कुछ ही सम्पन्नता से संतृप्त
और अनगिनत कितने अभाव-ग्रस्त
हर रोज चौड़ी होती इस अंतर की खाई
और विषमताओं से पनपता आक्रोश
बहलाने , फुसलाने और बरगलाने
कुछ चेहरे आते नज़र, साथ खड़े
वायदों , कायदों ,रवायतो को भुला
दोनों ओर से खुद को ही पोषित करता
शक्ति और साधन संपन्न
आज का यह समाजवाद
और अनगिनत कितने अभाव-ग्रस्त
हर रोज चौड़ी होती इस अंतर की खाई
और विषमताओं से पनपता आक्रोश
बहलाने , फुसलाने और बरगलाने
कुछ चेहरे आते नज़र, साथ खड़े
वायदों , कायदों ,रवायतो को भुला
दोनों ओर से खुद को ही पोषित करता
शक्ति और साधन संपन्न
आज का यह समाजवाद
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