Tuesday 7 January 2014

मुझ से न पूछो मेरा पता

मुझसे न पूछो  मेरा  पता
जहाँ महफ़िल सजी मिले बस चले आना 

कुछ  भी लाने की जहमत न करना 
अपना गुरुर, अपनी ठसक छोड़ के आना  

मिलेंगे मेरे जैसे दीवाने हर शहर में 
बड़ा दिल लिए किसी मैकदे चले आना 

हलक से उतार लेना ये आब -ए -हयात 
बेकार के मश्वरों   पे  न जाना 

खुदा मिल जायेगा तुझे इंसानो में 
बस पैमानों से पूरी ईमानदारी  निभाना… 









वो तकलीफ पे तकलीफ़ देते गए
हम मज़े से हँस -हँस के सहते गए 
वो हताश हुए
हम और भी बिंदास हुए.…






Sunday 5 January 2014

बहुत हो चुका काम
चलो घर चले.…

सुबह से हो गई है शाम
चलो घर चले। …

जिस्म को  दे आराम
चलो घर चले.…

सुकून मिले , जान में आये जान
चलो घर चले। …

आज नहीं क्या इतेज़ाम ???
चलो घर  चले ???

पर बहुत हो चुके बदनाम
चलो घर ही  चले

मैकदे में साक़ी  हम से परेशान
चलो घर चले

पर घर में मयस्सर नहीं जाम
तो क्यों घर चले ??

न पूरे होंगे अरमां
फिर क्यों घर चले …

छोड़ो अब नफे -नुक्सान
जिधर कहो उधर चले

डूबने में जहाँ मिले इत्मीनान
चलो वहीँ चले.…

महफ़िले अब हम से है जवान
चलो मैकदे चले

रिन्दों को माफिक नहीं और कोई काम
चलो  मैकदे  ही चले …