Thursday 16 May 2013

भाषा और गालियाँ by Rajkumar Singh


भाषा और गालियाँ .
            असली लेखन लिक्खाड़ की वह खुजली है जिसे क्रिया द्वारा व्यक्त किये बिना नहीं रहा जा सकता या कहिये और सहा नहीं जा सकता तो पढ़ भी लीजिए और बन पड़े तो गाली जरूर दीजिए क्यों की इस लिखे का केन्द्र बिंदु भी यही विषय है और गालियाँ प्रेय . वैसे पता नहीं यहाँ बताना बेशर्मी होगी या नहीं ,क्योंकि यहाँ बहुत संस्कारित माहौल है उप्पर से एक जगह किसी वक्री ने परस्पर टिप्पणी में मुझे यहाँ का ' सम्माननीय ' घोषित कर दिया था ( सम्मान से ही ) ,तब से बोलती थोड़ी बंद और सीमित हो गयी है :) .लेकिन अपने जवानी में दो बार गोदौलिया का विश्व प्रसिद्ध ' सम्मलेन ' देखने सुनने और फिर सुनाने का मौका जुगाड हुआ था तब से आज का दिन है, गालियों की ताकत को ही असली ताकत मानता हूँ किसी भी भाषा की और अरबी सहित दर्जनों भाषाओँ के बारे में जानता हूँ की गालियाँ हैं और खूब हैं .
      मेरी होली पार्टी का बहुत सारे इंतज़ार करते थे और न्यू योर्क दुनिया की सब भाषाओं को बोलने वालों की जगह है और उन्हीं अन्तरंग मित्रों को बुलाता था जो गोदौलिया रिपीट कर सकते हों :) .बताने की जरूरत नहीं की मर्द मंडली एक ओर और महिला बच्चे अलग . कार्यक्रम का सब से आकर्षक हिस्सा होता था गालियाँ देने लेने का ,और अपनी मातृभाषा में ही होना अनिवार्य था .हाँ अंगरेजी में उसका भावार्थ किया बताया समझा समझाया जाना तो होता ही था .
       हाँ अपनी अवधी और भारतीय भाषाओँ के बाद अगर और किसी भाषा को गालियों में , वह भी मुहारेदार गालियों में सशक्त , और अन्य सब से ज्यादा पाया तो इटालियन में ,और वह भी दक्षिण इटली के टापू सिसली वालों की .तो गालियाँ गालियाँ ही रहने दो कोई नाम न दो . 
        रही बात संस्कृत की तो बताता चलूँ प्राईवेट ' शास्त्री ' भी हूँ .पाणिनी को कष्ट साध्य होते हुए भी कुछ जाना है .कम से कम शब्दों में ,अपने सुगठित व्याकरण के बूते ,निश्चित भाव व्यक्त करने में संस्कृत बेजोड है .और नागरी जैसी सशक्त वैज्ञानिक लिपि उसे अद्वितीय बना देती है . अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी और नासा ने उसे प्रतिष्ठा दी है तो भावना के वश नहीं .या कुछ को देव भाषा लगती है इसलिए भी नहीं .चलिए अगर कुछ लोगों को संस्कृत में गालियों का न होना गर्व है तो मेरा भी गर्व है की मैंने और कुछ मित्रों ने इस अभाव को सभाव भक्तिभाव से पूरा करने में काफी बौद्धिक श्रम किया . सहस्त्रों में नहीं तो शतकों में तो गिना ही जा सकता है :) . लगता हो फेंक रहा हूँ तो फोन कर लीजियेगा . 
     वैसे मुझे नहीं लगता की यहाँ कोई ऐसा मात्रिभोगी होगा जो शंका कर सके . लिंक दूंगा नहीं और लिंग संधान नियोजित समय और सीमा में ही करता हूँ .प्रति प्रश्नों या अन्य तरीकों से/द्वारा उत्तेजित नहीं किया जा सकता और निवारण मैं सुविधानुसार ही करता हूँ 



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