Friday 21 December 2018

वक्त बे वक्त झुंझला जाता हूँ
हर किसी पे तो तोहमत लगता हूँ

ख्वाइशो की बेजा इस दौड़ में
मै कब कहाँ सुकून से जी पाता हूँ

दम भरने की भी कहाँ मुझे फुर्सत
पता नहीं ऐसा क्या खास मै चाहता हूँ

अब तक हांसिल किये जो मुकाम
उनका भी जश्न कब  कहाँ मनाता हूं

जरूरतें सारी कब किसकी पूरी हुई
मै तो हर रोज नयी जरूरत बनाता हूँ

पता न चला कब कहाँ रिस गयी जवानी
हर सवेरे अपने आइने से नज़रे चुराता हूँ

Friday 30 November 2018

कोई तरीका -सलीका काम न आया  
बेतकल्लुफी में  ही अपना किरदार निभाया 

मैकदे में  हम कब रहे कायदे-कानून के गुलाम  
जब  भी जी चाहा, सीधे सुराही को मुंह लगाया 

तू  भी अब खोल जीवन की सारी गिरह
यूँहीं ऐंठे ऐंठे जीया तो  भला क्या ख़ाक जी पाया 

है हर दिल यहाँ  आज़ाद परवाज का तलबगार
सिमटकर  तूने अब तलक अपना फजीता ही करवाया 

गले पार जा ये मय फ़ौरन भर दे  कितने रंग 
हमारी महफ़िल में हर पीये में खुदा नज़र आया 

अब छोड़ दे साले  इबादत के  सारे ढोंग 
जो अन्दर था तूने उसे बाहर खोजने में वक्त बिताया 

है पुर-सुकूँ  माहौल  हम रिन्दों की बस्ती में 
हमप्यालों ने सारा मजहबी भेद चुटकियों में  मिटाया

Wednesday 2 May 2018

पिताजी का रुमाल ...

बात उस समय की है जब ये मोमजामे की पन्नियाँ नहीं होती थी , होता था माँ का हाथ का सिला झोला जिसमे घर का रोजमर्रा का सामान आता , दूध भी प्लस्टिक की थैलियों में ना आता , उसको लाने के लिए एक ढक्कन वाली स्टील की बाल्टी तय थी ...

पर इन सबसे अलग था पिताजी का रुमाल... रोज विद्यालय जाते समय माँ एक साफ़ सुथरा बड़ा सा रुमाल पिताजी को थमाती , ये रुमाल बड़े ही काम की चीज थी , पिताजी विद्यालय से लौटते समय इसमें बाँध जरूर कुछ न कुछ खाने का सामान लाते , खासकर के फल ....

गर्मियों में आडू , आम ,बेल ,खीरे ,ककड़ी , खरबूजा ,शहतूत, बरसात में अमरुद , हेमंत में सेब , नाशपाती और जाड़ों में बेर ,संतरे आदि इसी रुमाल में बंधे आते ...

बच्चों वाले इस घर में पिताजी कभी खाली हाथ न लौटते और हम सब भाई बहन दौड़ पड़ते इस भरे रुमाल को पकडने कि देखें आज खाने के लिए क्या आया है ...

सबसे छोटे होने का मुझे अतिरिक्त फायदा मिलता ... मै लाये गए फलों में सबसे बड़ा अपने लिए चुनता ... दीदी, भईया प्रतिरोध जताते मगर माँ उन्हें मेरे छोटे और नासमझ होने की बात बता मना ही लेती ...

फल खाने पे टूट पड़े हम भाई- बहनों से माँ कहती जाती ... अरे ऐसे नहीं पहले धो लो , तुम्हारे लिए ही है ,कहीं भागा नहीं जा रहा ....

Friday 20 April 2018

माँ आयी...

माँ का काफी दिनों के बाद बेटी के घर जाना हुआ, घर पहुँचते ही नाती नानी से स्नेहपूर्वक चिपट पड़ा...अबोध को नानी से लाड के अलावा बड़ो के द्वारा निरंतर पोषित उपहार मिलने का लोभ भी था जो उसे ऐसा करने को प्रेरित कर रहा था...

और झट से माँ का बैग रूपी पिटारा खुल ही गया, नाती की बहुप्रतीक्षित रिमोर्ट से चलने वाली कार, दामाद की मनपसंद मिठाई, बेटी के उसके मायके के दर्जी से सिलाए दो सूट, इष्टदेव का प्रसाद, सूखे धनिए पोदीने का नमक, अपने हाथ की बनी मंगोड़ी, सुनार से ठीक कराई अंगूठी, जेम की शीशी में घर का बना गाय का घी, पिछली बार का छूटा तौलिया और मौजे ....आदि आदि

छोटी छोटी पुटरियो और कुटरियों में माँ अपनी लाड़ली के लिए उसकी पसंद का पूरा मायका ही समेट लाई थी...

बैग से निकलती स्नेह की इस अविरल गंगा का ममतामयी प्रवाह काफी देर तक जारी रहा और उसमें सराबोर बेटी हर निकलते सामान के साथ पुलकित हुई कहे जा रही थी... अरे माँ इसकी क्या जरुरत थी....

बॉस ...

शाम के वक्त वो चाय पीने निकलने वाला ही था की दरवाजे पे दस्तक हो गयी ...

तीसरी मंजिल का सब से कोने वाला कमरा था यह , आती जाती भीड़ से कम परेशान होने वाला... उसने सोचा बगल वाला मित्र ही होगा इसलिए बेतकल्लुफी में वो जोर से चिलाया ...अमां आ रहा हूँ काहे दरवाजा पीटे पड़े हो ... पर बाहर से कोई जवाब न था ...

दरवाजा खोलते ही उसने एक अंजान चेहेरे को सामने खड़ा पाया पर भावभंगिमा और पहनावे को निहार ये स्वतः आभास हो गया के हो न हो ये कोई सीनियर ही है ... और फिर बरबस मुंह से निकल ही पड़ा ... नमस्कार बॉस ..

अभिवादन के तुरंत ही उत्तर मिला ... नमस्ते डिअर ... मस्त रहो ... इन शब्दों ने उसके सीनियर होने की बात की तस्दीक भी कर दी ...

यार क्या मै दो मिनट तुम्हारे कमरे में आ सकता हूँ ? , कभी किसी वक्त मै भी इसमें रहा करता था ... आग्रहपूर्ण आदेश जैसा था कुछ

जरुर बॉस आइये बॉस ... शब्दों में बड़ी ही आत्मीय स्वीकृति थी ...

बॉस अन्दर जा पुरानी यादों में खो से गए , बड़े ही शांत भाव से कमरे को निहारने लगे जैसे कि नेत्रों के माध्यम से कुछ संजो के ले जाना चाह रहे हो वहां से ... हाँ उन्ही कमरा था यह , वहीँ निवाड वाली ढीली चारपाई , वहीँ लटकते तारों और टूटे स्विच वाला बिजली का बोर्ड , कोने में पड़ा ...ऊपर से जला बीच में छेद वाला लकड़ी का स्टूल , वो ही हत्थे वाली बुनी हुई कुर्सी , वही हिलती हुई मेज और उसको साधने हेतु पाए के नीचे लगा मुड़े हुए कागज का टुकड़ा ...

