Sunday 28 July 2013

मत हो कभी
जीवन में निराश
कायम रहे
अपने पे विश्वास

माना समस्याएं  है
परेशानियां  है
सिर  पे  पड़ी
सैकड़ो जिम्मेदारियां हैं



तनाव है ,दबाब है
अपनों से मनमुटाव है
हर दिन ही लगा रहता
शिकायतों का अंबार है

पर जीवन भी तो
इसी का नाम है
दुःख के साथ इसमें
सुख भी तो विद्यमान है


और संघर्ष कर
सभी  कष्टों से पार पाना ही
श्रेष्ठ मनुष्य का काम  है …




















नेता की बकी,
झेलते सभी
खौफनाक ,वाहियात
बिलकुल भी नहीं सही

अभी कही ,पलट अभी
मन करे इन्हें पटको वहीँ
गैरत गर्त में गिरी

मुल्क में गंद मची
हँसी , गुस्सा और तरस   भी
अब हर रोज का आलम यही …

नेता की बकी,
झेलते सभी



अपनी ज़िन्दगी
सांप-सीढ़ी का ही  खेल है
किस्मत पासे सा फेकती 
और हर दफे सांप से ही मेल है 

सीढ़ी खुद बने हुए है 
लोग चढ़ते रहते 
कहते हम बड़े  नेक है

इस्तेमाल करते
और भूल जाते
इस काया में
डंक के चिन्ह अनेक है


Thursday 25 July 2013

इत्ती भाग दौड़ से ,रे मूरख
बोल क्या बड़ा उखाड़ लिया ???
भविष्य की चाह में
अपना वर्तमान भी बिगाड़ लिया



Wednesday 24 July 2013

तन के लिए सब खाते
तू मन के लिए भी खा

मनुष्य जन्म पाया है तूने
तू कर्म भी  वैसे कर जा
बस अपनी 
इत्ती सी खता है 
खुद पे ही 
भरोसा किया है 

नामुराद हूँ
दुनियाँ की नज़र में 
लीक से हटके चलना 
जो शुरू कर दिया  है 

साथ कोई न आये 
तो रत्ती  भर भी गम नहीं 
फैसला ये दिमाग से नहीं 
अपने दिल से लिया है… 



बार-बार बना हूँ
कितना फर्जी इस जहां में
कितनी बार उधडा हूँ
न जाने कहाँ कहाँ से …

Monday 22 July 2013

बड़ी आसानी से
ज़िन्दगी को आसान कर लिया है
मुंह पे  लगाम धरी है
और सोचना बंद कर दिया है …



Sunday 21 July 2013

आज हम पे वो
बड़े मेहरबां  है
हमारे कसीदे पढ़ती
उनकी जुबां है 

ख्वाहिशो का ही मौसम
एक दफे फिर से जवां है ...



खबर:- खाद्य सुरक्षा बिल के बदले में आय से अधिक संपत्ति के मुकदमे वापस हों सकते है ...

क्या फिर से गिरने वाले  है  
नेताजी खान्ग्रेस की झोली  में ???
हमारे मुलायम कठोर थे ही कब ...???




Saturday 20 July 2013

मै कोई तमाशा हूँ
जो इस कदर देखते हो
क्यों मेरे जिस्म को दागते हो
बार बार अपनी नजरो से ...
मेरे कहे पे यकीं न कर 
बदलते माहौल की रंगत तो देख 
खोल दे अपने दिलो-दिमाग के बंद दरवाजे
इस नई फिजा में सैर करके तो देख ...



जब व्यवस्थायें  पुरानी हो जाये
सरकार बेमानी हो जाये
जब न्याय नहीं धिक्कार मिले
शोषित संपूर्ण  समाज दिखे

क्रांति हो क्रांति हो...

