चारो तरफ कितना शोर है ,
बस धमाको का ही ज़ोर है
चिथेड़े उड रहे है शरीर के,
मानवता कितनी कमजोर है ,
वैमनस्य फैला के हमारे बीच
शत्रु हँसता पुरजोर है ,
धर्म इसका कारण नही
शीर्ष सत्ता का यह खेल ही कुछ और है...
बस धमाको का ही ज़ोर है
चिथेड़े उड रहे है शरीर के,
मानवता कितनी कमजोर है ,
वैमनस्य फैला के हमारे बीच
शत्रु हँसता पुरजोर है ,
धर्म इसका कारण नही
शीर्ष सत्ता का यह खेल ही कुछ और है...
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