Wednesday 30 July 2014

प्राय: ही हम लोग ,अपने माँ -बाप या अन्य बुजुर्गो के लिए कुछ सामान  लेते समय उनकी उम्र को एक पैमाना मानकर  कटौतियाँ कर देते है.… अरे ये ही  ठीक लग रहा है ,अब इतना HI-FI  लेकर वो इस उम्र में क्या करेंगे ? और वे लोग हर बार.… अरे इसकी क्या जरुरत थी..... काम तो चल ही रहा था, तुमने बेकार में ही पैसे खर्च किये कह कर उसे सहर्ष स्वीकार कर लेते है.…
याद रहे आप आज जिस भी मुकाम पे मौजूद है यह उनकी उन कटौतियों के फलस्वरूप है जो उन्होंने जीवनपर्यन्त अपने में की है और आज भी कर रहे है.। 

माँ-बाप हमेशा साथ नहीं रहने वाले , इसलिए सर्वोत्तम पे पहला हक़ उनका है ,अगली बार बुजुर्गो के लिए कुछ खरीदते समय इस बात का ध्यान रखे 

Friday 25 July 2014

अपने दिल में एक दूसरे की 
बातो के लिए काम जगह है 
रिश्तों में बढ़ती तल्ख़ी की 
शायद ये ही वजह है  

Saturday 19 July 2014

उड़ा दी है मैकदे की छत
हमने इस बरसात में
तन और मन दोनों से ही
तरबतर  होने का  इंतेज़ाम है

Friday 18 July 2014

आजकल माँ-बाप बच्चो की हर  मांग उनकी जिद्द के आगे बिना कुछ सोचे-समझे मान  लेते हैं  स्नेह प्रदर्शन की एक मांपदण्ड  पैसा खर्च करना भी हो गया है .। एक बानगी देखिये

नए मिले स्मार्ट फ़ोन में सातवी में पढ़ने वाले बेटे ने contacts feed करते समय बाप के फोटो की जगह अपने पालतू कुत्ते का फोटो लगा दिया। ये पूछने पे के बेटा तुमने ऐसा क्यों किया तो वो बड़ी मासूमियत से बोला कुत्ता भी मुझे अच्छा लगता और पापा भी , पापा का कोई अच्छा फोटो नहीं था इसलिए कुत्ते का लगा दिया

और बनो धृतराष्ट्र। … घर से दुर्योधन ही निकालेंगे 
जब हिंदी माध्यम के सरकारी विद्यालयों के गुरूजी अपने बच्चों को कान्वेंट स्कूल में पढ़ना बेहतर समझने लगे… समाज में अंग्रेजी बोलना  तरक्की और पढ़े- लिखे होने  की निशानी हो तो हिंदी की यह दुर्दशा तो होनी ही थी
.... पूरे चरणबद्ध तारीके  से हिंदी की  पिटाई हुई है … 

हमारा वक्त  तो निकल गया पिताजी सरकारी स्कूल में थे  और हम  भी उसी में पढ़े। आज की तारीख़ में  ऐसा संभव नहीं।  अपने आस-पास किसी पाँचवी में पढ़ने वाले बालक /बालिका से जरा हिंदी की कुछ पंक्तियाँ   पढ़ा के तो देखिये  (लिखना तो दूर की कौड़ी है ) … भविष्य की भयावह तस्वीर आपके सामने होगी 

निज भाषा उन्नति अहे..... अब कैसे कहे ??? बेचारी भारतेंदु की आत्मा भी आत्महत्या  करने की सोच रही होगी 
मन इस बात से गदगद है कि १५ अगस्त को लालकिले  प्राचीर से उत्साह वर्धक और उम्मीद जगाने वाला भाषण सुनने को मिलेगा ....

दशक बीत गया  स्वतंत्रता दिवस पे  जागृत करने वाला कुछ सुने हुए, 
मुझे सख्त चिड है दारू Party में न पीने  वालो से जो चखने पर अपनी गिद्ध दृष्टि  डाले रहते है  और सब कुछ चट करने के बाद  बोलते है.… बस इतना ही लाये थे




दिल की सुनी और सरताज  हो गए
दिमाग ने तो बस गुलाम बनाये रखा 
ये जो मसले है तेरे मेरे दरमियान
अपने अपने  गुरुर के सिवा  कुछ और नहीं 

Friday 4 July 2014

उनसे इमदाद की ख्वाईश  न करो 
इश्क़ में रियायत की गुंजाईश नहीं 

Thursday 3 July 2014

रफ़्तार ही तुम पे काबिज रही
फ़ासले जरूर जल्द तय हुये

मंजिल मिली न मिली ये तुम जानो
पर संगी-साथी सब छूट गए