वक्त बे वक्त झुंझला जाता हूँ
हर किसी पे तो तोहमत लगता हूँ
ख्वाइशो की बेजा इस दौड़ में
मै कब कहाँ सुकून से जी पाता हूँ
दम भरने की भी कहाँ मुझे फुर्सत
पता नहीं ऐसा क्या खास मै चाहता हूँ
अब तक हांसिल किये जो मुकाम
उनका भी जश्न कब कहाँ मनाता हूं
जरूरतें सारी कब किसकी पूरी हुई
मै तो हर रोज नयी जरूरत बनाता हूँ
पता न चला कब कहाँ रिस गयी जवानी
हर सवेरे अपने आइने से नज़रे चुराता हूँ
हर किसी पे तो तोहमत लगता हूँ
ख्वाइशो की बेजा इस दौड़ में
मै कब कहाँ सुकून से जी पाता हूँ
दम भरने की भी कहाँ मुझे फुर्सत
पता नहीं ऐसा क्या खास मै चाहता हूँ
अब तक हांसिल किये जो मुकाम
उनका भी जश्न कब कहाँ मनाता हूं
जरूरतें सारी कब किसकी पूरी हुई
मै तो हर रोज नयी जरूरत बनाता हूँ
पता न चला कब कहाँ रिस गयी जवानी
हर सवेरे अपने आइने से नज़रे चुराता हूँ