इस दौरान कमरा बिलकुल शांत था , वहां मौजूद दोनों लोगो के दिमाग में अनेक बातें थी , एक पुराने समय को वापस जी रहा था और दूसरा अबोध उसे इस कृत्य पे बड़े बड़े प्रश्नवाचक चिन्ह बना रहा था ...

अचानक शांति को भंग करते हुए बॉस बोल ही उठे , देख मेरा नाम अब भी यहाँ पे गुदा हुआ है ... अलमारी के लकड़ी के दरवाजे की अन्दर की तरफ वो हाथ फेरते हुए बोले ....

लड़का कौतुहल में समीप आते हुए कुछ देखने की चेष्टा करने लगा , पेंट की पतली तहों के नीचे उसे भी कुछ अस्पष्ट अक्षर नज़र आ ही गए ...

बातों के सिलसिले को बॉस आगे बढ़ाते हुए बोले... बेटा मै तुमसे तकरीबन आठ साल सीनियर हूँ और फिलहाल JR III MD मेडिसिन हूँ ____(दूसरे) मेडिकल कॉलेज में , शहर किसी काम से आया था , सोचा कॉलेज और हॉस्टल देख आऊं ...कॉलेज छूटने के बाद पहली दफा आ रहा हूँ ...

जी बॉस ... बालक शांत भाव से बॉस की तमाम बातों को सुन रहा था ...

अरे शाम की चाय का वक्त हो गया चलो चाय पी के आते है बॉस कमरे के निरिक्षण को समाप्त करते हुए बोले ...

हॉस्टल से चाय की दुकान के सफर में बातों सिलसिला जारी था , बॉस के अपनत्व ने जूनियर –सीनियर के उस विशाल भेद को ख़त्म सा कर दिया ... तमाम नयी पुरानी बातों की चासनी के मध्य दो चाय ,बंद मक्खन ,समोसे कब खत्म हो गये पता ही नहीं चला ... परंपरा स्वरुप बॉस ने ही वहां मौजूद सभी लोगो के इस अल्पाहार का बिल भरा ...

थोड़े ही समय में सम्बन्ध घनिष्ठ हो चुके थे , बॉस , बालक और उसकी सारी मित्रमंडली कॉलेज और हॉस्टल की नयी पुरानी बातों में एक ही रंग में रंगे नजर आने लगे...

बॉस अब सलीको वाला होटल का कमरा छोड़ , हॉस्टल के पुराने अपने रूम में अड्डा जमाये हुए थे और अगले तीन चार रातें जमके महफिले सजी, पुराने और नए का यह संगम, मस्ती के न जाने कितने पिटारे खोल रहा था ...

बॉस भी जूनियर्स के प्यार के मध्य खूब जिए मानो फिलहाल जिस संजीवनी की उन्हें तलाश थी वो मिल गयी हो ...

आंखिरकार बॉस के जाने का दिन भी आ ही गया , तमाम फिर से मिलने के वादों-इरादों और मीठी यादों के साथ बॉस बच्चो से रुक्सत हो लिए ...
बच्चों के दिल में बॉस अपनी जिन्दादिली से एक अमिट छांप छोड़ गये ,

फिर यूँही कई महीने गुजर गए , बालक ने बॉस की सुध लेने की सोची ... फ़ोन नंबर न लगा , संपर्क करने का और कोई दूसरा जरिया न था इसलिए बॉस जहाँ से PG कर रहे थे वहां से संपर्क साधा गया ... जानकारी बड़ी ही दुखदायी निकली ...

बॉस को GBM (Glioblastoma Multiforme) diagnose हुआ था ,डॉक्टर होने के नाते इसके अंजाम से वो अच्छी तरह वाकिफ थे इसलिए जो भी समय उनके पास था उसमें वो अपने पुराने दिन जीना चाहते थे , पुराने लोगो से मिलाना चाहते थे , वो बिना किसी को बताये सब से मिले पुरानी जगह घूमे... उनको स्नेह चाहिए था ,सहानुभूति नहीं .... माँ –बाप और भाई बहनों को भी रोता बिलखता नहीं देखना चाहते थे इसलिए उनसे ठीक रहते हुए काफी समय पहले ही अंतिम विदा ले ली थी .. बात में पता चला बॉस किसी गुमनाम आश्रम में पंचतत्वो में विलीन हुए ...

एक हम है जो छोटी छोटी बातों पे एक दूसरे पे सवार हुए रहते हैं ,लड़े भिड़े रहते हैं , जीवन अनिश्चित है , इसे परस्पर के छोटे वाद विवादों में व्यर्थ न कीजिये , पुराने लोगो से मिलते रहिये ....

Thursday 5 April 2018

कुछ तो आग रही होगी...

कुछ तो आग रही होगी , यूहीं नही धुआं होता 
कुछ तो बात रही होगी , यूँही नहीं कोई परेशां होता 

मैंने पूछा खुद से , चल तू ही बता दे सही क्या है 
अपने ज़मीर से सच्चा दुनियां में न कोई इंसा होता 

सच ,फरेब के चक्कर में तो उलझे है सारे के सारे 
सच तो सच ही रहता , झूठ चाहे कितना बयां होता 

खुद की नज़रों से अगर गिर गए तो कहाँ जाओगे ?
इस मतलबी जहां न हर कोई इतना मेहरबां होता 

झट से नींद आनी चाहिए सर तकिये में रखने से 
बार बार की करवटों में तो तेरा जुर्म ही नुमां होता 

दौलत के शजर से अगर मिलती तमाम खुशियाँ 
अमीरों के खुदा होने पे जरा न हमको गुमां होता

Wednesday 4 April 2018

हॉस्टल से घर ...

कई दिनों से हॉस्टल में 
रहते रहते ऊब गए 
फिर घर की खट्टी मीठी 
यादों में डूब गए

होम सिकनेस ने सताया 
झट से VIP सूटकेस उठाया 
ढेरों कपडे ठूसे इस कदर 
बंद करने के लिए बैठ गए ऊपर

बिना रिजर्वेशन ही निकल लिए 
TT से ही तो जुगाड़ हर बार किये 
स्लीपर का डिब्बा कितना हिले 
लोरी सी ट्रेन की छुक छुक लगे

घर पहुँचने की सोच से प्रसन्नचित मन 
कौन सा स्टेशन आया हम पूछे हरदम 
सीट के नीचे अपने सामान को कई बार देखें 
जूते न चोरी हो के ख्याल से उड़ गयी नींदे

रिक्शेवाले को दे दिया दो रुपया ज्यादा 
सुबह सवेरे पिताजी ने खोला दरवाजा 
न ख़त न फोन से आने की इतला है 
अम्मा की आँखों से खुशी का बादल बरसा है

पड़ोस के अंकल से हो गयी नमस्ते 
कुशल क्षेम पूछ वो भी हो लिए अपने रस्ते 
अटैची खोल गंदे कपडे बाहर निकाले
नए LEATHER पर्स को किया पिताजी के हवाले

अम्मा ने सारे कपडे , तुरंत भिगा डाले 
और हैं क्या ? बस बार बार पुकारे 
नाश्ते में आज आलू का परांठा है 
घर के मक्खन का स्वाद कितना ज्यादा है

बिना नाहे धोये ही खाने पे पड़े टूट 
अम्मा के आँचल से हाथ पोछने की छूट 
पिताजी पैदल निकल लिए अपने विद्यालय 
किया स्कूटर की चाभी को मेरे हवाले

