Wednesday, 22 July 2015

इस गृहस्थी का असली शेषनाग....

सुबह  होते ही चाय की पुकार 
न मिलती हवाई चप्पलो की झुंझलाहट 
बाल्टी में गन्दा कच्चा बनियान तैरा डाला 
नहाने के बाद गीला तौलिया बिस्तर पे दे मारा 

जुराबे ढूँढने में अलमारी  उथल –पुथल 
बचकानी आदतें ,  कभी  न जाते सुधर 
अब पर्स और चाबी के लिए मचाई आफत 
बीवी ने हाथ में धर दिया तुरंत लाकर 

श्रीमती जी देखें जा रही  कितना मुस्कुराकर 
आँखे या बट्टन ? का उलाहना  चिपकाकर  
अब पकड़ा रहीं  चश्मा और टिफ़िन 
पतिदेव नज़र आ रहे कितने खिन्न 

बालकनी में आकर हाथ हिला कर रही विदा 
इस फैले घर समटने में लगेंगे पूरे दो घंटा
सब जा चुके अब सांस आई 
घर में मचे विध्वंस  पे नजरे दौड़ाई 

चलो पहले सुकून से चाय पीते है 
रात के छूटे सीरियल भी देख लेते है  
टीवी चला शुरू हुए घर के काम 
तड़के जगी इस नारी का कहाँ विश्राम ? 

तभी प्रेस वाले ने घंटी बजाई 
मेमसाब कपडे है ? की आवाज लगाई 
एकाएक आया  महरी का सन्देश 
गाँव जा रही हूँ , आई जरूरत विशेष 

चौगुना हुआ  काम का बोझ 
पहले झाड़ू कि बर्तन ? की पड़ गयी सोच 
धीरे धीरे सारा काम निबटाया 
घडी की सूईयों ने एक बजाया 

बच्चों के स्कूल से आने का हो गया समय 
क्या खाने में बने उठा संशय 
जल्दी से कुक्कर गैस पे चढ़ाया 
बिटियाँ की  पसंदीदा दाल में तड़का लगाया 

बच्चे घर आ गए हल्ला मचाते 
बस्ता पटक खेलने फ़ौरन बाहर भागे 
माँ गला फाड़ खाने को बुलाये 
अपनी  धुन में रमें बच्चे कहाँ सुन पायें ?

बार-बार कहने का हुआ असर 
बच्चे खाने की मेज  की ओर अग्रसर 
बालक ने परांठे खाने की इच्छा जताई 
तुरंत ही सेकने लगी मां जरा न हिचकिचाई 

स्कूल में आज क्या हुआ की हो रही खोजखबर 
कॉपी में कितने करेक्शन, कितना मिला होमवर्क 
गलती बता वो कर रही सुधार 
कभी चपत रसीदे तो कभी पुचकार 

साँझ होते ही फ़ोन खडखड़ाया 
मायके से माँ ने अपना दुखड़ा सुनाया 
माँ- बेटी कर रही देखो चटर-पटर 
भईया- भाभी की ली जा रही जमके खबर 

ऑफिस से हस्बैंड घर लौटे कितना भिनभिनाते 
कभी बॉस तो कभी शहर के ट्रेफ़िक को गरियाते 
सर दर्द में अदरक की चाय की इच्छा जताई 
पत्नी ने रसोई जा बड़े प्रेमपूर्वक बनायीं 

रात के खाने की हो रही तैयारी
उद्योग निरत रहती देखों यह नारी 
बच्चे भी पढाई-लिखाई में जुटे 
घर के सुकूं में पतिदेव अख़बार पढने लगे 

एक और दिन हो गया ख़तम 
समय पर सारे कार्य न कोई विलंब 
निंद्रा के आगोश में सम्पूर्ण  परिवार 
पर गृहलक्ष्मी को कल की सोच-विचार 

न कोई वेतन न कोई अवकाश है 
सम्पूर्ण परिवार का देखों 
इसके कंधो  पे  ही भार है 
ये ही तो इस गृहस्थी का असली शेषनाग है ...

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