जब शब्द सुने न जाते हो
सेवक बन जाते शासक हो
जब अपना हित देशहित पे भारी हो
भ्रष्टाचार की महामारी  हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब शिक्षा अंको का खेल लगे
पैसे की ही रेलम पेल लगे
जब डिग्री रोटी न देती हो
योग्यता दम तोड़ देती हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब अस्पताल खुद बीमार पड़े
इनमे मौतों का अम्बार लगे
जब चिकित्सक के पास साधन न हो
देने को सिर्फ कोरे आश्वासन हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब रक्षक भक्षक बन बैठा हो'
वर्दी  पर हावी  नेता हो
जब जनता की सुध कोई न लेता हो
जुगाड़ ही  सब कुछ देता  हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब न्याय प्रक्रिया धीमी हो
अन्याय की ही गहमागहमी हो
जब मुक़दमा कील सा चुभता हो
तारीख दर तारीख खिचता हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब चुनाव पैसे-ताकत का संयोजन हो
पद पाना ही एकमात्र प्रयोजन हो
जब राजनीति स्वार्थ-सिद्धि  लगे
परिवार की ही  बेल फूले फले

क्रांति हो क्रांति हो...

जब धर्म -अधर्म में भेद न हो
कुकृत्यो पे किसी को  खेद न हो
जब लहू स्वेत सा लगता  हो
पहली प्राथमिकता पैसा हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब देश की गिरती साख लगे
पडोसी रोज गुस्ताख करे
जब सियासत अपनी लाचार दिखे
सेना का मनोबल तार-तार करे

 क्रांति हो क्रांति हो...

जब अर्थव्यवस्था मजाक लगे
रूपया रोज गर्त में गिरे
जब महंगाई कमरतोड़ बढे
हर तरफ हाहाकार मचे

क्रांति हो क्रांति हो ...

जब निर्धन के घर अँधियारा रहे
मुह से छिनता निवाला रहे
जब गरीबी एक अभिशाप लगे
पूर्व जन्म का किया कोई पाप लगे

क्रांति हो क्रांति हो...

जब जीवन सुरक्षित न लगता हो
हर चौक पे बम फटता हो
जब मौत सिर पर नाचती हो
और हुकूमत जिम्मेदारी से भागती हो

क्रांति हो क्रांति हो.












Friday 19 July 2013

कम से कम आ जाना 
मेरी क़ब्र पे फातिया पढने 
जिंदा रहते तो तुम्हे 
हमारे लिए फुर्सत ही नहीं 
तेरी गुस्ताखियों पे 
हम शांत है 
आम तौर पे हम 
अमन पसंद इंसान है 

इसको तू हमारी 
कमजोरी न समझना
हद में रहना 
हमें ज्यादा मत कुरेदना  

हम ठंडी राख के नीचे छुपे 
दहकते अंगारों की खान है ...




दम है तो दिखा
किसी नेता को
उसके AC चैम्बर से हिला

अपने गाँव की
प्राइमरी पाठशाला में
एक दिन अचानक बुला
बच्चो की Mid Day Meal खिला

ज़रा उसे भी तो
इसका स्वाद  चखा

और रोज हो रहे ऐसे
तंदुरुस्त भारत निर्माण के
तनिक  दर्शन तो करा ...

इस तरह नई
रंजिशे निभाई गई
के आंखे भी आँखों से
न मिलाई गई 

जी तो किया कई बार
फिर से बाहों में भर लेने का 
पर बेजा अकड़ ही 
अपनी  हसरतो पे छाई रही 




Tuesday 16 July 2013

***ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में / अदम गोंडवी***

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश 
नज़ारों में
मुसल्सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में

न इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई
खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लंबी क़तारों में

अदीबो! ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुलम्मे के सिवा क्या है फ़लक़ के चाँद-तारों में

रहे मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तज़रबे से
बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों में

कहीं पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद
जो है संगीन के साए की चर्चा इश्तहारों में
----------------------------------------------------------------
मुसल्सल=लगातार ,अदबी=साहित्यिक ,इदारो =सभाओ ,
मुलम्मा =किसी वस्तु  पर चढ़ाई गई सोने या चांदी की पतली परत, 
रानाई=हुस्न/सुन्दरता,अदीबो=साहित्यकारों 

Monday 15 July 2013

for the fast friends arguing on credentials of NaMO & getting annoyed with each other... 


