Friday 20 April 2018

बॉस ...

शाम के वक्त वो चाय पीने निकलने वाला ही था की दरवाजे पे दस्तक हो गयी ...

तीसरी मंजिल का सब से कोने वाला कमरा था यह , आती जाती भीड़ से कम परेशान होने वाला... उसने सोचा बगल वाला मित्र ही होगा इसलिए बेतकल्लुफी में वो जोर से चिलाया ...अमां आ रहा हूँ काहे दरवाजा पीटे पड़े हो ... पर बाहर से कोई जवाब न था ...

दरवाजा खोलते ही उसने एक अंजान चेहेरे को सामने खड़ा पाया पर भावभंगिमा और पहनावे को निहार ये स्वतः आभास हो गया के हो न हो ये कोई सीनियर ही है ... और फिर बरबस मुंह से निकल ही पड़ा ... नमस्कार बॉस ..

अभिवादन के तुरंत ही उत्तर मिला ... नमस्ते डिअर ... मस्त रहो ... इन शब्दों ने उसके सीनियर होने की बात की तस्दीक भी कर दी ...

यार क्या मै दो मिनट तुम्हारे कमरे में आ सकता हूँ ? , कभी किसी वक्त मै भी इसमें रहा करता था ... आग्रहपूर्ण आदेश जैसा था कुछ

जरुर बॉस आइये बॉस ... शब्दों में बड़ी ही आत्मीय स्वीकृति थी ...

बॉस अन्दर जा पुरानी यादों में खो से गए , बड़े ही शांत भाव से कमरे को निहारने लगे जैसे कि नेत्रों के माध्यम से कुछ संजो के ले जाना चाह रहे हो वहां से ... हाँ उन्ही कमरा था यह , वहीँ निवाड वाली ढीली चारपाई , वहीँ लटकते तारों और टूटे स्विच वाला बिजली का बोर्ड , कोने में पड़ा ...ऊपर से जला बीच में छेद वाला लकड़ी का स्टूल , वो ही हत्थे वाली बुनी हुई कुर्सी , वही हिलती हुई मेज और उसको साधने हेतु पाए के नीचे लगा मुड़े हुए कागज का टुकड़ा ...

इस दौरान कमरा बिलकुल शांत था , वहां मौजूद दोनों लोगो के दिमाग में अनेक बातें थी , एक पुराने समय को वापस जी रहा था और दूसरा अबोध उसे इस कृत्य पे बड़े बड़े प्रश्नवाचक चिन्ह बना रहा था ...

अचानक शांति को भंग करते हुए बॉस बोल ही उठे , देख मेरा नाम अब भी यहाँ पे गुदा हुआ है ... अलमारी के लकड़ी के दरवाजे की अन्दर की तरफ वो हाथ फेरते हुए बोले ....

लड़का कौतुहल में समीप आते हुए कुछ देखने की चेष्टा करने लगा , पेंट की पतली तहों के नीचे उसे भी कुछ अस्पष्ट अक्षर नज़र आ ही गए ...

बातों के सिलसिले को बॉस आगे बढ़ाते हुए बोले... बेटा मै तुमसे तकरीबन आठ साल सीनियर हूँ और फिलहाल JR III MD मेडिसिन हूँ ____(दूसरे) मेडिकल कॉलेज में , शहर किसी काम से आया था , सोचा कॉलेज और हॉस्टल देख आऊं ...कॉलेज छूटने के बाद पहली दफा आ रहा हूँ ...

जी बॉस ... बालक शांत भाव से बॉस की तमाम बातों को सुन रहा था ...

अरे शाम की चाय का वक्त हो गया चलो चाय पी के आते है बॉस कमरे के निरिक्षण को समाप्त करते हुए बोले ...

हॉस्टल से चाय की दुकान के सफर में बातों सिलसिला जारी था , बॉस के अपनत्व ने जूनियर –सीनियर के उस विशाल भेद को ख़त्म सा कर दिया ... तमाम नयी पुरानी बातों की चासनी के मध्य दो चाय ,बंद मक्खन ,समोसे कब खत्म हो गये पता ही नहीं चला ... परंपरा स्वरुप बॉस ने ही वहां मौजूद सभी लोगो के इस अल्पाहार का बिल भरा ...

थोड़े ही समय में सम्बन्ध घनिष्ठ हो चुके थे , बॉस , बालक और उसकी सारी मित्रमंडली कॉलेज और हॉस्टल की नयी पुरानी बातों में एक ही रंग में रंगे नजर आने लगे...

बॉस अब सलीको वाला होटल का कमरा छोड़ , हॉस्टल के पुराने अपने रूम में अड्डा जमाये हुए थे और अगले तीन चार रातें जमके महफिले सजी, पुराने और नए का यह संगम, मस्ती के न जाने कितने पिटारे खोल रहा था ...

बॉस भी जूनियर्स के प्यार के मध्य खूब जिए मानो फिलहाल जिस संजीवनी की उन्हें तलाश थी वो मिल गयी हो ...

आंखिरकार बॉस के जाने का दिन भी आ ही गया , तमाम फिर से मिलने के वादों-इरादों और मीठी यादों के साथ बॉस बच्चो से रुक्सत हो लिए ...
बच्चों के दिल में बॉस अपनी जिन्दादिली से एक अमिट छांप छोड़ गये ,

फिर यूँही कई महीने गुजर गए , बालक ने बॉस की सुध लेने की सोची ... फ़ोन नंबर न लगा , संपर्क करने का और कोई दूसरा जरिया न था इसलिए बॉस जहाँ से PG कर रहे थे वहां से संपर्क साधा गया ... जानकारी बड़ी ही दुखदायी निकली ...

बॉस को GBM (Glioblastoma Multiforme) diagnose हुआ था ,डॉक्टर होने के नाते इसके अंजाम से वो अच्छी तरह वाकिफ थे इसलिए जो भी समय उनके पास था उसमें वो अपने पुराने दिन जीना चाहते थे , पुराने लोगो से मिलाना चाहते थे , वो बिना किसी को बताये सब से मिले पुरानी जगह घूमे... उनको स्नेह चाहिए था ,सहानुभूति नहीं .... माँ –बाप और भाई बहनों को भी रोता बिलखता नहीं देखना चाहते थे इसलिए उनसे ठीक रहते हुए काफी समय पहले ही अंतिम विदा ले ली थी .. बात में पता चला बॉस किसी गुमनाम आश्रम में पंचतत्वो में विलीन हुए ...

एक हम है जो छोटी छोटी बातों पे एक दूसरे पे सवार हुए रहते हैं ,लड़े भिड़े रहते हैं , जीवन अनिश्चित है , इसे परस्पर के छोटे वाद विवादों में व्यर्थ न कीजिये , पुराने लोगो से मिलते रहिये ....

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