Monday, 16 February 2015

COFFEE IN MALL

मॉल में घुसते ही कॉफ़ी बनने  की मनमोहक महक नथुनों से टकराई  और बरबस ही  मुझे उस खुले में सजी दुकान  की ओर खीचती ले  गयी... जेब में मौजूद मूलभूत जरुरतो से अधिक पैसो ने इसके लिए अपनी स्वीकार्यता भी झट से प्रदान कर दी , हालांकि मै इस काले कसैले से पेय पदार्थ को पीने का कभी भी शौकीन नहीं रहा हूँ और सदैव ही अपनी अदरक वाली चाय को इससे ज्यादा तरजीह देता हूँ पर  ज्ञानेन्द्रियो के  तात्कालिक आकर्षण ने सोच और शौक पे पर्दा डाल  ही दिया ....

मेनू देख एक जद्दोजेहद प्रारंभ हुई , एक अदनी सी  कॉफ़ी के इतने दाम ?? इससे कम  में तो अपने हाथ से घुटी हुई, अच्छे ताजे दूध की बनी  कॉफ़ी, एक  दर्जन लोगों को घर के सुकून भरे वातावरण में आराम से पिला सकता हूँ ... पर जेबों में भरे पैसे की गर्मी ने इसको तत्काल ख़ारिज भी कर दिया  .. अमां कंजूसी छोड़ो , कमा किस लिए रहे हो ??? एक –आध दफे ऐसी  फिजूलखर्ची जायज है ...

खैर यदा-कदा मैदे में तेजाबियत की तकलीफ से जूझने वाले इस शख्स ने वहां मौजूद वेटर को ज्यादा स्ट्रोंग न होने की हिदायत के साथ एक काफी का आर्डर दे ही डाला , काफी आने में समय था और नजरे आस पास के माहौल का जायजा लेने लगी , बड़ी शालीनता से बैठी, हाव-भाव और परिधानों से  अभिजात्य वर्ग की लगनी वाली, उम्र के तीसरे दसक की एक महिला अंग्रेजी का  उपन्यास पढने में मशगूल थी , कॉफ़ी पी चुकी थी या पीने वाली थी पता नहीं पर उसके चेहरे में तल्लीनता  का भाव देखने लायक था , ऐसा लगा वो इस वातावरण की काफी अभ्यस्त सी है और उसके लिए यहाँ बैठना  रोज की ही आदतों में शुमार है, व्यक्तिगत पठन इतनी सहजता की साथ सार्वजानिक भी हो सकता है यह बात मेरे मन में थोड़ी बहुत शंका उत्पन्न कर रही थी ....

बगल में बैठा अभी- अभी नव यौवन में प्रवेश पाया के एक जोड़ा अपनी चुहलबाजी  में व्यस्त था , कॉफ़ी के साथ खाने पीने की चीज़े उनकी सामने की मेज पे शोभा पा रही थी  , मोबाइल पे एक दूसरे को कुछ दिखाते हुए हंसी मजाक हो रही  थी, तभी उन से  उन्ही के  हमउम्र दो  साथी और जुड़ गए  , कुछ खाने पीने के आग्रह हुए और उनके न नुकुर के साथ ही सभी तुरंत उठ खड़े होकर बाहर चल दिए और पीछे मेज पे रह गया बरबादी का एक मंजर , आधे अधूरे खाए हुए चाकलेट डोनट  चकाचौंध से गुलजार इस मॉल के बाहर अभिशप्त मांगने वालों को मुंह चिड़ा रहे थे, पैटीज के बाहर निकले और बिखरे आलू और बेकद्री से तोड़े गए सैंडविच के टुकड़े उनकी भूख का उपहास उड़ा रहे थे .... सम्पन्नता अपनी धुन में मस्त, कितनी बेखबर थी  , किसी के अभावो से उसे सरोकार रहा भी कब है ?

तभी बगल की कुर्सी पे विराजमान मोटे चेकों का घुटन्ना और लाल टी-शर्ट पहने एक चश्मीश युवक पे नज़र पडी , बाल बिखरे हुए और पैरो पे चप्पल... ऐसा लगा सुबह सुबह बिस्तर से उठ के सीधे यहाँ चले आ रहे हो , कानों में मोबाइल के ईअरफोन खोसे , एप्पल के  चमकदार सफ़ेद लैपटॉप पे उँगलियाँ फिराते हुए वो ब्लैक कॉफ़ी का आनंद ले रहे थे ... परिधानों और उपकरणों से अंजानो को आमंत्रण सा  देते  वैभव की खुल्लम-खुल्ला नुमाईश  ... और मुझे था उसे  देख कितनी जलन का अहसास .... उसकी उम्र में हम अपने भविष्य के लिए कितने संघर्षरत थे ...

खैर मन में उठते विचारों के इन भंवरो  और अनजान लोगों के अपनी नजरों से होते इस आंकलन के बीच हमारी कॉफ़ी  आ ही गयी ... सफ़ेद चीनी-मिट्टी के प्लेट  के ऊपर विराजमान कप में क्रीम के द्वारा बनी फूल की आकृति ने मन मोह ही लिया , चम्मच से हिलाने  चीनी मिलाने और चम्मच से हिलाने पे   ये खंडित हो जाएगी इसका अफ़सोस भी हुआ ....

गरम गरम कॉफ़ी मै अपने  हलक से उतार रहा था  ,  कॉफ़ी अच्छी बनी थी  पर मन पता नहीं क्यों यारों के साथ कॉलेज गेट पे बेफिक्री के साथ पी गयी सुन्दर की चाय के स्वाद को इसमें तलाश रहा था ?

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