गुनाह किसने किया 
तोहमत किसके सिर लगी 
इस हिसाब के लिए 
अब खुदा ही सही ...
उसी के  पास सबका खाता-बही 
हम तुम  तो काट ही लेंगे 
अपनी बची ज़िन्दगी 
तेरी कही भी सही 
मेरी कही भी सही ...

Sunday 14 July 2013

हुनर बिकता है ,
इल्म बिकता है 
सिक्को की खनक के आगे 
बोलो क्या टिकता है???

पर कुछ लोगो में
होती है खुद्दारी
जो सब पे पड़ती है भारी ...
इसी पे टिकी दुनियाँ हमारी ...


नेता वही जिसमे नेतृत्व करने की

नेता वही जिसमे 
नेतृत्व करने की 
झलक मिलती हो 

ना के वो जिनमें 
सिर्फ चापलूसी की 
ललक मिलती हो 

कुछ ही पाते पद 
अपनी योग्यता के 
आधार पर 

और अधिकांश 
भोगते सत्ता -सुख 
विशेष गौत्र-परिवार में 
केवल जन्म  पाकर 

Saturday 13 July 2013

नमो का ही नाद है ...

***THE PUPPY SAGA***

नमो का ही नाद है 
अकारण ही विवाद है 
सत्तापक्ष हताश है 
मुद्दों की तलाश है 

मिथ्या सब प्रचार है 
मीडिया का साथ है 
डूबता इनका जहाज है 
भागते मूषको का 
निराशोन्मत्त ये प्रयास है 
----------------------------- 
निराशोन्मत्त=Desperate 







Friday 12 July 2013

बात का बतंगण

बात का बतंगण 

बनाये बइठे हो 


जबरदस्ती  का बवाल 

मचाये बइठे हो 


दिल में दुश्मनी का 

गुबार उठाये बइठे हो 


हम मुफलिसों से झगड़ के 

तुम्हे हांसिल  होगा क्या 


बेकार का ही मजमा 

लगाये बइठे हो

क्यों टोकते हो हमें

क्यों टोकते हो हमें
हमारे  पीने पे बार-बार

अब तो सच कह दो -
कि तुम्हे कभी भी न आती है
हमारी  खुशियाँ रास


the gen x

कलमें संवारते है
और कलम को त्यागते है
Class  नहीं,saloon में ही
अपना दिन गुजारते  है...

बड़ो की हर  सीख को
पुरानी  कह कर  के टालते है
दोस्त -यारो  को ही
अपना सरमौर मानते है

माँ-पिता की बात में
नुख्स   निकालते  है
और फिजूल जेबखर्च के लिए
रोज हाथ पसारते है ...

बात ऐसे करते जैसे
दुश्मन दुश्मनी निभाते  है
मुंह से पत्थरों की
बौछार मारते है

सुबह से शामJeans,T Shirt,slippers
में गुजारते  है
लापरवाह लिबास को ही
नया  fashion मानते है

अपनी समृद्ध विरासत को छोड़
ये पश्चिम को भागते है
उनके शोर को ही
ये संगीत जानते  है

परिपक्व होने का दंभ भरते
सब कुछ करना चाहते है
पर जरा से तनाव  पे  ही
अपने हाथ -पाँव फुलाते  है

रफ़्तार के शौक़ीन
ये उड़ना चाहते है
पर मेहनत को bypass कर
सब कुछ instantly मांगते है


जिंदगी को एक
Time Pass जानते है
और अपने Time pass प्यार को
अपनी जिंदगी मानते है .....










मै चोरी करूँ ,तुम छिपाओ

मै चोरी करूँ ,तुम छिपाओ
तुम चोरी करो मै  छिपाऊँ

आओ सब मिल
इस छुपा- छुप्पी  को खेले
और देश को पेले ...

Thursday 11 July 2013

जिंदगी के मायनों को

जिंदगी के मायनों  को 
बदलते देखा है 
अपने को अपने आप में 
सिमटते  देखा है

शिकायत किसी  से भी नही
कई बार खुद को 
खुद की ही नज़रों में 
गिरते देखा है ....