साफ सुथरा बिस्तर कितना अच्छा लगे 
तकिया टिका हम टीवी देखने लगे 
घडी की सुई ने १२ बजाये 
तब जाके कहीं हम गुसलखाने में घुस पाए

नहा धो के अब DINING टेबल पे जमे है 
अपने पसंद के आज सारे व्यंजन बने है 
जी भर के अरहर दाल और चावल खाए 
मैथी की सूखी सब्जी कितना जायका बढ़ाये

खाना खा कर अब आ रहा औसान 
बिस्तर के हवाले हो गये श्रीमान 
सफ़र की सारी थकन लम्बी नींद ने मिटाई 
शाम के चाय अम्मा ने बिस्तर पे ही पिलाई

तैयार हो अब हो रही शहर की घुमाई 
शर्मा जी की लड़की देख के मुस्कुराई 
पुराने संगी साथियों से कितनी मुलाकाते 
डॉक्टर के संबोधन पर हम सबको डांटे

दो चार दिन तो सब अच्छा ही लगे 
घर के प्रतिबन्ध में अब लगे बंधे बंधे 
पढाई की भी चिंता रह रह सताए 
कुछ छूट जाने की आशंका कितना डराए

लो देखो आ गयी वापसी की तिथि 
सवेरे से ही आंखे कितनी भरी भरी 
अम्मा ने जैम की शीशी में देसी घी थमाया 
खाने पीने का सामान अलग से पकडाया

लल्ला के जाने से अम्मा बेहाल 
पिताजी का समझाना उन्हें लगे बेकार 
पिताजी के अन्दर भी ढेर सारा स्नेह 
कैसे उड़ेले अपनी कडक छवि खो जाने का भय

चरणस्पर्श कर ले रहे विदा 
पड़ोस के पिंटू ले बुला लिया रिक्शा 
रिक्शे वाला पेडल धीरे-धीरे खीचने लगा 
दूर होता हुआ घर हाय अखरने लगा...

Friday 30 March 2018

पिताजी हॉस्टल आये ...

पोटली में बाँध 
कुछ सामान लिए 
पिताजी घर से चले आये 
माँ का स्नेह साथ पिरो लाये ...

भेजे हैं माँ ने 
अपने चुन्नु के लिए 
कुछ बेसन के लडडू
कुछ मठरी और चने का सत्तू

लल्ला दूर पढ़ रहा है 
माँ को ये विछोह 
कितना अखर रहा 
पता नहीं क्या खाता होगा 
पेट भी अच्छी तरह कहाँ 
भर पाता होगा ...

कितने लाड प्यार में 
देखो ये पला है 
खाने में कितना 
न –नुकुर इसने किया है

कलेजा का टुकड़ा 
परदेस में मेहनत कर रहा है 
परिवार को तारने के 
कितने ख्वाब बुन रहा है

पोटली खुलते ही 
फ़ैल गयी चारो ओर महक 
आस-पास का संगी साथी 
करे पिताजी को चरणस्पर्श

सब देखों खाने में रमे है 
महीने भर की सामग्री 
मिनटों में चट कर दिए है

ये देख पिताजी फूले नहीं समाते 
अपने संघर्षो को फलीभूत होता देख 
देखो कितना हर्षाते ...

Wednesday 14 March 2018

किस्सा -ए-पुताई

किस्सा -ए-पुताई

BH-3 में रंग-रोगन का काम चालू था , आज पुताई सबसे ऊपर की मंजिल में बॉस के कमरे में होनी थी , पुताईवाले के बार-बार आग्रह ,अनुनय और विनती से द्रवित हो बॉस ने आंखिरकार कमरा खाली कर ही दिया , खुद नहीं किया , इतनी जहमत कौन मोल ले? .... पुताईवाले से ही कराया ...

सरकारी खर्चे पे काम कैसा होता है , ये हम सभी जानते ही है .....
पुताई वाले ने तीन चार , आड़े-तिरछे ब्रुश मारे और हो गया काम से फ़ारिग...बॉस में जब अपने कमरे को देखा तो बोले “ बेटा कल एक और कोट मर देना ... मजा नहीं आया ...

डॉक्टर साहब के आदेश की अवेहलना नहीं की जा सकती थी और इन वाले बॉस की तो कदापि भी नहीं ... अगले दिन कमरे में दूसरी दफे फिर से पुताई का काम चालू था ... इस बार थोड़ी अतिरिक्त संजीदिगी के साथ ..

फिर से शाम को कमरे का मुआयना हुआ ... मसाला लगे दांतों को माचिस की तिल्ली से खुजलाते हुए बॉस बोल उठे .... अम्मा यार ... मजा नहीं आया ... कमरे में दिल को खुश करने वाली चमक नहीं ... ऐसा करना बेटा कल फिर से एक कोट मार देना ... छत का ध्यान राखियों ... एक दम दूध जैसी सफ़ेद लगनी चाहिए ....

पेंटर बाबू के थोड़ी असहजता महसूस हुई , अपने मापदंड के अनुसार वो अपने काम को बखूबी निभा चुके थे...वो भी एक ही काम को दो बार ... खैर पानी में रहकर मगर से बैर तो लिया नही जा सकता था ... सो भरे मन से ही सही अगले दिन भी, तीसरी बार पुताई वाले की कूंची से उत्पन्न छीटों से बॉस के कक्ष का फर्श गुलज़ार था ...

शाम को थके मांदे पुताई वाले ने थोडा अधीर होते हुए पूछा” साहब अब तो हो गया ... स्वर थोडा तल्ख़ और कर्कश था ....

पुताई वाले की उदंडता को भांपते हुए बॉस बोले ... ससुर तुम कोई काम ठीक से नहीं कर सकते ... तीन –तीन बार हाथ चला चुके हो और नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात ... कल फिर आ जाना , ये आंखिर बार है अगर इस बार भी कमरा ठीक से नहीं पुता तो तेरी खैर नहीं ...

पुताई वाले का सब्र का बाँध अब टूट चूका था , प्रतिकारी लहजे में वो बोला , साहिब साफ़ –साफ़ कही रही है के अब हम ना आई...

बस मुंह से शब्द छूटने भर की देरी थी , एक लपलपाता हुआ, झन्नाटेदार कंटाप उसके गालो पे रसीद हो चुका था .... थप्पड़ की गूँज की मध्य ही उसका सारा पुताई वाला सामान ( रंग भरी बाल्टी डब्बे , ब्रुश , रेकमाल आदि ) दूसरी मंजिल से नीचे ज़मीन पर शोभायमान था ...

आती हुई आफत पुताईवाले ने भांप ली थी , सरपट दौड़ता हुआ सीधे ठेकेदार के पास पंहुचा और हाँफते –हाँफते सारा किस्सा सुना डाला ...
ठेकदार कॉलेज में पुराने समय से काम ले रहा था , इन परिस्थितियों की उसे आदत सी थी ...

मुस्कुराते हुए वह बोला ... बेटा चुप्पेचाप चौथी बार भी कमरा पोत दे और देख ज्यादा मुंहजोरी न करना वरना अगली बार सामान की जगह तू ही नीचे पड़ा होगा ...

अगली शाम चार दफे पुत जाने के बाद बॉस का कमरा जगमगा रहा था और पुताई वाला भी तीन –तीन पैग एक सांस में हलक से नीचे उतारने के बाद बॉस के कदमों में प्रसन्नचित लोटा हुआ था ...

