलकुल DITTO ऐसी ही मेरी हालत थी , उस समय डॉक्टर साहब ने मुझे जंजीर से बाँधने , बिजली के झटके और कमरे में बंद करने के परामर्श दे डाले थे , मै तो ठीक हो गया पर लगता है मेरी बीमारी डॉक्टर साहब को लग गयी है अब इनका भी इलाज कराओ ...

मैंने कोई लाइन नहीं तोड़ी है , मई तो बस इतना पूछने आया था कि अगर नंबर आने में देर है तो तब तक तक मै चाय पी आता हूँ ....

सुना है लम्बे अरसे से साथ रहते रहते पति पत्नी की सूरत आपस में मिलने लगती है और शायद यही हम डॉक्टर्स के साथ भी होता है ,ईलाज करते करते हमारा आचरण भी मरीजों जैसा ही हो जाता है और मनोरोग चिकित्सक इस मामलें में कुछ ज्यादा ही बदनाम है ....

साभार - मनीष निगम बॉस

Thursday 4 April 2019

कांस्टेंट फियर ...

हम न जाने क्यों एक कांस्टेंट फियर में जी रहें हैं , नौकरी/ पैसे /EMI की चिंता , अपने व परिवार के स्वास्थ की चिंता , सदैव किसी अनहोनी की आशंका, बच्चों की परवरिश उनकी शिक्षा को लेकर चिंता  ....

इसी चिंता , उधेड़बुन और भविष्य न जाने और क्या बेहतर हो जायेगा तब हम बहुत खुश हो जायेंगे की सोच में सलग्न अपना वर्तमान नकार देते हैं , अपने को सीमित कर देते हैं ,संबंधो को भी लाभ-हानि की दृष्टि से तोलने लगते हैं ...

महानगरीय जीवन शैली में दिनरात पिसे हम परिवार के साथ तीन चार महीने में किसी दूसरे शहर के सैर सपाटे, होटल या रिसोर्ट के निवास को ही स्ट्रेस बस्टर मान लेते हैं मगर अपनी दैनिक दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं करते ....

खाने का कोई निश्चित समय नहीं, देर रात तक जागते है , TV और मोबाइल में उलझे हुए , पारिवारिक संबंधो को सीचने हेतु जिस वार्तालाप की आवशयकता है उसका समय सोशल मीडिया खा जाता है .... देश दुनियां की खबर पर अपने पास पड़ोस से अंजान...

एक वाकया दिल्ली का मुझे याद है , एक फ्लैट में किसी वृद्ध की मृत्यु हो गयी , रात भर शव रखा रहा , परिचितों का आना जाना भी लगा रहा , सुबह क्रियाकर्म लिए शमशान भी ले गये , विधि विधान से सारे कर्म पूरे कर जब शाम को घर लौटे तो सामने के फ्लैट में रहने वाले सज्जन उपस्थित थे और पूछने लगे , आपके घर क्या कोई  कार्यकम था , काफी  भीड़ भाड़ थी ... प्रश्न सुनकर शोक संतृप्त परिवार निरुतर सा हो गया ... पडोसी के जब सही बात की जानकारी हुई तो एक अल्प अफ़सोस जाता के वापस अपने फ्लैट में घुस लिए ...

क्यों हम अपने छोटे छोटे कोष्ठको में कैद होकर रह गए हैं , परस्पर मेलजोल की जगह आपसी होड़ में ईर्षा ग्रस्त हो गए है , हमारी आर्थिक उन्नति तो हुई पर सोच क्यों छोटी हो गयी , प्रश्न कई है जो परेशान करते है पर उचित व पूर्ण उत्तर नहीं मिल पाता ...