रात के एक बजे , जोशी के डबल
कैसेट टेपरिकॉर्डर पर किशोर दा का स्वरबद्ध “ओ हंसनी”
चल
रहा , भारती अपने मुहं में मंजन से उत्पन्न झाग को समेटते हुए कुछ कहने की
कोशिश कर रहा है ,सैंडी हाथ में साबुनदानी उठाये हमेशा की तरह
पैखाने की ओर अग्रसर है , राममोहन धूम्रदंडिका ओष्ठो में दबाये
अपने फेफड़ो को फूंक रहा है , नीचे की ग्राउंड फ्लोर में यदा कदा
दोपहिया वाहनों के चलने और रुकने उनके स्टैंड से उतरने और चढ़ने का शोर सुनायी दे
जाता है , बॉयज हॉस्टल -२ के सबसे उपरी मंजिंल का यह बरांडा हमेशा की तरह इस समय भी गुलजार है , एक
सौ वाट के बल्ब ने अर्धरात्रि के इस कठोर
तिमिर से जूझने का संकल्प उठाया हुआ है , कमरों के दरवाजो
और खिडकियों से आता हुआ टयूब लाइट का सफ़ेद दुधिया प्रकाश उसके इस संघर्ष में उसे
कितनी सहायता प्रदान कर रहा है .... जाट राम बरगोटी बाबू सुबह जल्द उठने के फेर में सोने जा चुके हैं पर उनकी आँखों में नींद कहाँ ??? कान
तो हमारी ओर ही लगे हुए हैं ....
जाड़े
की भीषणता अब समाप्त सी है, जनवरी के इन अंत के दिनों में मेरे
कमरे में सप्ताहांत की यह रात दो ईंटो के
ऊपर रखी हीटर की सफ़ेद प्लेट में सुर्ख लाल हुए फिलामेंट से निकलती ऊष्मा से ऊर्जा पा यहाँ विद्यमान हम सभी वाचाल वाचको को ऊर्जित कर रही
है ... BC (बातचीत ) अपने चरम पे है ,समय
का कोई बंधन नहीं , कक्ष सहयोगी लखनऊ वाला है अक्सर ,शनिवार-इतवार
को घर चला जाता है इसलिए टोका –टोकी से परे कमरे में पूर्ण रूप से
मेरा ही अधिपत्य है .... मेहमान नवाजी अपने पूर्ण शबाब पे है , कमरे
के बिखरने , चद्दर
के गन्दा होने ,सामान की छेड़छाड़ की तनिक भी चिंता नहीं ....
रावतपुर से शाम को ही एक किलो मूंगफली ले आया
था , हरे धनिये ,मिर्च ,लहसुन की तीखी
चटनी और भुकनु के साथ , यद्यपि बचपन से गुड या रेवड़ी के साथ मूंगफली
खाने की आदत रही है पर जहाँ पिछले दो सालो में घर से हॉस्टल आने के बाद जब आपका पूर्ण कायांतरण हो चुका हो तो मीठे और
नमकीन का यह तुच्छ भेद क्या चीज है ?.... एक कुमाऊँनी अब विशुद्ध रूप से पक्का कनपुरिया बन चुका है ...यहाँ के स्वाद और
बात के समस्त कायदों को सीख...
कमरे की उन निवाड़ वाली चारपाईयो के मध्य छिलको के लिए प्लास्टिक
की बाल्टी रख ली गयी है ,स्टडी
टेबल से किताबो को हटा उसे भी बाल्टी के बगल में रख लिया गया है , उसके ऊपर
मूंगफली एक बड़ी सी प्लास्टिक की थैली में,
कागज
में रखी हरी चटनी और भुकनु के साथ
शोभायमान है, और सब के सब इस
खाद्य सामग्री पे टूटे पड़े है ...मूंगफली छिलने की चटर-पटर बातों की चटर-पटर के
साथ निर्बाध गति से आगे बढ़ रही है ,
समय
के साथ लोग जुड़ते चले जा रहे है पर जो एक बार आ गया उसे जाने की सुध कहाँ ???
बातों
की इस चाशनी में कितना चुम्बकीय आकर्षण है ....
तकरीबन
९०% विषय एक ही है बस उसे अलग
अलग आयामों और निंदा रस से सराबोर करके
प्रस्तुत किया जा रहा है ....आज चर्चा का केंद्र बिंदु “बत्रा बाबू”
का
सेंटीयापा है और वो हम सभी के गले रूपी तरकश से निकले शब्द बाणों को झेल रहें है अपने लम्बे लम्बे
स्पष्टीकरणों की ढाल के साथ ... जब कभी अति हो जाती है तो पैर पटक के जाने लगते
हैं पर मन-मनौव्वल और topic change
करने के वादो के साथ उनको वापस बुला ही लिया जाता है ...किन्तु लोग
कहाँ मानने वाले ??? आज का "SOFT TARGET" वो
ही हैं ... घूम फिर के बात उन्ही के सिर पे आ
जाती है ...
तभी एकाएक
कालू को कुछ चुल्ल मची वो भाग के
अपने कमरे में जाकर अपने पॉवर हाउस में “summer of 69” जोर
से लगा देता है , पर हम अधिकांश देसी बालको को इस संगीत की समझ कहाँ??? शोर
को तुरंत बंद करा दिया जाता है , बहुमत के आगे कालू भी विवश है और हमें
गंवार होने का तंज के साथ वो बड़े ही बेमन से झल्लाते हुए सीधे पॉवर स्विच ही ऑफ कर
देता है ...बातों का प्रतिकार जारी है ...सब के अपने अपने तर्क है और अपनी अपनी
सोच ...
मूंगफली ख़तम हो चुकी है पर बातें नहीं ....बाल्टी होने के बावजूद भी छिलके कमरे में
यत्र –तत्र –सर्वत्र बिखरे हुए हैं , दानों के ऊपर
मौजूद रहने वाले महीन लाल रंग के छिक्कल अस्तित्व विहीन से रजाई,चद्दर और गरम जर्सी से मजबूती से चिपक गए है शायद
किसी शरण की तलाश में...
बिना सुरापान वाली ये रात भी गजब की रही ,
आगे
आने वाले दिनों की कार्यवाही का मसौदा तैयार कर लिया गया ... दूर –दूर
तक परीक्षाओं की कालिमा फिलहाल नहीं है और हम सब
निकल चुके है गेट पे सुन्दर की चाय
पीने .... मस्त जिंदगी का एक और मस्त दिन बीत गया... आने वाली और मस्तियों की योजना के साथ...
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