Friday, 28 March 2014

उठो लाल अब आँखे खोलो / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी


उठो लाल अब आँखे खोलो 
पानी लाई हूँ मुँह धो लो

बीती रात कमल दल फूले 
उनके ऊपर भंवरे डोले 

चिड़िया चहक उठी पेड़ पर 
बहने लगी हवा अति सुंदर 

नभ में न्यारी लाली छाई 
धरती ने प्यारी छवि पाई 

भोर हुआ सूरज उग आया 
जल में पड़ी सुनहरी छाया 

ऐसा सुंदर समय न खोओ 
मेरे प्यारे अब मत सोओ

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