Thursday 4 April 2019

कांस्टेंट फियर ...

हम न जाने क्यों एक कांस्टेंट फियर में जी रहें हैं , नौकरी/ पैसे /EMI की चिंता , अपने व परिवार के स्वास्थ की चिंता , सदैव किसी अनहोनी की आशंका, बच्चों की परवरिश उनकी शिक्षा को लेकर चिंता  ....

इसी चिंता , उधेड़बुन और भविष्य न जाने और क्या बेहतर हो जायेगा तब हम बहुत खुश हो जायेंगे की सोच में सलग्न अपना वर्तमान नकार देते हैं , अपने को सीमित कर देते हैं ,संबंधो को भी लाभ-हानि की दृष्टि से तोलने लगते हैं ...

महानगरीय जीवन शैली में दिनरात पिसे हम परिवार के साथ तीन चार महीने में किसी दूसरे शहर के सैर सपाटे, होटल या रिसोर्ट के निवास को ही स्ट्रेस बस्टर मान लेते हैं मगर अपनी दैनिक दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं करते ....

खाने का कोई निश्चित समय नहीं, देर रात तक जागते है , TV और मोबाइल में उलझे हुए , पारिवारिक संबंधो को सीचने हेतु जिस वार्तालाप की आवशयकता है उसका समय सोशल मीडिया खा जाता है .... देश दुनियां की खबर पर अपने पास पड़ोस से अंजान...

एक वाकया दिल्ली का मुझे याद है , एक फ्लैट में किसी वृद्ध की मृत्यु हो गयी , रात भर शव रखा रहा , परिचितों का आना जाना भी लगा रहा , सुबह क्रियाकर्म लिए शमशान भी ले गये , विधि विधान से सारे कर्म पूरे कर जब शाम को घर लौटे तो सामने के फ्लैट में रहने वाले सज्जन उपस्थित थे और पूछने लगे , आपके घर क्या कोई  कार्यकम था , काफी  भीड़ भाड़ थी ... प्रश्न सुनकर शोक संतृप्त परिवार निरुतर सा हो गया ... पडोसी के जब सही बात की जानकारी हुई तो एक अल्प अफ़सोस जाता के वापस अपने फ्लैट में घुस लिए ...

क्यों हम अपने छोटे छोटे कोष्ठको में कैद होकर रह गए हैं , परस्पर मेलजोल की जगह आपसी होड़ में ईर्षा ग्रस्त हो गए है , हमारी आर्थिक उन्नति तो हुई पर सोच क्यों छोटी हो गयी , प्रश्न कई है जो परेशान करते है पर उचित व पूर्ण उत्तर नहीं मिल पाता ...

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