Thursday 13 June 2019

४० के पार हर जन्मदिन विशेष है ... बढती उम्र की टीस तो है पर इसके साथ साथ है अपने खुशनसीब होने का अहसास भी ... ईश्वर कृपा से हमने ये पड़ाव भी पार कर लिया और माँ- बाप की छत्र छाया  अभी भी हमारे ऊपर है , परिवार और इष्टमित्रों का भरपूर स्नेह और आशीर्वाद भी मिल रहा है ....

सभी शुभचिंतको का इस दिन को अपनी मंगलकामनाओ और विशेष बनाने के कोटि कोटि धन्यवाद.... आपकी ये भावनाये अनमोल हैं....

Saturday 8 June 2019

बचपन से ही अनुशासन में जिये , चीज़े उपलब्ध तो हुई पर इफ़रात में नहीं ... एक मध्यमवर्गी परिवार अब इसे निम्न ,मध्य या उच्च में और तकसीम न कीजिये ... सिर्फ मध्यमवर्गी ही रहने दीजिये ...पिताजी नौकरीपेशा माँ गृहकार्यों में दक्ष गृहलक्ष्मी ... पिताजी की इमेज जेठ के तपते सूर्य जैसी तो मां उससे बचाती ठंडी पुरवा , अषाढ़ का मेघ जो तुरंत शीतलता देता और साथ ही साथ अच्छी बातों और संसकारों से सींच देता ...

पिताजी के एक ध्येय वाक्य को अक्सर सुना करते ... पढ़ लिख लो .. आगे अच्छा करोंगे तो अपने लिए ही करोगे और पढाई के अलावा तुम्हारे पास कोई विकल्प है भी नही ... न हमारे पास पैसा है और ना ही व्यापार ...

बचपन और तरुणाई में न जाने कितनी छोटी बड़ी इच्छाओ , अभिलाषाओं का दमन हुआ ... इस करके नहीं कि साधन नहीं थे बल्कि इस सोच के साथ कि विद्यार्थी जीवन कहीं अपने गंतव्य से भटक न जाये ... अपने अनुभवों और समाज में सुनी सुनाई बातों पर पिताजी के अपने तर्क थे जो शत प्रतिशत सत्य तो नहीं पर काफी हद तक देश काल और परिस्थिति वश उचित थे ...

खैर तमाम उपकरणीय व्यवधानों वंचित विद्यार्थी जीवन अपनी राह खोज ही बैठा और हम कुछ कर पाए पर दिमाग के किसी कौने में वो दबी कुचली लालसायें जो अनुशासन और आर्थिक निर्भरता के कारण अबतक सुसुप्त पडी थी ....जागने लगी ...

हालाँकि माँ पिताजी की मितव्ययी होने की सीख अभी भी थी पर हाथ में आये नए नए पैसे के आगे वो इतनी प्रभावी न थी ... अधीर मन जैसे किसी पाश के मुक्त हुआ जो बस उचित अनुचित में भेद न कर बाजारवाद के प्रलोभनों पे सवार ऊँची उड़ान भरने को आतुर ...

अब चीजों को सहेज कर रखने से ज्यादा उनकों खरीदने पे जोर था ... जरुरती और गैरजरूरती का भेद ... हम कंजूस नही ... इतना तो हम कर ही सकते हैं के आगे विलुप्त सा हो गया ... भरा घर और भरता चला गया ... पुरानी अच्छी बातें नित्य नए ख़र्चों के नीचे दबती चली गईं...

और इन सब का सबसे ज्यादा खामियाजा उठाया हमारी संतानों ने जो इस ऐशो आराम को ही जीवन का शाश्वत सत्य मान बैठी और अकर्मण्य हो गई ... कभी कभी गुस्से में आपे से बाहर हो झुंझला के हमारा ये कहना कि तुम्हारी उम्र में मुझे ये नसीब न था और मै मेहनत किया करता था एक क्षणभंगुर पानी के बुलबुले से ज्यादा कुछ और नही ..

बबूल हमारे गलत निर्णयों और अहं में पनप चुका है आम की दरकार अब उचित नहीं ...

घोर निराशावादी प्रतीत हो रहा हैं ना ये सब ... क्या अब कुछ नहीं हो सकता ...क्यों नहीं हो सकता बिलकुल हो सकता है बशर्ते आप अपनी गलती स्वीकारें और मूल में लौट चले ... वृक्ष कितना भी विशाल , हराभरा , फलदार क्यों न हो अगर अपनी जड़ों से कट गया तो निश्चित ही सूख जायेगा ...
*बच्चे अपने दादा दादी , नाना नानी के साथ समय जरुर व्यतीत करें , अनुभवों और संस्कारों का ये खजाना / पाठशाला बेशकीमती है ...

*अपनी कमाई और खर्चों की खुलम-खुल्ला चर्चा बच्चों के सामने न करें .. .

* संतुलित और नियमित दिनचर्या जी के बच्चों के आगे नजीर प्रस्तुत करें उन्हें केवल उपदेश न दें ...

* मदिरा / सिगरेट आदि का सेवन बच्चों के सामने कभी न करें ...

*घर के छोटे बड़े काम खुद भी करें और बच्चों को भी इसमें सम्मलित करें

*अपने संघर्षों के प्रतीक अपने स्कूल /कॉलेज / छात्रावास / किराये के कमरे के दर्शन अपने बच्चों को जरुर करायें

* बच्चों के सम्मुख उनके स्कूल / टीचर की बुराई कभी न करें ..
*चीजों की अहमियत समझाए ... कुछ भी तुरंत खरीद के न दे दें
* प्रातः और संध्याकालीन दीया जलाएँ और आरती करें और बच्चों को इसमें भागीदार अवश्य बनाये....

एक बात जान लीजिये कमाई के तौर तरीके अनगिनत है पर आपकी क्षमता सीमित .... असली निवेश आपकी संतान ही है उनको भरपूर समय दें ...

पैसे की शक्ति इसमें नहीं के आप क्या क्या खरीद सकते हैं .वो तो कोई भी कर सकता है .. आपकी बड़ी हुई हैसियत एक जिम्मेदारी है ,एक संयम है जिसमें कि आप विवेकशील हो शान्त भाव उचित -अनुचित / जरूरती -गैर जरूरती में भेद कर सके...

सब कुछ बच्चों पे जोर जबरदस्ती से नाफ़िज नहीं किया जा सकता , अच्छे कार्यकलापों और संस्कारों से उनमें सोच विकसित करें जिससे वो स्वयं ही सही गलत के निर्णय लेने के काबिल बन सकें...