किस्सा -ए-पुताई
BH-3 में रंग-रोगन का काम चालू था , आज पुताई सबसे ऊपर की मंजिल में बॉस के कमरे में होनी थी , पुताईवाले के बार-बार आग्रह ,अनुनय और विनती से द्रवित हो बॉस ने आंखिरकार कमरा खाली कर ही दिया , खुद नहीं किया , इतनी जहमत कौन मोल ले? .... पुताईवाले से ही कराया ...
सरकारी खर्चे पे काम कैसा होता है , ये हम सभी जानते ही है .....
पुताई वाले ने तीन चार , आड़े-तिरछे ब्रुश मारे और हो गया काम से फ़ारिग...बॉस में जब अपने कमरे को देखा तो बोले “ बेटा कल एक और कोट मर देना ... मजा नहीं आया ...
डॉक्टर साहब के आदेश की अवेहलना नहीं की जा सकती थी और इन वाले बॉस की तो कदापि भी नहीं ... अगले दिन कमरे में दूसरी दफे फिर से पुताई का काम चालू था ... इस बार थोड़ी अतिरिक्त संजीदिगी के साथ ..
फिर से शाम को कमरे का मुआयना हुआ ... मसाला लगे दांतों को माचिस की तिल्ली से खुजलाते हुए बॉस बोल उठे .... अम्मा यार ... मजा नहीं आया ... कमरे में दिल को खुश करने वाली चमक नहीं ... ऐसा करना बेटा कल फिर से एक कोट मार देना ... छत का ध्यान राखियों ... एक दम दूध जैसी सफ़ेद लगनी चाहिए ....
पेंटर बाबू के थोड़ी असहजता महसूस हुई , अपने मापदंड के अनुसार वो अपने काम को बखूबी निभा चुके थे...वो भी एक ही काम को दो बार ... खैर पानी में रहकर मगर से बैर तो लिया नही जा सकता था ... सो भरे मन से ही सही अगले दिन भी, तीसरी बार पुताई वाले की कूंची से उत्पन्न छीटों से बॉस के कक्ष का फर्श गुलज़ार था ...
शाम को थके मांदे पुताई वाले ने थोडा अधीर होते हुए पूछा” साहब अब तो हो गया ... स्वर थोडा तल्ख़ और कर्कश था ....
पुताई वाले की उदंडता को भांपते हुए बॉस बोले ... ससुर तुम कोई काम ठीक से नहीं कर सकते ... तीन –तीन बार हाथ चला चुके हो और नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात ... कल फिर आ जाना , ये आंखिर बार है अगर इस बार भी कमरा ठीक से नहीं पुता तो तेरी खैर नहीं ...
पुताई वाले का सब्र का बाँध अब टूट चूका था , प्रतिकारी लहजे में वो बोला , साहिब साफ़ –साफ़ कही रही है के अब हम ना आई...
बस मुंह से शब्द छूटने भर की देरी थी , एक लपलपाता हुआ, झन्नाटेदार कंटाप उसके गालो पे रसीद हो चुका था .... थप्पड़ की गूँज की मध्य ही उसका सारा पुताई वाला सामान ( रंग भरी बाल्टी डब्बे , ब्रुश , रेकमाल आदि ) दूसरी मंजिल से नीचे ज़मीन पर शोभायमान था ...
आती हुई आफत पुताईवाले ने भांप ली थी , सरपट दौड़ता हुआ सीधे ठेकेदार के पास पंहुचा और हाँफते –हाँफते सारा किस्सा सुना डाला ...
ठेकदार कॉलेज में पुराने समय से काम ले रहा था , इन परिस्थितियों की उसे आदत सी थी ...
मुस्कुराते हुए वह बोला ... बेटा चुप्पेचाप चौथी बार भी कमरा पोत दे और देख ज्यादा मुंहजोरी न करना वरना अगली बार सामान की जगह तू ही नीचे पड़ा होगा ...
अगली शाम चार दफे पुत जाने के बाद बॉस का कमरा जगमगा रहा था और पुताई वाला भी तीन –तीन पैग एक सांस में हलक से नीचे उतारने के बाद बॉस के कदमों में प्रसन्नचित लोटा हुआ था ...
