Wednesday, 8 July 2015

कुछ अक्षम्य कृत्य....

कुछ अक्षम्य कृत्य
कुछ प्रयाश्चित विहीन गलतियाँ
सतत अपराधबोध लिए
कितना कचोटता रहता
अपना यह मन....
होता कितना पश्च्याताप
बार-बार अतीत में जाकर
अपने आचरण की त्रुटियों को
सुधारने की न संभव हो सकने वाली
कल्पनाओं में विचरना हमें आता पसंद
पर बीता समय तो होता
पत्थर की अमिट लकीर की तरह
जिसे नकारना, बदलना,भूलना
होता भरे दिन में
खुली आँखों से देखना स्वप्न ...

लीजिये सीख अपने इतिहास से
और करिये हर संभव प्रयत्न
न हो वर्तमान और भविष्य में
मन वचन कर्म से जाने-अनजाने
पुनरावृत अपने कलंक

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