Thursday 16 May 2013

गालियो की माहिमा

कॉलेज के दिनो extempore speech   में मुझे  शीर्षक मिला - गालियो की महिमा  ...हालाकि  ये मौज मस्ती के लिए था लेकिन इसमे भी कुछ तथ्य निकाल आए वो मै  आप सब लोगो के साथ बाँट रहा हूँ ...

१.  संस्कृत भाषा आम लोगो की भाषा इस लिए नहीं बन पाई क्योकि उसमे गालिया नहीं थी

२  हिंदी व अन्य स्थानीय भाषाओं में प्रचुर मात्रा  में मौजूद भाषाओं के इन्ही  विकारो   की मौजूदगी ने ही उन्हें लोकभाषा बना दिया ...

३ जैसे उपयुक्त मात्रा  में मिर्ची खाने का स्वाद बड़ा देती है उसे तरह मौजमस्ती  में दी गयी गालियाँ भी मित्रो के परस्पर वार्तालाप को रस प्रदान करती है

४ .गालिया  विद्यार्थी और हॉस्टल जीवन को जीवंत बनाती है ...ये उसकी आत्मा स्वरुप है

५ गालियों के बिना  'निंदा रस' की परिकल्पना व्यर्थ है

६ .क्रोध के आवेग में दी गयी भारी भरकम गालिया गरिष्ठ भोजन के सामान है जो रिश्तो में अपच पैदा करती है

७ .होली के हुल्लड़ में दी गयी गालिया अपने  शाब्दिक अर्थो से परे होती है, वे फाल्गुन की मस्ती में चार चाँद लगाती है

८ चाहे हिंदी भाषा ने गैर हिंदी भाषी क्षेत्रो में अपनी पैठ न बनाई हो पर हिंदी की गालियों ने यह काम युगों पहले से ही कर रखा है

९ भारत पाकिस्तान के मध्य कटुता का एक प्रमुख कारण एक जैसी गालिओ का होना है ...मतलब समझ में आ जाता है और मुंह  फूल जाता है

और अंत में

 DK Bose  जैसे  गाने तो अब चलन में आये है पूर्व में काशी में होने वाले चकाचक  बनारसी सरीखे  सम्मलेन  पूरे देश में कवियों  की छुपी हुई सृजन शक्ति का परिचायक रहे है ...











No comments:

Post a Comment