Thursday, 30 July 2015

अपनों से ही अपना सबकुछ लुटाये बैठा हूँ...

सर पे कितना बोझ उठाये बैठा हूँ 
न जाने कितनों से खार खाये बैठा हूँ 

मेरी चुप्पी को कमज़ोरी समझते है वो 
मैं तो अंगार को बस दिल में दबाये  बैठा हूँ 

तमाशे पे तमशा लगा रहे  हर जगह 
बेगैरतो को अपना खैरख्वाह बनाये बैठा हूँ 

हर सफ़ेद लिबास की चमक अब मैली सी  लगे
इस हमाम में सबको नंगा  नहाये  देखा हूँ 

आँखों से काजल तक चुरा लेते है  वो 
जिन्हें इस मुल्क का पहरेदार लगाये  बैठा हूँ 

बगावत के सिवा अब बचा क्या  मेरे पास ?
अपनों से ही अपना सबकुछ लुटाये बैठा हूँ...

No comments:

Post a Comment