मुनासिब नहीं के
रोज तेरे दर पे आऊँ
तेरी इल्तिजा करूँ
और तुझे मनाऊँ …
इतना भी कमज़ोर नहीं
के तुझे भूल न पाऊँ
तेरी चाहत के फेर में
अपनी हस्ती ही मिटाऊँ
तेरा साथ न मिले तो न ही सही
तेरी खुदगर्ज आशिकी से बेहतर
अपना ये बेशकीमती वक्त
किसी नेक काम में लगाऊँ …
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