Thursday 9 May 2013

कहने भर को ही लोकतंत्र है ,

छल है , प्रपंच है 
कहने भर को ही लोकतंत्र है ,
हत्या है, बलात्कार है 
फसाद ही फसाद है . 

मूक अपना प्रधान है 
जी हजूरी का ही विधान ,
ठोस फैसलों का आभाव है ,
पूंजीपतियों का ही भौकाल है 

नेता अब नायक नहीं
विश्वास के लायक नहीं
सब बरगद के वृक्ष है
किसी को पनपने न देने में ही दक्ष है

राजनीति अब प्रबंधन है
पैसे- ताकत का ही आपसी सयोजन है
जनता की सुध ले कौन
कुकृत्यो पर सत्ता -विपक्ष मौन

मीडिया अब विश्वसनीय नहीं,
इनकी खबर दर्शनीय नहीं
फिक्स सारा मैच है
सब टी आर पी का खेल है

बेबस, फटेहाल, कंगाल है
आम आदमी का आज यही हाल है ....


Dec28,2012 @lko

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