जेठ की इस भरी दोपहरी खाना खाकर सब सुस्ता रहें है , माँ की जबरदस्त हिदायत भरी चेतावनी है -- बाहर लू चल रही है , खबरदार अगर घर के बाहर पैर भी रखा तो , तू सोयगा तो है नहीं और कुछ न कुछ खुराफ़ात तो जरुर करेगा ही पर ध्यान रहे कि कोई भी खटर-पटर न हो , अगर तेरे मचाये शोर से तेरे पापा जग गए तो मै तुझे बचाने नहीं आऊँगी ...
माँ इतना कुछ कह अन्दर के कमरे में सोने चली गयी ... उसकी रोज की व्यस्त दिनचर्या में सुस्ताने का ये ही तो अल्प समय है , इस मध्यमवर्गी परिवार में एक वो ही शेषनाग है जिसने सम्पूर्ण गृहस्थी का बोझ संभल रखा है ... पिताजी का काम पैसे कमाने और बाहर के छोटे-मोटे कामो का अलावा ज्यादा कुछ और नहीं और घर के सारे कामो की जिम्मेदारी तो इसी के कंधो पे है ... मेहरी , धोबी , और माली की शाही सुविधा इस बचतोन्मुख परिवार में कहाँ ?
सुबह जल्द उठ के पानी भरना , सम्पूर्ण घर की झाड़ू बुहारी और पोछा, नहा-धोकर मंदिर में दीया जलाना , दूध वाले से दूध लेना और उससे दूध के पतला होने की झिक-झिक करना , सबके लिए चाय बनाना और उसे उनके बिस्तर तक पहुचना , घर के अपने छोटे से खेत के गुड़ाई करना ,पौंधो में पानी डालना , सबके लिए नाश्ता बनाना और उसके उसके उपरांत लगे बर्तनों के अम्बार को अपने हाथो के करतब से चमकाना और इस बीच दरवाजे पे कोई मांगने वाला आ जाय तो उसे कभी भी खाली हाथ न लौटने देना , मेतरानी की भी सुनना और उसे भी चाय पिलाना और रोटी –सब्जी खिलाना ...
सुबह के काम से निबटना और दोपहर के में जुट जाना , ये वो समय है जब न तो रसोई गैस की सुविधा है और ना हीं पिसे मसालों का विलासी सुख , केरोसिन स्टोव , बुरादे के अंगेठी और सिल -बट्टे से ही जूझना है ,फूंकना है और काले हाथ ,ललाट लिए, पसीने से तरबतर हो बस जुटे ही रहना है ...बचत के लिए थोडा अधिक शारीरिक श्रम कर लेना ही मानसिकता है और हो भी क्यों ना , वर्तमान के ये थोड़े-बहुत अतिरिक्त श्रम अतीत के विकराल अभावो के सम्मुख कितने बौने जो नज़र आते है...
खैर घर में सब सो चुके है , पिताजी के खर्राटे मुझे उनके गहरी नींद में होने की अवस्था से आश्वस्त करा रहे है , यही सही मौका घर से बाहर निकलने का , चप्पल पैरो से निकाल के हाथ में पकड़ ली है , मेन दरवाजे के कुंडी जो पिछली दफा मेरे पकडे जाने का कारण बनी थी उसे कल रात ही सिलाई मशीन के तेल से सराबोर कर शांत किया जा चुका है , घर के लोहे के गेट को खोलने से उत्पन्न आवाज़ का जोखिम नहीं लिया जा सकता इसलिए दीवार फांदना ही उचित रहेगा और समस्त बाधाओं को पार कर मै घर के पास की इस पसंदीदा बगिया में पहुँच चुका हूँ जहाँ चारो ओर आम के पेड़ो की बहुतायत है , और ये क्या ? पिंकू , रिंकू , नन्हे , कल्लू और बबलू भी अपने घर वालों को धता दे बाग़ में पहुँच चुके है ...
