Thursday 9 May 2013

यह खेल ही कुछ और है...

चारो तरफ कितना शोर है ,
बस धमाको का ही ज़ोर है 
चिथेड़े उड रहे है शरीर के, 
मानवता कितनी कमजोर है ,

वैमनस्य फैला के हमारे बीच 
शत्रु हँसता पुरजोर है ,
धर्म इसका कारण नही
शीर्ष सत्ता का यह खेल ही कुछ और है...

No comments:

Post a Comment