गन्दगी में उतरने में ...

गन्दगी में उतरने में
पहले कदम की ही
हिचक होती है

दामन  में पहले दाग के 
लगने तक  की ही
 झिझक  होती है

नाचता है इंसान फिर
शैतान  की तरह
अपनी जेबे भरते रहता
किसी हैवान की तरह ..





बड़े अधिकारियो का

बड़े अधिकारियो का
भ्रष्टाचार  देखता हूँ
तो सोचता हूँ ...

जब इन्हें  गिरना ही था
तो इतना ऊँचे उठे ही क्यों ...


Tuesday 9 July 2013

जिंदगी कम बची है ...

जिंदगी कम बची है 
और तेरे गुनाह है ज्यादा 
अब तो उसकी इबादत का
 पक्का  इरादा कर ले ...


Monday 8 July 2013

जरुर कुछ बेशकीमती
मिला होगा
उनका  ज़मीर यू हीं
ना बिका  होगा...









दस्तरखान सजाते रहिये 
जिगरी यारो   बुलाते रहिये 
ज़िन्दगी का क्या भरोसा 
जाम से जाम  टकराते रहिये ...

सरकार




सरकार एक  अदद रेल   टिकट तो पूरी ईमानदारी  से दिला नहीं सकती और बात कर रही है देश  के करोडो लोगो को खाद्य सुरक्षा देने की ....

अलग सा सूनापन है

कामयाबी का भी
अलग सा सूनापन है
मतलब के लिए जुड़ते सभी
न कोई अपनापन है

इससे तो
पहले ही अच्छे थे
दोस्त कम थे
लेकिन सच्चे थे ...

Sunday 7 July 2013

मुफ़ीद नहीं

किसी के लिए हम मुफ़ीद नहीं
इसलिए कोई हमारे मुरीद नहीं
-------------------------------------
मुफ़ीद=फायदेमंद , मुरीद =चेले ,शिष्य 

मेरे चेहरे की हंसी पे न जा

मेरे चेहरे की हंसी पे न जा 
दौलत की इस फरेबी पे न जा 
नज़दीक आ ज़रा दिल में झांक के तो देख 
दूर से इस लिबास की सफेदी पे न जा ....

Saturday 6 July 2013

हम तुम्हारी कला से अनभिज्ञ

हम तुम्हारी कला से  अनभिज्ञ
तुम हमारे हुनर से अनजान ...

तो फिर क्यों न
छोड़े सारी अदावते
एकसाथ मिल हासिल करे
और नए मुक़ाम

---------------------------------
अदावत =शत्रुता =enmity 

मरदूद यारो ने

मरदूद यारो ने
न  जाने कौन से जनम का
इन्तेकाम लिया

आगाज़ ए आशिकी का
चंद मिनटों में
काम तमाम किया

मसखरी में सालो ने
हमारी नई नवेली लैला को
हमारे नाम से  छेड़ा
और भाभीजान नाम दिया ...

शायरी ग़ुरबत में ही आती है

शायरी ग़ुरबत में ही आती है
अमीरी तो अल्हेदा फन सिखाती है

Friday 5 July 2013

निज़ाम उल्टा है

हमारे  मैकदे का
निज़ाम उल्टा है
साकी  खुद ही बेखुद
पर रिंद अब  तलक  सुलटा है
------------------------------------------
मैकदे =शराबखाना (Bar), निज़ाम =प्रबंध ,व्यवस्था (arrangement ) , साकी =शराबखाने में शराब पिलाने का काम करने वाला (Bartender )
रिंद =शराबी 

हमारी आवारगी से जलने वालो...

हमारी आवारगी से
जलने वालो...
हमको सिर्फ कमज़र्फ
समझने वालो...
हम पे बेवजह
तोहमते  मढने  वालो..

एक रोज
हमारे पास भी आओ
कुछ इस दिल की
मैकदे में साथ  बैठ
पैमाने तो  टकराओ

यकीनन तुम्हारे ख्यालात
बदल जायेंगे
जब घर की जानिब लौटते
दो जनाबो के कदम
एकसंग लड़खड़ाएंगे ...

