Tuesday 27 February 2018

कुमाँऊनी होली...

कुमाँऊ में होली रंग के साथ-साथ गीत संगीत का भी त्योहार है , अगर अपने को सही करते मै यह कहूं कि गीत संगीत पहले है और रंग बाद में तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ....

होली की यह मस्ती पहाड़ो में बसंत पंचमी से आरंभ हो जाती है और रंग वाली होली के बीत जाने के बाद भी बदस्तूर जारी रहती है ...

कुमाँऊनी होली मुख्यतः तीन प्रकार की होती है ...
१. खड़ी होली 
२. बैठकी होली 
३. महिला होली ...

खड़ी होली- एक प्रकार का सामूहिक गायन और नृत्य है , रंग वाली होली के दिन , ढोल , मंजीरे और चिमटे से उत्पन्न संगीत पे पुरुषों लयबद्ध थिरकते पाँव एक अजब समां प्रस्तुत करतें हैं ...कुर्ता –पैजामा और सर पे गाँधी टोपी पहने हुए हुलियार उड़ते अबीर गुलाल के मध्य कितने दिव्य प्रतीत होते है ...

यह सामूहिक नृत्य एक दायरे में होता है और बीच में होता एक अनुभवी नियंत्रक जो अपने इशारों से इसे सुचारू रूप से सम्पन्दित करता है ....

बैठकी होली:- ये शास्त्रीय संगीत पे आधारित गायन हैं जो रात के इत्मीनान में गाया जाता है , आम तौर पे घर की बैठक के सारे फर्नीचर को बाहर निकाल कर फर्श पे जाजिम (फ़र्श आदि पर बिछाने का छपा हुआ सूत का मोटा और रंगीन बिछावन; मोटीदरी) बिछा दी जाती है , गद्दे और चादर बिछ जाने के बाद तकिये और मसनद श्रोताओ के आराम हेतु रख दिए जाते है ...

हारमोनियम और तबले के संगीत पे यह गायन अनुभवी लोगों के द्वारा ही गाया जाता है और पहाड़ी रास्तो की तरह ही इसमें काफी उतार-चढाव होते है ....

इस संगीतमय प्रस्तुति के दौरान मेजबान की रसोई काफी व्यस्त रहती है , चाय –पकौड़े , गुजिया ,सेव , चिप्स ,पापड़ की अनवरत पूर्ति वहां से होती रहती है ...

लौंग , इलायची ,मिसरी , कसी हुई गरी, एक खांचे वाले कटोरदान में हर आने वाले के स्वागत में प्रस्तुत की जाती है ...

घर की स्त्रियाँ इस मेहमाननवाजी के मध्य अपनी को अछूता नहीं रख पाती और परदे की पीछे से झांक-झांक वो भी इन स्वरलहरियों पे सवार हो ही जाती हैं ...

महिला होली :- फाल्गुन के इस मस्ती में महिला अपने को भला क्यों पीछे रहने दें ? जहाँ खड़ी होली, बैठकी होली में पुरुषों का अधिपत्य है , महिलाओं ने इसे अपने लिए ईजाद कर लिया ... ढोलक और मंजीरे की संगत में होने वाले इस गायन पे स्त्रियों का एकाधिकार है ...
माथे और गाल पे अबीर गुलाल लगाये , गायन में मशगूल माँ और पास पडौस की आंटियो की याद आज भी जेहन में तरोताजा है ...

तो इस होली आप भी कुमाँऊनी होली की तीन स्वरूपों का अवश्य आनंद लें ....