Monday 5 March 2018

जो है पास ,उसी का जश्न मनाया करो

खिजाब अपनेबालों पे न लगाया करो
तुजुर्बे की चांदी यूँ ही न छिपाया करो

उम्र का हिसाब लगाते क्यों हो परेशां ?
जब जी चाहे , बच्चा बन जाया करो

कब तक रहोगे तमाम सलीको के गुलाम
गुसलखाने को छोड़, खुले में नहाया करो

फिर ना कहना ,के शौक अधूरे रहे
हमारी महफ़िल में आया-जाया करो

अगर लगा दे कोई बिगड़ जाने का इलज़ाम
उससे नज़रे मिला, कहकहे लगाया करो

वक्त भला कब मेरे तेरे  लिए रुका ?
जो है पास ,उसी का जश्न  मनाया करो

Tuesday 27 February 2018

कुमाँऊनी होली...

कुमाँऊ में होली रंग के साथ-साथ गीत संगीत का भी त्योहार है , अगर अपने को सही करते मै यह कहूं कि गीत संगीत पहले है और रंग बाद में तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ....

होली की यह मस्ती पहाड़ो में बसंत पंचमी से आरंभ हो जाती है और रंग वाली होली के बीत जाने के बाद भी बदस्तूर जारी रहती है ...

कुमाँऊनी होली मुख्यतः तीन प्रकार की होती है ...
१. खड़ी होली 
२. बैठकी होली 
३. महिला होली ...

खड़ी होली- एक प्रकार का सामूहिक गायन और नृत्य है , रंग वाली होली के दिन , ढोल , मंजीरे और चिमटे से उत्पन्न संगीत पे पुरुषों लयबद्ध थिरकते पाँव एक अजब समां प्रस्तुत करतें हैं ...कुर्ता –पैजामा और सर पे गाँधी टोपी पहने हुए हुलियार उड़ते अबीर गुलाल के मध्य कितने दिव्य प्रतीत होते है ...

यह सामूहिक नृत्य एक दायरे में होता है और बीच में होता एक अनुभवी नियंत्रक जो अपने इशारों से इसे सुचारू रूप से सम्पन्दित करता है ....

बैठकी होली:- ये शास्त्रीय संगीत पे आधारित गायन हैं जो रात के इत्मीनान में गाया जाता है , आम तौर पे घर की बैठक के सारे फर्नीचर को बाहर निकाल कर फर्श पे जाजिम (फ़र्श आदि पर बिछाने का छपा हुआ सूत का मोटा और रंगीन बिछावन; मोटीदरी) बिछा दी जाती है , गद्दे और चादर बिछ जाने के बाद तकिये और मसनद श्रोताओ के आराम हेतु रख दिए जाते है ...

हारमोनियम और तबले के संगीत पे यह गायन अनुभवी लोगों के द्वारा ही गाया जाता है और पहाड़ी रास्तो की तरह ही इसमें काफी उतार-चढाव होते है ....

इस संगीतमय प्रस्तुति के दौरान मेजबान की रसोई काफी व्यस्त रहती है , चाय –पकौड़े , गुजिया ,सेव , चिप्स ,पापड़ की अनवरत पूर्ति वहां से होती रहती है ...

लौंग , इलायची ,मिसरी , कसी हुई गरी, एक खांचे वाले कटोरदान में हर आने वाले के स्वागत में प्रस्तुत की जाती है ...

घर की स्त्रियाँ इस मेहमाननवाजी के मध्य अपनी को अछूता नहीं रख पाती और परदे की पीछे से झांक-झांक वो भी इन स्वरलहरियों पे सवार हो ही जाती हैं ...

महिला होली :- फाल्गुन के इस मस्ती में महिला अपने को भला क्यों पीछे रहने दें ? जहाँ खड़ी होली, बैठकी होली में पुरुषों का अधिपत्य है , महिलाओं ने इसे अपने लिए ईजाद कर लिया ... ढोलक और मंजीरे की संगत में होने वाले इस गायन पे स्त्रियों का एकाधिकार है ...
माथे और गाल पे अबीर गुलाल लगाये , गायन में मशगूल माँ और पास पडौस की आंटियो की याद आज भी जेहन में तरोताजा है ...

तो इस होली आप भी कुमाँऊनी होली की तीन स्वरूपों का अवश्य आनंद लें ....

जल कैसे भरूं जमुना गहरी -२

ठाड‌ी भरूं राजा राम जी देखें
बैठी भरूं भीजे चुनरी

जल कैसे भरूं जमुना गहरी -२

धीरे चलूं घर सास बुरी है
धमकि चलूं छलके गगरी

जल कैसे भरूं जमुना गहरी -२
गोदी में बालक सिर पर गागर
परवत से उतरी गोरी
जल कैसे भरूं जमुना गहरी -२

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जोगी आयो शहर में व्योपारी -२

अहा, इस व्योपारी को भूख बहुत है,
पुरिया पकै दे नथ-वाली,
जोगी आयो शहर में व्योपारी।

अहा, इस व्योपारी को प्यास बहुत है,
पनिया-पिला दे नथ वाली,
जोगी आयो शहर में व्योपारी।

अहा, इस व्योपारी को नींद बहुत है,
पलंग बिछाये नथ वाली
जोगी आयो शहर में व्योपारी -२

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रंग में होली कैसे खेलूं री मैं सांवरियाँ के संग….
अबीर उडता गुलाल उडता, उडते सातों रंग
भर पिचकारी सनमुख मारी, अंखियाँ हो गयी बंद…
तबला बाजे, सारंगी बाजे, और बाजे मृदंग
कान्हा जी की बांसुरी बाजे, राधा जी के संग…
रंग में होली कैसे खेलूं री मैं सांवरियाँ के संग….

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झनकारो झनकारो झनकारो
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो – २

तुम हो बृज की सुन्दर गोरी, मैं मथुरा को मतवारो
चुंदरि चादर सभी रंगे हैं, फागुन ऐसे रखवारो।

गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो – २–

सब सखिया मिल खेल रहे हैं, 
दिलवर को दिल है न्यारो
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो – २

अब के फागुन अर्ज करत हूँ, 
दिल कर दे मतवारो
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो – २

भृज मण्डल सब धूम मची है,
खेलत सखिया सब मारो
लपटी झपटी वो बैंया मरोरे, 
मारे मोहन पिचकारी
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो – २

घूंघट खोल गुलाल मलत है, 
बंज करे वो बंजारो
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो -२
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बलमा घर आयो फागुन में -२
जबसे पिया परदेश सिधारे,
आम लगावे बागन में, बलमा घर…
चैत मास में वन फल पाके,
आम जी पाके सावन में, बलमा घर…
गऊ को गोबर आंगन लिपायो,
आये पिया में हर्ष भई,
मंगल काज करावन में, बलमा घर…
प्रिय बिन बसन रहे सब मैले,
चोली चादर भिजावन में, बलमा घर…
भोजन पान बानये मन से,
लड्डू पेड़ा लावन में, बलमा घर…
सुन्दर तेल फुलेल लगायो,
स्योनिषश्रृंगार करावन में, बलमा घर…
बसन आभूषण साज सजाये,
लागि रही पहिरावन में, बलमा घर…