ढेले ,पत्थर इक्कठे किये जा रहे है , स्पर्धा इस बात की है कौन सबसे पहले अमिया पेड़ से झडाऐगा , कलमी और फजली अमियाँ के पेड़ चुना गया है , ये मीठी जो होती है और अगर कोयल पद्दो मिल जाये तो और भी सोने पे सुहागा ...दे दना दन पत्थर और ढेले फेंके जा रहे है और उनके लक्ष्य से जरा से चूकने का अपनी वाणी और सिर को पकड़ के एक बड़ा सा अफ़सोस भी मनाया जा रहा है , अचानक लक्ष्य भेद ही लिया गया , तीन अमिया नीचे गिर चुकी हैं , सब उन्हें लूटने को दौड़ पड़े है और इस बहस के बीच कि किसका निशाना लगा और ये गिरे हुए अपरिपक्व फल किसके है , दूर माली की गाली भरी आवाज़ कानो में पड़ रही है ... अपने आपसी विवाद को भुला सब के सब गिरी हुई अमिया को उठाके भाग रहे है हमारे घर के बाहर के बरांडे की ओर जहाँ बैठ , मिल बाँट हम सब अपनी इस मेहनत का स्वाद लेंगे...
अपने इस सम्मलित प्रयास का मजा लिया जा रहा है , अमिया की चेपी अच्छी तरह से निकल ली गयी है , अब उसको हाथ से फोड़ के सबमें बांटा जा रहा है , पत्थर फेकने के कारण अपने मैले-कुचले हाथो को अपनी कमीज से पोछ सभी बालक अपनी माँओ का काम बडा, ख़ुशी-ख़ुशी अपनी इस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं , धूप कम होने होने का बेसब्री से इंतज़ार है , शाम को बच्चो के यही चौकड़ी पतंगबाज़ी में अपने हाथ आजमाएगी...
इस गर्मी में वातानुकूलित मॉल्स से फल खरीदते अपने अभिभावकों के साथ बच्चो को देख बार-बार मन में यही ख्याल आता है कि हमारी उन्नति हमारी संतानों को प्रकृति से कितना दूर ले जा रही है, चका-चौंध और चमक वास्तविकता पर कितनी हावी है ...
माँ इतना कुछ कह अन्दर के कमरे में सोने चली गयी ... उसकी रोज की व्यस्त दिनचर्या में सुस्ताने का ये ही तो अल्प समय है , इस मध्यमवर्गी परिवार में एक वो ही शेषनाग है जिसने सम्पूर्ण गृहस्थी का बोझ संभल रखा है ... पिताजी का काम पैसे कमाने और बाहर के छोटे-मोटे कामो का अलावा ज्यादा कुछ और नहीं और घर के सारे कामो की जिम्मेदारी तो इसी के कंधो पे है ... मेहरी , धोबी , और माली की शाही सुविधा इस बचतोन्मुख परिवार में कहाँ ?
सुबह जल्द उठ के पानी भरना , सम्पूर्ण घर की झाड़ू बुहारी और पोछा, नहा-धोकर मंदिर में दीया जलाना , दूध वाले से दूध लेना और उससे दूध के पतला होने की झिक-झिक करना , सबके लिए चाय बनाना और उसे उनके बिस्तर तक पहुचना , घर के अपने छोटे से खेत के गुड़ाई करना ,पौंधो में पानी डालना , सबके लिए नाश्ता बनाना और उसके उसके उपरांत लगे बर्तनों के अम्बार को अपने हाथो के करतब से चमकाना और इस बीच दरवाजे पे कोई मांगने वाला आ जाय तो उसे कभी भी खाली हाथ न लौटने देना , मेतरानी की भी सुनना और उसे भी चाय पिलाना और रोटी –सब्जी खिलाना ...