जल कैसे भरूं जमुना गहरी -२

ठाड‌ी भरूं राजा राम जी देखें
बैठी भरूं भीजे चुनरी

जल कैसे भरूं जमुना गहरी -२

धीरे चलूं घर सास बुरी है
धमकि चलूं छलके गगरी

जल कैसे भरूं जमुना गहरी -२
गोदी में बालक सिर पर गागर
परवत से उतरी गोरी
जल कैसे भरूं जमुना गहरी -२

------xxx-------------------------------------------------------------------
जोगी आयो शहर में व्योपारी -२

अहा, इस व्योपारी को भूख बहुत है,
पुरिया पकै दे नथ-वाली,
जोगी आयो शहर में व्योपारी।

अहा, इस व्योपारी को प्यास बहुत है,
पनिया-पिला दे नथ वाली,
जोगी आयो शहर में व्योपारी।

अहा, इस व्योपारी को नींद बहुत है,
पलंग बिछाये नथ वाली
जोगी आयो शहर में व्योपारी -२

-----------------xxxx-------------------------------------------------------------

रंग में होली कैसे खेलूं री मैं सांवरियाँ के संग….
अबीर उडता गुलाल उडता, उडते सातों रंग
भर पिचकारी सनमुख मारी, अंखियाँ हो गयी बंद…
तबला बाजे, सारंगी बाजे, और बाजे मृदंग
कान्हा जी की बांसुरी बाजे, राधा जी के संग…
रंग में होली कैसे खेलूं री मैं सांवरियाँ के संग….

---------------------------xxx-----------------------------------------------------

झनकारो झनकारो झनकारो
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो – २

तुम हो बृज की सुन्दर गोरी, मैं मथुरा को मतवारो
चुंदरि चादर सभी रंगे हैं, फागुन ऐसे रखवारो।

गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो – २–

सब सखिया मिल खेल रहे हैं, 
दिलवर को दिल है न्यारो
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो – २

अब के फागुन अर्ज करत हूँ, 
दिल कर दे मतवारो
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो – २

भृज मण्डल सब धूम मची है,
खेलत सखिया सब मारो
लपटी झपटी वो बैंया मरोरे, 
मारे मोहन पिचकारी
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो – २

घूंघट खोल गुलाल मलत है, 
बंज करे वो बंजारो
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो -२
------xxx----------------------------------------------------------------------------

बलमा घर आयो फागुन में -२
जबसे पिया परदेश सिधारे,
आम लगावे बागन में, बलमा घर…
चैत मास में वन फल पाके,
आम जी पाके सावन में, बलमा घर…
गऊ को गोबर आंगन लिपायो,
आये पिया में हर्ष भई,
मंगल काज करावन में, बलमा घर…
प्रिय बिन बसन रहे सब मैले,
चोली चादर भिजावन में, बलमा घर…
भोजन पान बानये मन से,
लड्डू पेड़ा लावन में, बलमा घर…
सुन्दर तेल फुलेल लगायो,
स्योनिषश्रृंगार करावन में, बलमा घर…
बसन आभूषण साज सजाये,
लागि रही पहिरावन में, बलमा घर…

-------–------------------------–-------

शिव के मन माहि बसे काशी -२
आधी काशी में बामन बनिया,
आधी काशी में सन्यासी, शिव के मन
काही करन को बामन बनिया,
काही करन को सन्यासी, शिव के मन…
पूजा करन को बामन बनिया,
सेवा करन को सन्यासी, शिव के मन…
काही को पूजे बामन बनिया,
काही को पूजे सन्यासी, शिव के मन…
देवी को पूजे बामन बनिया,
शिव को पूजे सन्यासी, शिव के मन…
क्या इच्छा पूजे बामन बनिया,
क्या इच्छा पूजे सन्यासी, शिव के मन…
नव सिद्धि पूजे बामन बनिया,
अष्ट सिद्धि पूजे सन्यासी, शिव के मन…

Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx

हाँ हाँ जी हाँ, सीता वन में अकेली कैसे रही है
कैसे रही दिन रात, सीता वन में…
हाँ हाँ जी हाँ, सीता रंग महल को छोड़ चली है
वन में कुटिया बनाई, सीता वन में…
हाँ हाँ जी हाँ, सीता षटरस भोजन छोड‌ चली है
वन में कन्दमूल फल खाई, सीता वन में…
हाँ हाँ जी हाँ, सीता तेल फुलेल को छोडि चली है
वन में धूल रमाई, सीता वन में…
हाँ हाँ जी हाँ, सीता कंदकारो छोड़ चली है
कंटक चरण चलाई, सीता वन में
कैसे रही दिन रात, सीता वन में।

No comments:

Post a Comment