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शिव के मन माहि बसे काशी -२
आधी काशी में बामन बनिया,
आधी काशी में सन्यासी, शिव के मन
काही करन को बामन बनिया,
काही करन को सन्यासी, शिव के मन…
पूजा करन को बामन बनिया,
सेवा करन को सन्यासी, शिव के मन…
काही को पूजे बामन बनिया,
काही को पूजे सन्यासी, शिव के मन…
देवी को पूजे बामन बनिया,
शिव को पूजे सन्यासी, शिव के मन…
क्या इच्छा पूजे बामन बनिया,
क्या इच्छा पूजे सन्यासी, शिव के मन…
नव सिद्धि पूजे बामन बनिया,
अष्ट सिद्धि पूजे सन्यासी, शिव के मन…

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हाँ हाँ जी हाँ, सीता वन में अकेली कैसे रही है
कैसे रही दिन रात, सीता वन में…
हाँ हाँ जी हाँ, सीता रंग महल को छोड़ चली है
वन में कुटिया बनाई, सीता वन में…
हाँ हाँ जी हाँ, सीता षटरस भोजन छोड‌ चली है
वन में कन्दमूल फल खाई, सीता वन में…
हाँ हाँ जी हाँ, सीता तेल फुलेल को छोडि चली है
वन में धूल रमाई, सीता वन में…
हाँ हाँ जी हाँ, सीता कंदकारो छोड़ चली है
कंटक चरण चलाई, सीता वन में
कैसे रही दिन रात, सीता वन में।

Saturday 17 February 2018

वक्त बीता ,रिसी जवानी हम-तुम उमरदराज हुए
पर शिकवे-शिकायतों के वही पुराने  अंदाज रहे....

भूल जाता हूँ अक्सर गुसलखाने में तौलिया ले जाना
कितना भाता है तेरा त्योरियां चढ़ा उसे दे जाना ...

गुस्से में न जाने क्या-क्या कह दिया भला बुरा
उसने भी तो जवाब दे दे आग में घी दिया ...

जरा सी बात कितनी बड़ी हुई
हार न मानने की अपनी-अपनी जिद्द रही ...

फिर से सारी दराजों का सामान तितर-बितर है
चीजे ज्यादा संभाल  के रखने का इल्जाम किसी के सर है ...

न कुछ नया बात पुरानी वही है
रात के खाने में फिर से लौकी बनी है ...

कुछ मेहमान बिन बताये साथ ले आया
खाना बनाने से ज्यादा उसने ने मुंह बनाया ...

अनजाने में ही 'गुनाह ए अजीम' कर बैठा ...
अपनी तकरार में उनके मायके का जिक्र का बैठा 

खीज उठता हूँ तेरे फोन के न उठाने पे ...

कहीं की कोफ़्त ,कहीं और ही बरसाने पे

मसरूफ हूँ 

बिन काम काम की  मशक्कत में ,
सबसे जुदा हूँ 
मै शादी-शुदा हूँ 



हार के कगार पर
विषाद अपार पर
सहानभूतियों के अभाव पर
सब कुछ ख़त्म होने के विचार पर
सम्भावनायें तलाशिये …

रोजमर्रा के बरताव पर
फासलों के प्रसार पर
शब्दों से मिले घाव पर
अपने अहमों के टकराव पर
सम्भावनायें तलाशिये …

व्यक्तित्व के बिखराव पर
व्यसनों से जुड़ाव पर
रिक्तता के ख्याल पर
जी के बने जंजाल पर
सम्भावनायें तलाशिये …

सम्भावनायें तलाशिये …
हार में विजय पाने की
विषाद से उबार जाने की
सहनभूतिओं के बिना ही आगे बढ़ जाने की
ध्वंस में नई ईमारत बनाने की

सम्भावनायें तलाशिये … .
अपने बरताव से निखर जाने की
तमाम दूरियां मिटाने की
शब्दों से हृदय तक पहुँच जाने के
अपने अहम को भूल जाने की

सम्भावनायें तलाशिये …
व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने की
व्यसनों से मुक्ति पाने की
नित्य नए अच्छे मित्र बनाने के
उलझने  बिना धैर्य खोये सुलझाने की.....

शायद ये मेडिकल की पढाई का ही दुष्प्रभाव कि आज भी अक्सर  ये अहसास हो ही जाता है कि कोई परीक्षा निकट है और हमने काफी दिनों से मौजमस्ती में समय निकल दिया और पढाई नहीं की... 
शहर की चकाचौंध ,शानोशौकत आबाद है
बस चंद मीलों की दूरी तक इसकी मियाद है

हाईवे पे टंगी शुक्रिया ए तशरीफ   ने बता दिया मुझे
तरक्की और खुशहाली की सीमा अब समाप्त है

पुआल के छप्परो से निकलता धुआं तलशता हर रोज
वो कहते सूबे की सत्ता पे काबिज समाजवाद है

लुटे ,पीटे फीके चेहरे कर रहे है  हक़ीकत बयां
दारुल ए हुकूमत के तरक्की के  दावे सिर्फ मिराज हैं

बाड़ ही खाये  जा रही  रफ्ता-रफ्ता खेतो के यहाँ
और इश्तिहारों में चहुमुखी विकास का शोर बेहिसाब है

दीदी का रिश्ता तय हुआ हर्षोल्लास है
तीसरी पीढ़ी के पाणिग्रहण की शुरुआत है
चारो ओर से आ रहे बधाई सन्देश
सबको सम्मलित करने का है प्रयास विशेष

कुल पुरोहित को बुला शुभ मुहूर्त निकला
बच्चो की परीक्षाओ ने व्यवधान डाला
बड़ी माथापच्ची के बाद तिथि हुई तय
कोई नाराज न हो जाए सता रहा भय

कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन शुभ-विवाह है
खाना-पीना,कपड़े जेवर की न ख़त्म होती चर्चा है
बारात के स्वागत सत्कार ,ठहराने का उचित प्रबंध है
पिताजी का इस शहर हर एक से मधुर संबंध है

अब वो उलझे है ,खर्चो की जोड़,गुणा भाग में
FD तोड़ने,provident fund से loan लेने के विचार में
पुत्री के पिता होने की जिम्मेदारी बड़ी है
अच्छी तरह निभ जाए , माँ प्रार्थना कर रही है

इन चिन्ताओ से दूर, नव-युगल अलग ही रमे हैं
रात भर चलती बातों से, टेलीफोन बिल कितने बड़े है
कार्ड,खतो, उपहारों का सिलसिला अब शुरू है
रूठने-मनाने के क्रम में ,दोनों का मन भीरु है






क्षण ,पहर ,दिन मास बीते
बीत गया  समस्त अन्तराल
विवाह दिवस निकट आ पहुँचा
अपूर्ण छूटे काज लगे विकराल   

धैर्य हरे कोलाहल मचाये
सब कर रहे दौड़ भाग
किसी का निमंत्रण पत्र छूटा
लग रहे नित्य नई शिकायतों के अंबार

बड़े-बूढ़े कहते है-
कन्या विवाह होते होते ही होता
तैयारी पूर्ण न होती अंतिम पहर तक
वधू-पक्ष चैन से कब सोता है ?