Thursday 4 July 2013

" पाखाना शायरी "पर आई आलोचनाओ पर ...

 " पाखाना शायरी "पर आई आलोचनाओ पर ...

मानता हूँ बॉस ...गुस्ताखी माफ़ ...हमेशा मूड एक सा नहीं रहता ...मगर पतित होकर उठने का आनंद ही कुछ और है ...अपना  दायरा बड़ा सा लगने लगता है ...

हम दल्ले है धर्मनिरपेक्षता के ये नामुराद कारीगिरी हमारी हमारी

सारे जहाँ से अच्छी                                                            
इशरत जहाँ हमारी
हम दल्ले है धर्मनिरपेक्षता के
ये नामुराद कारीगिरी हमारी हमारी

वोट बैंक सबसे ऊँचा
अल्पसंख्यको का हमारा
वो संतरी  हमारा
वो ही दिलाये मंत्री पद प्यारा प्यारा

कोठी में होती है
हमारी हज़ार चापलूसिया
इसके बिना नहीं होता
खाना हज़म हमारा हमारा

मजहबो को हम सिखाते
आपस में बैर करना
वैमनस्य फैला के ही
चमके नेतागिरी हमारी  हमारी

सारे जहाँ से अच्छी                                                            
इशरत जहाँ हमारी


ज़ुल्फ़ जो रुख़ पर तेरे ऐ मेहर-ए-तलअत खुल गई-बहादुर शाह जफ़र

ज़ुल्फ़ जो रुख़ पर तेरे ऐ मेहर-ए-तलअत खुल गई-बहादुर शाह जफ़र 
________________________________

ज़ुल्फ़ जो रुख़ पर तेरे ऐ मेहर-ए-तलअत खुल गई
हम को अपनी तीरा-रोज़ी की हक़ीक़त खुल गई.

क्या तमाशा है रग-ए-लैला में डूबा नीश्तर
फ़स्द-ए-मजनूँ बाइस-ए-जोश-ए-मोहब्बत खुल गई.

दिल का सौदा इक निगह पर है तेरी ठहरा हुआ
नर्ख़ तू क्या पूछता है अब तो क़ीमत खुल गई.

आईने को नाज़ था क्या अपने रू-ए-साफ़ पर
आँख ही पर देखते ही तेरी सूरत खुल गई.

थी असीरान-ए-क़फ़स को आरज़ू परवाज़ की
खुल गई खिड़की क़फ़स की क्या के क़िस्मत खुल गई.

तेरे आरिज़ पर हुआ आख़िर ग़ुबार-ए-ख़त नुमूद
खुल गई आईना-रू दिल की कुदूरत खुल गई.

बे-तकल्लुफ़ आए तुम खोले हुए बंद-ए-क़बा
अब गिरह दिल की हमारे फ़िल-हक़ीक़त खुल गई.

बाँधी ज़ाहिद ने तवक्कुल पर कमर सौ बार चुस्त
लेकिन आख़िर बाइस-ए-सुस्ती-ए-हिम्मत खुल गई.

खुलते खुलते रुक गए वो उन को तू ने ऐ 'ज़फ़र'
सच कहो किस आँख से देखा के चाहत खुल गई.



मेहर= सहानुभूति , तलअत =चेहरा, तीरा=अंधकार 
नीश्तर=निश्तर =चीरफाड़ का औजार या आला 
फस्द =नस को छेदकर शरीर का दूषित खून निकलने की प्रक्रिया, बाइस =कारण 
नर्ख =कीमत ,असीरान-ए-क़फ़स=कैदखाने के पुराने कैदी , कफ़स =पिंजरा , आरिज= गाल ,नुमूद =प्रकटीकरण,
कबा=लम्बा ढीला पहनावा , गिरह=गांठ ,जाहिद =जितेन्द्रिय , तवक्कुल =ईश्वर पर भरोसा रखना 



