Friday 20 April 2018

माँ आयी...

माँ का काफी दिनों के बाद बेटी के घर जाना हुआ, घर पहुँचते ही नाती नानी से स्नेहपूर्वक चिपट पड़ा...अबोध को नानी से लाड के अलावा बड़ो के द्वारा निरंतर पोषित उपहार मिलने का लोभ भी था जो उसे ऐसा करने को प्रेरित कर रहा था...

और झट से माँ का बैग रूपी पिटारा खुल ही गया, नाती की बहुप्रतीक्षित रिमोर्ट से चलने वाली कार, दामाद की मनपसंद मिठाई, बेटी के उसके मायके के दर्जी से सिलाए दो सूट, इष्टदेव का प्रसाद, सूखे धनिए पोदीने का नमक, अपने हाथ की बनी मंगोड़ी, सुनार से ठीक कराई अंगूठी, जेम की शीशी में घर का बना गाय का घी, पिछली बार का छूटा तौलिया और मौजे ....आदि आदि

छोटी छोटी पुटरियो और कुटरियों में माँ अपनी लाड़ली के लिए उसकी पसंद का पूरा मायका ही समेट लाई थी...

बैग से निकलती स्नेह की इस अविरल गंगा का ममतामयी प्रवाह काफी देर तक जारी रहा और उसमें सराबोर बेटी हर निकलते सामान के साथ पुलकित हुई कहे जा रही थी... अरे माँ इसकी क्या जरुरत थी....

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