गणेश पूजन से शुरू हुआ यह मंगल कार्य
हाथ जोड़ विनती कर रहे माँ-पिताजी एकसाथ
नहा धो साड़ी पहने दीदी का नया रूप आज
मंत्रोचारण के मध्य अतिथि आगमन लगातार

धूप-दीप प्रज्वल्लित गूंजे शंखनाद
समस्त देवी-देवता नमन,विघ्न हरो करतार
घंटी ध्वनि संग विधिवत आरंभ विवाह-संस्कार
अनुभवी महिलओं के सुपुर्द समस्त रीत-रिवाज






रसोईघर मचे घमासान मध्य विविध नवैद्य तैयार
प्रतिक्षण लगती रहती यहाँ देखो चाय की पुकार
दक्ष स्त्रियों के श्रम से सुरभित यह कार्यक्षेत्र आज
जलते चूल्हे संग अनवरत चलता इनका हास-परिहास

चाय की चुस्कियों लेती महरी सम्मुख
लगता रहता झूठे बर्तनों का अंबार
बिना शिकायत इस दुर्बल काया को
माँ से उचित ईनाम की दरकार ...

रौनक घर के बड़ी ,अनुपम अतिथि सत्कार
ढोल-गीतों संग गूंजे लयबद्ध करताल
नाचे घर के बड़े-बूढ़े ,अद्भुत, दिव्य यह अहसास
पीहर छोड़ चली लाड़ली अब अपने सौरास...




सरसो का तेल चुपुड़ के तैयारी की शुरुआत
शुभ होली लिखी   टोपी पहन बालो का बचाव
छोटी -छोटी पन्नियों रखे रंग विभिन्न  प्रकार
पुरानी पैंट कमीज पहन निकले हम बाहर


वो गलियों में दौड़ते कूदते  बिंदास
सने हाथ लिए रंग अबीर गुलाल
पानी के गुब्बारे भरे बेहिसाब
पिचकारियां बनी बालयुद्ध का हथियार

पानी की भरी बाल्टी के लिए छीना -झपटी
रोने पे डरपोक होने  की साथी ने कसी फबती
पास-पडोस का हर आंगन अपना
बिन थके हम भागते दौड़ते कितना

कभी-कभी लग जाती माँ की फटकार
घर वापस आने को हम कहाँ तैयार
गुजिया पापड़ चिप्स दही बड़े
छक के खाये गिनती कौन गिने

ठंडाई को पीने से पहले पूरी  पड़ताल
 भांग मिले होने की संभावनाए हजार
गुप्ता जी की नई पुती दीवार पे छापे दो हाथ
उनका खिसयाना हमें अब तक याद

बालपन की  किशोरावस्था में तब्दीली
साथ बड़ी मिनी तब  आइटम लगती
हाथ उसके गोरे गालो के  स्पर्श को  लालायित
होली के मौके पे न होगी उसे भी कोई  शिकायत

मोहल्ले के साथ आधा शहर दिया नाप
घर की छतों से आता रगीन पानी का छिडकाव
तन मन फाल्गुन की मस्ती में रमे
घर लौटने की जल्दी क्यों कोई करे

आंखिर में थके मांदे घर की ओर किया रुख
काया से रंग छुड़ाने के यत्न ने छीना सारा सुख
कान नाक चेहरे से रंग निकलता ही रहे
अकेले हम नहाने में पानी की टंकी आधा किये

नहा धो जैसे ही निकले गुसलखाने से
साथी फिर पोत गए होली के बहाने से
कहने लगे हमने कहा खेली उन संग होली
हम भी तो हैं तुम्हारे खासमखास हमजोली

सच में बड़ा होना अब कितना अखरता है
विशिष्टता का अहंकार हमें अलग थलक करता है
अब हर फाल्गुन पुराने  घर की याद दिलाता है
दिल में वही पुराना बचपन मचलता है फड फडाता

Friday 16 February 2018

रीयूनियन ...

देखों पलभर में बीते पच्चीस  साल 
आज मिलके हुआ कितना सुखद अहसास... 

लगता है कल की ही बात थी 
एडमिशन वाले दिन
कितने नए चेहरे दिखे  थे 
डरे, मुस्कुराये कितने खुश हम लगे थे ..
कोल्ड ड्रिंक पेटिस ,पेस्ट्रीज
सीनियर्स ने ही सर्व किये थे ...
उस विशाल कक्ष में 
कितने गरिमामयी क्षण हमने जिए थे ....

साथ-साथ गुजरे वो जीवन के बेहतरीन साल 
नए मित्रो के संग हुई  धमाचौकड़ी बेमिसाल ...

सुबह  सुबह ८ बजे के लेक्चर के लिए रेस
बिना नाश्ते किये  हम  कदम बढ़ाते तेज 
पहले gross बनाने के लिए कितनी मेहनत की 
अक्ल आयी तो ट्रेसिंग पेपर की मदद ली.. 

frog पिथिंग ने कितना डराया 
hemat lab में दूसरे के खून से काम चलाया 
DH ने कुछ देखने की जद्दोजेहद ने 
कितना मजमा लगाया 
पहले पार्ट VIVA ने हाय कितना डराया ...

पहले टर्मिनल में हुए  हम फेल 
साथी की समान स्थिति देख 
नहीं हुआ ज्यादा खेद ...

पहला प्रोफ पास करने में 
जंग जीतने जैसा अहसास 
HONEYMOON प्रोफ का आगमन 
बेहद खास 
चूरन चटनी (फार्मेसी लैब ) में 
पके कितने सम्बन्ध 
माइक्रो लैब में DR LOA का 
कर्फ्यू माफिक प्रबंध 

PATHO की स्लाइड्स 
अबूझ पहली लगे 
फॉरेंसिक में पहला POSTMORTEM देख 
हम सिहर उठे 

SPM ने गाँव गाँव घुमाया 
तो  कभी संडास , मक्खी, मच्छर 
में उलझाया ...

फाइनल प्रोफ की कुछ अजब ही थी कहानी 
सीनियर मोस्ट होने के साथ रिस रही थे जवानी 
पढाई का विकराल पहाड़ सर पे खड़ा था 
डॉक्टर बन जाने की आस परिवार कर रहा था 

और हमको मालूम थी अपनी औकात 
किसी तरह पास हो लगे न कोई दाग 
वार्ड पोस्टिंग, CASE PRESENTATON ने 
कितना कहाँ कहाँ  नहीं  दौड़ाया 
रूम पार्टनर का स्कूटर कितना काम आया 

याद है न वो प्रोफ से पहले 
CASE, INSTRUMENT के लिए भागा दौड़ी 
EXAMS की वो काली रातें व
वो ALPRAX की गोली 

लड़कियों ने तो घर से 
अपनी-अपनी मम्मियों को बुलाया 
लडको सुट्टे ,चाय कॉफ़ी से काम चलाया 


डरते सहमे सकपकाते 
VIVA में क्या क्या नहीं 
गुल खिलाया ...
इन सारे किस्सों ने हमे 
पीढ़ी दर पीढ़ी हसाया...

इंटर्नशिप आते आते 
बिछड़ने लगे संगी साथी 
कुछ ने थामी किताबे 
कुछ ने कर ली शादी ..


फिर छूट गयी जीवन की आपाधापी में 
वो शनिवार की रातें 
वो MEDIFEST की मस्ती 
वो HOSTEL लाइफ की तमाम सौगाते 

वो फैशन शो ,स्पोर्ट्स मीट  AIIMS PULSE, 
दूर छूटे पड़े है 
तमाम जिम्मेवारी लादे हम 
सिर्फ नोट गिन रहे है 
नोट गिन रहे है


“सोचा था खरीद लूँगा तमाम खुशियाँ  पैसे कमा के 
पर मुद्दतो बाद यारो से मिला तो सारा भरम जाता रहा “


 मिले है तो ऐसे मिले की फिर छूट न पायें 
मै, तू को छोड़ २५ साल पहले के हम हो जायें 











विगत पांच वर्ष में ...

