Sunday, 26 July 2015

ताकि संवरे अपना भविष्य ....

अपने बचपन का वो समय
पिताजी की सरकारी नौकरी
उसकी अपनी विवशतायें
क्षमतायें और मर्यादाएँ...

सीमित साधनों में निर्वहन
बचत और उपलब्ध चीजों के 
इष्टतम उपयोग के मध्य
अंकुशित तमाम इच्छायें...

कभी-कभी खीज उठता मन
देख आस-पड़ोस की अनगिनत
भौतिक सुख सामग्रियां जो होती
हमारे लिए अभिभावकों के 
अनेकों  तर्कों से शापित...

प्रस्तुत किये  जाते समक्ष
अनुकरणीय उदहारण
कुछ गुदड़ी के लालों के ,
पूर्व की पीढ़ी के अभावों के
और बताया जाता हमें धन्य...

कठोर वित्तीय अनुशासन संलिप्त 
हमेशा ही दे जाती सीख
कम में काम चलाने की 
और खूब पसीना बहाने की 
ताकि संवरे अपना भविष्य ....

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