सुबह के काम से निबटना और दोपहर के में जुट जाना , ये वो समय है जब न तो रसोई गैस की सुविधा है और ना हीं पिसे मसालों का विलासी सुख , केरोसिन स्टोव , बुरादे के अंगेठी और सिल -बट्टे से ही जूझना है ,फूंकना है और काले हाथ ,ललाट लिए, पसीने से तरबतर हो बस जुटे ही रहना है ...बचत के लिए थोडा अधिक शारीरिक श्रम कर लेना ही मानसिकता है और हो भी क्यों ना , वर्तमान के ये थोड़े-बहुत अतिरिक्त श्रम अतीत के विकराल अभावो के सम्मुख कितने बौने जो नज़र आते है...
खैर घर में सब सो चुके है , पिताजी के खर्राटे मुझे उनके गहरी नींद में होने की अवस्था से आश्वस्त करा रहे है , यही सही मौका घर से बाहर निकलने का , चप्पल पैरो से निकाल के हाथ में पकड़ ली है , मेन दरवाजे के कुंडी जो पिछली दफा मेरे पकडे जाने का कारण बनी थी उसे कल रात ही सिलाई मशीन के तेल से सराबोर कर शांत किया जा चुका है , घर के लोहे के गेट को खोलने से उत्पन्न आवाज़ का जोखिम नहीं लिया जा सकता इसलिए दीवार फांदना ही उचित रहेगा और समस्त बाधाओं को पार कर मै घर के पास की इस पसंदीदा बगिया में पहुँच चुका हूँ जहाँ चारो ओर आम के पेड़ो की बहुतायत है , और ये क्या ? पिंकू , रिंकू , नन्हे , कल्लू और बबलू भी अपने घर वालों को धता दे बाग़ में पहुँच चुके है ...
ढेले ,पत्थर इक्कठे किये जा रहे है , स्पर्धा इस बात की है कौन सबसे पहले अमिया पेड़ से झडाऐगा , कलमी और फजली अमियाँ के पेड़ चुना गया है , ये मीठी जो होती है और अगर कोयल पद्दो मिल जाये तो और भी सोने पे सुहागा ...दे दना दन पत्थर और ढेले फेंके जा रहे है और उनके लक्ष्य से जरा से चूकने का अपनी वाणी और सिर को पकड़ के एक बड़ा सा अफ़सोस भी मनाया जा रहा है , अचानक लक्ष्य भेद ही लिया गया , तीन अमिया नीचे गिर चुकी हैं , सब उन्हें लूटने को दौड़ पड़े है और इस बहस के बीच कि किसका निशाना लगा और ये गिरे हुए अपरिपक्व फल किसके है , दूर माली की गाली भरी आवाज़ कानो में पड़ रही है ... अपने आपसी विवाद को भुला सब के सब गिरी हुई अमिया को उठाके भाग रहे है हमारे घर के बाहर के बरांडे की ओर जहाँ बैठ , मिल बाँट हम सब अपनी इस मेहनत का स्वाद लेंगे...
अपने इस सम्मलित प्रयास का मजा लिया जा रहा है , अमिया की चेपी अच्छी तरह से निकल ली गयी है , अब उसको हाथ से फोड़ के सबमें बांटा जा रहा है , पत्थर फेकने के कारण अपने मैले-कुचले हाथो को अपनी कमीज से पोछ सभी बालक अपनी माँओ का काम बडा, ख़ुशी-ख़ुशी अपनी इस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं , धूप कम होने होने का बेसब्री से इंतज़ार है , शाम को बच्चो के यही चौकड़ी पतंगबाज़ी में अपने हाथ आजमाएगी...
इस गर्मी में वातानुकूलित मॉल्स से फल खरीदते अपने अभिभावकों के साथ बच्चो को देख बार-बार मन में यही ख्याल आता है कि हमारी उन्नति हमारी संतानों को प्रकृति से कितना दूर ले जा रही है, चका-चौंध और चमक वास्तविकता पर कितनी हावी है ...