यदि पिछले पाँच वर्षों में आपने:-

१. सिटी बस/रोडवेज/रेल में सफर नही किया है...

२. सब्जी मंडी से सब्जी नही खरीदी है...

३. सड़क किनारे ठेले/गुमटी पे चाय नही पी है...

४. गर्मियों में गन्ने के रस का लुत्फ नही उठाया है...

५. गोलगप्पों के लिये सड़क किनारे खड़े हो कर हाथ नही फैलाया है

६. परचून की दुकान पे जा सौदा नही बंधवाया है...

७. भंडारे में पंगत में बैठ अपने सोये पैर को नही जगाया है...

८. साईकल रिक्शा पे बैठ बच्चो को नही घुमाया है...

९. रात्रि भोजन के बाद पान नही खाया है...

१०. पोस्ट आफिस जाकर किसी को पार्सल नही भिजवाया है....

तो आप अपनी जड़ों से कट रहे हो और वास्तविक भारत से दूर वर्चुअल इंडिया में रह रहे हो....

भंग का रंग ...

कई क्रियाओ , प्रतिक्रियाओ की यह उद्गम स्थली है , तमाम निषेधों से परे , रुचिकर्मो की भरमार है यहाँ , नित्य नए उत्पातों की प्रयोगशाला है ये तो , हॉस्टल की ज़िन्दगी है ही कुछ ऐसी ...बेखौफ , बेलगाम , बिंदास ...

राजमन कल की तैयारी पूरी हैं ना ... बाबा का काम है .... सबकुछ बढ़िया से होना चाहिए ..कोई कमी-बेसी नहीं रहनी चाहिए ... शिवरात्रि से एक दिन पूर्व हिसाब बताने आये कुक को यही तो मेरा स्पष्ट निर्देश था ....

साहब आप चिंता न करो ,सब अच्छे से होगा , आप कल खुद देख लीजियेगा , थोडा मेवा लाना रह गया है ,सुबह को-ऑपरेटिव से जुगाड़ होई जाई ... हिसाब के तेल के धब्बो से युक्त रजिस्टर को बंद करते हुए राजमन मुस्कुराते हुए बोला ...

आज महाशिवरात्रि है, मतलब छुट्टी का दिन .... हम जनवरी , फरवरी करने वाले क्या जाने, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी... ? हम तो सिर्फ इतना जानते है कि आज भोले बाबा के नाम पे मेस में जमकर भंग घुटेगी , ठंडाई छनेगी और खूब बटेगी .... ये तो प्रसाद है सब को मिलेगा , मेस मेम्बर होना न होना मायने नहीं रखता ...

सुबह देर से उठे , नाश्ता भी निबटा चुके है , आज थोडा सभ्य आचरण कर लिया , त्यौहार होने के नाते पहले नहा लिया फिर खाया पर कुछ परम भक्त लोग तडके उठ के , घंटो लाइन में लग ,परमठ जा बाबा को जल चढ़ा आये है, घनघोर श्रद्धा है जनाब जिसके आगे सरे कष्ट तुच्छ ...

कुछ सीटियाबाज टाइप लौंडे कॉलेज कैंपस के अन्दर बने शिव मंदिर के आस-पास अपनी-अपनी मोटर-साइकिलो पे मंडरा रहे है , सुबह-सुबह नाही धोयी अपने बैच की लड़कियों के खुले गीले बालो से टपकते मोतियों के उनके कंधो पे गिरने से उत्पन्न सौदर्य का आनंद लेने ..... जी भर देख लेने के बाद भी अनदेखा कर देने में कितने निपुण है ये नवयुवक ...

अजीब सी शांति और बेचैनी है , दिन की ग्यारह बज चुके है , ठंडाई अभी तक तैयार नहीं हुई है ,मेस के सिलबट्टे पे भांग की घुटाई चालू है , राजमन पूरी तन्मयता के साथ जुटा पड़ा है और हम जैसे अधीर प्रश्नकर्ताओ से कह रहा है “ जब अच्छी तरह घुटी , तभिये तो मजा आई साहिब ... हरे हाथो से सर के बाल हटाते हुए अजब चमक है उसके चेहरे पे आज ...

लो आंखिर कर तैयार हो ही गयी , भांग की ठंडाई से भरे स्टील के गिलास को थाम ही लिया हाथो में ,

ये प्रथम बार है इसलिए थोड़ी हिचकिचाहट भी है पर प्रयोगी उम्र सब पे भारी, एक आध घूट मारने के बाद अब जिज्ञासा शांत है , हलकी कालीमिर्च का तीखापन लिए ये पेय पदार्थ वाकई स्वादिष्ट बना है ...
हलक से नीचे पूरा गिलास उतर चुका है , कुछ होने / लगने की प्रतीक्षा है , पर कुछ हो नहीं रहा इसलिए हर हर महादेव के जयकारे के साथ दूसरा गिलास भी अन्दर ....

तभी ऊपर वाली विंग से शोर आता हुआ सुनायी दिया , कालू आग लगी है करके जोर जोर से चिल्ला रहा है , एक दो कमरों में बाल्टी भर के पानी भी उड़ेल चुका है , गुरुदेव सबको HARRISON खोल के पढ़ा रहे है , मैकू के हाथ दीवार से चिपक चुके है , सैंडी की हंसी रुकने का नाम ही ले रही , दो चार कंटाप खाने के बाद और तेज हो जाती है ...

गुरुदेव को ज्यादा हो गयी मगर खुराफाती लौंडो ने एंटी-भांग के नाम पे और भांग खिला दी और उनके शुभचिंतक मित्र उन्हें दौड़ा के इमरजेंसी ले गए है , गुरुदेव का वही क्रियाकलाप जारी है , माँ बहन को याद करने के साथ अब वो JRS को HARRISON पढ़ा रहे है , बडके यादव हवा में उड़ रहे है और छुटके उनको जमीन में लाने की असफल कोशिश...

चारो ओर अफरातफरी का माहौल है , कोई राकेट बन गया तो कोई पेड़ ,
एक महाशय दस बार नहा चुके है , रही सही कसर जूनियर्स ने पूरी कर दी, दस बालको की ट्रेन दौड़ रही है हॉस्टल में और वो भी पूरे साउंड इफ़ेक्ट के साथ

और इन सब के बीच ...अरे मै कहाँ हूँ ??? हां याद आया न रुकने वाली हंसी के साथ तीन बार को-ऑपरेटिव जा कर बंद मक्खन /समोसा खा चुका और फिर भी जोर जोर से हँसते हुए हर एक से बोल रहा हूँ .... यार बहुत भूख लगी है कुछ खिला दे ....

यक्ष प्रश्न ...

महाभारत में एक बहुचर्चित यक्ष-युधिष्ठिर संवाद है जिसमे यक्ष ,ज्येष्ठ कुंती पुत्र से तरह -तरह के प्रश्न पूछते है ...

यदि ये प्रश्न किसी मेडिको से पूछे जाते तो क्या क्या  जवाब होते  जरा गौर फरमाइए ...

यक्ष प्रश्न : कौन हूं मैं?

मेडिको  उत्तर : पढाई के बोझ का मारा मेडिको , जिसको न आगे का पता न पीछे का ... बस गधे/बैल की तरह मेहनत किये जा रहा है ....

