Thursday 24 January 2019

जाड़ो की एक अलमस्त सुबह
लेक्चर जाने को लेकर संशय 

तभी हमारे ज़मीर ने धिक्कारा 
रजाई छोड़ने के लिए धक्का मारा 

देर रात तक जगे नींद कैसे हो पूरी 
ये मॉर्निंग लेक्चर गज़ब की मज़बूरी 

क्या मस्त नरम-गरम बिस्तर  पड़े थे 
कितने हंसीं ख्वाब हम बुन रहे थे 

ये कम्बख्त रूम पार्टनर क्यों जग गया 
आलसी होने का तमगा हमपे जड़ गया 

ऐसा एक अहसास तुरंत हुआ उजागर 
जैसे कोई  पाप किया हो घरवालों से छुपाकर

पिताजी का  भेजा पैसा  कुछ याद दिलाने लगा
मध्यमवर्गी सपना कर्तव्यबोध कराने लगा 

 तुरंत आँखों का गीदड़ अँगुलियों से हटाया
ठण्ड के  प्रकोप में पञ्च स्नान से काम चलाया

बिना नाश्ता दौड़ पड़े रजिस्टर उठाकर
भागते हुए एप्रन पहने, देखो लड़खड़ा कर  


सुई के  कांटे से दौड़ हम जीते हफ -हफां  के
८ बजे से पहले पहुंचे ,साथी से लिफ्ट पा के

उनींदी आँखे आंखे  व्याख्यान को क्या समझे
वो तो सिर्फ अपनी वाली के दर्शन को तरसे ..

एकाएक वो नज़र आईं  , पीछे की पंक्ति में
आंखे सजग हुई दर्शन और भक्ति में

ये एकतरफ़ा प्रेम भी कितना अजीब है
प्रेमी है पर मौखिक अभिव्यक्ति से गरीब है

देखो खुमारी में होगया गुरूजी का  लेक्चर ख़त्म
अनुपस्थित महानुभावो का प्रॉक्सी से  उचित प्रबंध

उगे दिवाकर की गुनगुनी रश्मियों के तले
नाश्ते के लिए पैदल ही छात्रावास चल दिए ..





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