Sunday, 5 January 2014

बहुत हो चुका काम
चलो घर चले.…

सुबह से हो गई है शाम
चलो घर चले। …

जिस्म को  दे आराम
चलो घर चले.…

सुकून मिले , जान में आये जान
चलो घर चले। …

आज नहीं क्या इतेज़ाम ???
चलो घर  चले ???

पर बहुत हो चुके बदनाम
चलो घर ही  चले

मैकदे में साक़ी  हम से परेशान
चलो घर चले

पर घर में मयस्सर नहीं जाम
तो क्यों घर चले ??

न पूरे होंगे अरमां
फिर क्यों घर चले …

छोड़ो अब नफे -नुक्सान
जिधर कहो उधर चले

डूबने में जहाँ मिले इत्मीनान
चलो वहीँ चले.…

महफ़िले अब हम से है जवान
चलो मैकदे चले

रिन्दों को माफिक नहीं और कोई काम
चलो  मैकदे  ही चले …












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