Friday 11 January 2019

रीयूनियन ...

बहुत दिनों बाद आज रूम मेट का फ़ोन आया , काम के बीच में था इसलिए कुशलक्षेम पूछने के बाद, व्यस्तता  का हवाला देकर संध्या बात करने के वायदे के साथ फ़िलहाल के लिए रुखसती ले ली ...

जेहन में कई विचार एक साथ कौंध गए .... आज इसका फोन क्यों आ गया ? इतने सालो तो इसने कोई सुध नहीं ली , सुना बहुत बड़ा डॉक्टर बन गया है , दिन रात लक्ष्मी बरस रही है , सीधे मुहं तो किसी से बात भी नही करता , बीच में पारिवारिक कलह की बात भी सामने आयी थी , इतनी जल्दी इतना सारा पैसा सीधे तरीके से तो कमाया नहीं जा सकता ,कुछ सट -पट तो जरूर की होगी .... खैर मुझे क्या ? जैसा करेगा वैसा भरेगा .. पर एक बात तो पक्की है ... बिना मतलब के साले ने फ़ोन तो  नही किया होगा ...जरूर कोई काम होगा ... इसकी इमेज अब ऐसी ही बन चुकी है बैच में ...

तमाम शिकायतों ,आरोपों , मानमर्दन के उपरांत हम भी लग गए अपने कामो में पर आज काम में मन नही लग रहा था , कोई पुराना आज बड़े दिनों के बाद दिल में दस्तक दे चुका था और कुरेद चुका था कितनी पुरानी अपने-अपने तर्कों के हिसाब से अच्छी -बुरी बातें .... इस समय केवल  ख़राब बातो को याद करके ही निन्दारस का  सेवन किया जा रहा था ..

शाम हो गयी और चाह के भी उसे फ़ोन न किया , अपना अहम अभी तक अपनी दोस्ती पे हावी था ... बड़ा तुर्रमखां समझता अपने को ... हम भी क्या कम है ... नहीं करूंगा साले को  फ़ोन ... मेरी चिढ़ और परवान चढ़ रही थी ...

तभी उसका फोन घनघना उठा ... मेरे अहम के अल्प विजय हो चुकी थी , कहने के बाद भी मैंने फोन नहीं किया ... देखो उसी को दोबारा करना पड़ा ...

कैसा है ? उसकी आवाज पूरी तरह गले से बाहर नही निकली थी , लम्बा सम्पर्काभाव दो जिगरियों के मध्य एक अपराधबोध के साथ औपचारिकता उत्पन्न कर रहा था ..

ठीक हूँ .. मेरी आवाज में नाराज़गी का रुखापान साफ़ जाहिर था ... 

लगता है नाराज है ... एक हंसी में लिपटा प्रश्नबाण उसकी तरफ से चल गया जिसने मेरी भीतर मौजूद गुबार के गुब्बारे को फोड़ ही दिया बस फिर क्या था , शब्दों -अपशब्दों , शिकायतों ,क्षोभ ,आरोपों  का फव्वारा ऊँचा उछल पड़ा ... मै दनादन बोलता रहा वो शांत भाव से सुनता रहा ....

इंटर्नशिप में अभिन्न मित्रता में पडी दरार आज दिल से निकले उद्गारो से पट रही थी , एक दूसरे की शादी में न जाने भड़ास आज बाहर निकल ,दिल को न कब से दबाये बैठे बोझ से मुक्ति दिला रही थी ..

काफी देर धाराप्रवाह बोल लेने के बाद मै चुप हो गया शायद कहने को कुछ शेष भी नहीं रह गया था  ...

तेरा हो गया ना ... अब मै बोलू ... जैसा भी हूँ , हूँ तो तेरा दोस्त ना .... कोई भी दिन हमारे घर में ऐसा न होगा जिसदिन तेरा जिक्र न आया हो , बात करता भी तो कैसे अपने बनाये मकडजाल में खुद ही उलझा बैठा था 
पर तेरी खोज खबर हमेशा रखता ....अपने बच्चो से हरदम कहता हूँ पापा जैसा नहीं ... पापा के  दोस्त जैसा बनना .... 

तुझे याद है ना अपने बैच का चरसी बाबा ... आज उसका फ़ोन आया था , बैच की सिल्वर जुबली रीयूनियन है इस साल के अंत में ... आने के लिए कह रहा था ... मैंने कह दिया मै जरूर आऊँगा और तुझे भी साथ लाऊंगा ...बच्चे तुझ से मिलने के लिए अति उत्साहित हैं ...

अब चुप रहने की बारी मेरी थी , भावनाओ का सैलाब उमड़ चुका था , सारे -शिकवे शिकायतें काफूर थी ..

तेरे साथ ही जाऊँगा साले ... कोला में ओल्ड मोंक  पीकर साथ नागिन डांस किये काफी दिन हो गए  ....

सारी गिरह खुल चुकी थी ... यार ने इतने दिनों बात नहीं की तो क्या हुआ... वो तो हमारी यादों के साथ  सपरिवार रोज जी रहा है ...

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