एक दफे रेलवे स्टेशन

एक दफे रेलवे स्टेशन
पे पढ़ा था
साफ सुस्पष्ट अक्षरों में
लिखा था

आपकी फैलाई गन्दगी
जिसे आप छूना भी
पसंद नहीं करते
छी कह   बिदकते
नाक पे कपडा रख
इधर-उधर सटकते

आप जैसे ही इंसान
मेहनत से  उसे साफ़ कर
अपनी जीविका के लिए
संघर्ष करते
कर्मठशील हो
अपने परिवार का पेट भरते

और आप खुद  को
बहुत बड़ा सभ्य समझते
उन के कार्य को तुच्छ जान
बार-बार फिर से
वही गलती करते ....
जरा सा  भी नहीं हिचकते

प्रतीत हो रहा   इस धरा पे
मनुष्य वेश में
अनगिनत पशु विचरते ....





भाई वाजिद अली शाह के जमाने के

भाई वाजिद अली शाह के जमाने के एक शायर ' चिरकिन ' का नाम सुना था .कहते हैं वो सिर्फ गू मूत आदि त्याज्य चीजों पे कहते थे .सूनी हुयी उनकी एक बानगी ............. ' चिरकिन ' चने के खेत में चिरको सरक सरक . रंगत अलग अलग हो ,खुशबू ( बदबू ? ) अलग अलग ...

मैंने खाई बाँसी रोटी

मैंने खाई बाँसी रोटी
और पीया
लहसुन-काले नमक वाला मट्ठा

मारा ऐसा पाद
पूरा class रह गया हक्का-बक्का ...

हवाओं में मूली  के परांठे लहरा रहे है
रसोई में बावर्ची नहीं
पैखाने में बाबूजी ही जोर लगा रहे है ...

Wednesday 3 July 2013

अब न दे मेरे पीने पे ताने ...

अब न दे मेरे पीने पे ताने
होश में  अपने लगने लगे है बेगाने

तेरी मर्जी  तू चाहे माने या न माने

हम तो मैकदे जाते है
सिर्फ गैरों  से मुहब्बत  पाने ...


वो संडास को बार-बार ...

वो संडास को बार-बार 
गुलज़ार करते है 
ठेले की पानी पूरी 
खाने की सज़ा 
किस्तों में अदा करते है ...

Tuesday 2 July 2013

TV channels में खबर खोजता हूँ

तमाम खबर के लिए बने
TV channels में खबर खोजता हूँ
पर महसूस होता है की
भूसे के ढेर सुई ढूंढता हूँ ...

क्या मैं छुट्टे सांड से
दूध  की उम्मीद रखता हूँ ??



Monday 1 July 2013

जब चापलूस मुख्यमंत्री
१ ०  नंबर कोठी से
राज्यों पर थोपे जायेंगे

हर आपदा पर हम
ऐसी ही
बद-इन्तेजामी पाएंगे ...
रविश-ए-गुल[1] है कहां यार हंसाने वाले
हमको शबनम [2] की तरह सब है रूलाने वाले

सोजिशे-दिल[3] का नहीं अश्क बुझाने वाले
बल्कि हैं और भी यह आग लगाने वाले

मुंह पे सब जर्दी-ए-रूखसार[4] कहे देती है
क्या करें राज मुहब्बत के छिपाने वाले

देखिए दाग जिगर पर हों हमारे कितने
वह तो इक गुल हैं नया रोज खिलाने वाले

दिल को करते है बुतां[5], थोड़े से मतलब पे खराब
ईंट के वास्ते, मस्जिद हैं ये ढाने वाले

नाले हर शब को जगाते हैं ये हमसायों को
बख्त-ख्वाबीदा[6] को हों काश, जगाने वाले

खत मेरा पढ़ के जो करता है वो पुर्जे-पुर्जे
ऐ ‘जफर’, कुछ तो पढ़ाते हैं पढ़ाने वाले
शब्दार्थ:
  1.  फूल की भांति
  2.  ओस
  3.  दिल की जलन
  4.  गालों का पीलापन
  5.  रूपसी
  6.  सोया हुआ भाग्य