BH-3 में रंग-रोगन का काम चालू था , आज पुताई सबसे ऊपर की मंजिल में बॉस के कमरे में होनी थी , पुताईवाले के बार-बार आग्रह ,अनुनय और विनती से द्रवित हो बॉस ने आंखिरकार कमरा खाली कर ही दिया , खुद नहीं किया , इतनी जहमत कौन मोल ले? .... पुताईवाले से ही कराया ...
सरकारी खर्चे पे काम कैसा होता है , ये हम सभी जानते ही है .....
पुताई वाले ने तीन चार , आड़े-तिरछे ब्रुश मारे और हो गया काम से फ़ारिग...बॉस में जब अपने कमरे को देखा तो बोले “ बेटा कल एक और कोट मर देना ... मजा नहीं आया ...
डॉक्टर साहब के आदेश की अवेहलना नहीं की जा सकती थी और इन वाले बॉस की तो कदापि भी नहीं ... अगले दिन कमरे में दूसरी दफे फिर से पुताई का काम चालू था ... इस बार थोड़ी अतिरिक्त संजीदिगी के साथ ..
फिर से शाम को कमरे का मुआयना हुआ ... मसाला लगे दांतों को माचिस की तिल्ली से खुजलाते हुए बॉस बोल उठे .... अम्मा यार ... मजा नहीं आया ... कमरे में दिल को खुश करने वाली चमक नहीं ... ऐसा करना बेटा कल फिर से एक कोट मार देना ... छत का ध्यान राखियों ... एक दम दूध जैसी सफ़ेद लगनी चाहिए ....
पेंटर बाबू के थोड़ी असहजता महसूस हुई , अपने मापदंड के अनुसार वो अपने काम को बखूबी निभा चुके थे...वो भी एक ही काम को दो बार ... खैर पानी में रहकर मगर से बैर तो लिया नही जा सकता था ... सो भरे मन से ही सही अगले दिन भी, तीसरी बार पुताई वाले की कूंची से उत्पन्न छीटों से बॉस के कक्ष का फर्श गुलज़ार था ...
शाम को थके मांदे पुताई वाले ने थोडा अधीर होते हुए पूछा” साहब अब तो हो गया ... स्वर थोडा तल्ख़ और कर्कश था ....
पुताई वाले की उदंडता को भांपते हुए बॉस बोले ... ससुर तुम कोई काम ठीक से नहीं कर सकते ... तीन –तीन बार हाथ चला चुके हो और नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात ... कल फिर आ जाना , ये आंखिर बार है अगर इस बार भी कमरा ठीक से नहीं पुता तो तेरी खैर नहीं ...
पुताई वाले का सब्र का बाँध अब टूट चूका था , प्रतिकारी लहजे में वो बोला , साहिब साफ़ –साफ़ कही रही है के अब हम ना आई...
बस मुंह से शब्द छूटने भर की देरी थी , एक लपलपाता हुआ, झन्नाटेदार कंटाप उसके गालो पे रसीद हो चुका था .... थप्पड़ की गूँज की मध्य ही उसका सारा पुताई वाला सामान ( रंग भरी बाल्टी डब्बे , ब्रुश , रेकमाल आदि ) दूसरी मंजिल से नीचे ज़मीन पर शोभायमान था ...
आती हुई आफत पुताईवाले ने भांप ली थी , सरपट दौड़ता हुआ सीधे ठेकेदार के पास पंहुचा और हाँफते –हाँफते सारा किस्सा सुना डाला ...
ठेकदार कॉलेज में पुराने समय से काम ले रहा था , इन परिस्थितियों की उसे आदत सी थी ...
मुस्कुराते हुए वह बोला ... बेटा चुप्पेचाप चौथी बार भी कमरा पोत दे और देख ज्यादा मुंहजोरी न करना वरना अगली बार सामान की जगह तू ही नीचे पड़ा होगा ...
अगली शाम चार दफे पुत जाने के बाद बॉस का कमरा जगमगा रहा था और पुताई वाला भी तीन –तीन पैग एक सांस में हलक से नीचे उतारने के बाद बॉस के कदमों में प्रसन्नचित लोटा हुआ था ...
No comments:
Post a Comment