यक्ष प्रश्न: जीवन का उद्देश्य क्या है?

मेडिको उत्तर: किसी भी तरह suppli के अपयश को बचाना ही जीवन का उद्देश्य है ...

यक्ष प्रश्न: जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है?

मेडिको  उत्तर: C2H5OH का सेवन करने वाला ...

यक्ष प्रश्न:- वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है?

मेडिको  उत्तर:- कमरे में उपलब्ध गद्दे की नीचे छुपा के रखा जाने वाला  साहित्य 

यक्ष प्रश्न: संसार में दुःख क्यों है?

मेडिको  उत्तर: संसार में घंटा दुःख है , जरा साढ़े चार में ४ प्रोफ और प्री PG की तैयारी करके देखो ,बता चल जायेगा दुःख किसे कहते है ...

यक्ष प्रश्न: क्या ईश्वर है? कौन है वह? क्या वह स्त्री है या पुरुष?

मेडिको  उत्तर:  हाँ है , हर विषय का है ,ईश्वर EXAMINER है , वो कुछ भी हो सकता है ...

यक्ष प्रश्न: भाग्य क्या है?

मेडिको  उत्तर: किसी पार्टी में OLD MONK की चाह रखने वाले को JOHNY WALKER BLACK LABEL मिल जाना ही भाग्य है ...

यक्ष प्रश्न: चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है?

मेडिको  उत्तर: ये असम्भव है , बजरंगी बन इसकी असफल कोशिश की जा सकती है ..

यक्ष प्रश्न: सच्चा प्रेम क्या है?

मेडिको  उत्तर: ओवर होने के कारण उल्टी कर रहे साथी की पीठ सहलाना ही सच्चा प्रेम है ..

यक्ष प्रश्न: नशा क्या है?

मेडिको  उत्तर: कभी आओ BH-2 में प्रोफ के रिजल्ट वाले दिन , 

यक्ष प्रश्न: मुक्ति क्या है?

मेडिको  – मुक्ति नाम से कोई लड़की अपने बैच में नहीं है ...

यक्ष प्रश्न: बुद्धिमान कौन है?
मेडिको  उत्तर: कम से कम मेहनत में पास हो जाने वाला ही बुद्धिमान है 

यक्ष प्रश्न: चोर कौन है?
मेडिको  उत्तर: अपने PG होने का रौब जमा , बैच की लड़की को ले उड़ने वाला ही चोर है 

यक्ष प्रश्न: नरक क्या है?

मेडिको  उत्तर: फाइनल प्रोफ में बिना छुट्टी के लगातार   मेडिसिन और सर्जरी का प्रक्टिकल एग्जाम पड़ जाना ही नरक है... 

यक्ष प्रश्न: जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?

मेडिको  उत्तर: बोरिंग लेक्चर में हम सभी 

यक्ष प्रश्न: दुर्भाग्य का कारण क्या है?

मेडिको  उत्तर: पहले ही प्रोफ में अफेयर ...

यक्ष प्रश्न: सौभाग्य का कारण क्या है?

मेडिको  उत्तर: अंतिम प्रोफ तक बचे रहना ...

यक्ष प्रश्न: सारे दुःखों का नाश कौन कर सकता है?

मेडिको  उत्तर: वही जो समुद्र मंथन से निकली थी , अरे अमृत नहीं असली अमृत C2H5OH

यक्ष प्रश्न: दिन-रात किस बात का विचार करना चाहिए?

मेडिको  उत्तर: अगली दारू पार्टी को और बेहतर कैसे बनाया जाये ...

यक्ष प्रश्न: संसार को कौन जीतता है?
मेडिको  उत्तर: जो मस्त मलंग रहे ...

यक्ष प्रश्न: भय से मुक्ति कैसे संभव है?

मेडिको  उत्तर:  अस्थाई रूप से , बूढ़े साधू (OLD MONK) की शरण में 

यक्ष प्रश्न: मुक्त कौन है?
मेडिको  उत्तर: महीने के अंत में भी जिस पे कोई उधार न हो 

यक्ष प्रश्न: अज्ञान क्या है?

मेडिको  उत्तर: ये जान लेने के पश्चात भी कि जिस कन्या पे तुम सेंटी हो वो 
किसी अन्य पर फ़िदा है , किसी चमत्कार की आशा करना ही अज्ञान है 

यक्ष प्रश्न: वह क्या है जो अस्तित्व में है और नहीं भी?

मेडिको  उत्तर: दोस्त की MOTERCYCLE 

यक्ष प्रश्न:  परम सत्य क्या है?
मेडिको  उत्तर: जिन्दगी भर लगी रहेगी ये ही परम सत्य है 

यक्ष प्रश्नः मनुष्य का साथ कौन देता है?

मेडिको  उत्तरः दारूबाजी / सुट्टेबजी से बने परम मित्र 

यक्ष प्रश्नः कौन सा शास्त्र है, जिसका अध्ययन करके मनुष्य बुद्धिमान बनता है?

मेडिको  उत्तरः चिकित्सा साहित्य (मेडिकल लिटरेचर ,ML)

यक्ष प्रश्नः भूमि से भारी चीज क्या है?

मेडिको  उत्तरः घर से लौटी प्रेमिका का बैग ...

यक्ष प्रश्नः आकाश से भी ऊंचा कौन है?
मेडिको  उत्तरः  बड़ी बड़ी फेकने वाला ...

यक्ष प्रश्नः हवा से भी तेज चलने वाला कौन है?

मेडिको  उत्तरः दोस्त की नयी motercycle का ट्रियल लेने वाला 

यक्ष प्रश्नः  घास से भी तुच्छ चीज क्या है?

मेडिको  उत्तरः मेस में सातों दिन veg खाना ...

यक्ष प्रश्न : बर्तनों में सबसे बड़ा कौन-सा है?

मेडिको  उत्तरः लाला  के कमरे में रखा पांच लीटर का प्रेशर कुकर , जिसमें शनिवार की रात को मुर्गा बनता है ....

यक्ष प्रश्न : सुख क्या है?

मेडिको  उत्तरः एग्जाम के पूर्व रात्रि important question पता चल जाना ही सुख है.... 

यक्ष प्रश्न : किसके छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बनता है ?

मेडिको  : Girls Hostel (GH) के चक्कर छूटने से लड़का boys hostel में फिर से सर्वप्रिय हो जाता है ...

यक्ष प्रश्न : किस चीज के खो जाने पर दुःख होता है ?

मेडिको  उत्तरः दो जोड़ी में से एक जोड़ी, बाहर विंग में सूख रहे नए कच्छे-बनियान का आंधी में उड़के खो जाने पर....

यक्ष प्रश्न : किस चीज को गंवाकर मनुष्य धनी बनता है?
मेडिको  उत्तरः मित्र के अच्छे नंबर्स आने से उत्पन्न हुई  इर्ष्या को ...

यक्ष प्रश्न : संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है?

मेडिको  उत्तरः ये जानते हुए भी यहाँ हर दम लगी रहती है  हर साल भर भर के मेडिको आते है... 

यक्ष प्रश्न : कौन व्यक्ति आनंदित या सुखी है?

मेडिको  उत्तरः जो अपनी साथियों को अपना प्रतिद्वंदी न माने ...



यक्ष प्रश्न : रोचक वार्ता क्या है?
मेडिको  उत्तरः रात की तीन बजे तक होने वाली BC...