ना जाने किसकी दुआओं का फैज़ है मुझपर,
मैं डूबता हूँ और दरिया उछाल देता है...
मैं परेशां था,परेशां हूँ, नई बात नहीं,
आज वो भी हैं परेशान, खुदा खैर करे।
मेरे हाथों को मालूम है तुम्हारे गिरेबानों का पता,
चाहूं तो पकड़ लूं पर मजा आता है माफ करने में ।
तुम्हें ग़ैरों से कब फुर्सत हम अपने ग़म से कब ख़ाली
चलो बस हो चुका मिलना न तुम ख़ाली न हम ख़ाली.
उस ने फिर मेरे ज़ख्मों को ताज़ा कर दिया !
पुराने अंदाज़ में आने का कल वादा कर दिया !!
थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँ।
ये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूँ।
कुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ महकी-महकी यादें,
जीने का मैं इतना ही सामान बचा पाया हूँ .
तू अगर मुझे नवाज़े तो तेरा करम है मेरे "मालिक" !!
वरना तेरी रहमतों के काबिल मेरी बंदगी नहीं !!
-ये किन की तोहमतों से घबरा के तूने सर झुका लिया बन्दे,
वो जिन के अपने सिरों पर तोहमतों की पगड़ियाँ बंधी है.
आज कोई नया जख्म नहीं दिया उसने मुझे ,
कोई पता करो वो ठीक तो है ना .............
"ईश्वर चित्र में नहीं
चरित्र में बसता है ;
अपनी "आत्मा" को
मंदिर बनाओ".
मेरी कारनामा -ए- जिन्दगी, मेरी हसरतों के सिवाए कुछ नहीं,
ये किआ नहीं, वो हुआ नहीं, ये मिला नहीं, वो रहा नहीं..
रंगत लाई हैं...शायरों की महफ़िल...
दर्द भी कितना...महकता हैं यहां...
मैं और मेरा ईश्वर, दोनों एक जैसे हैं। हम रोज़ भूल जाते हैं।
वो मेरी गलतियों को और मैं उसकी
.
..
...
मेहरबानियों को।
"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए
तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
तुझ सी हुनरबाज़ नहीं मैं..... ऐ शख्स.......
....लहूलुहान कर किसी को ....मुझे सीने से लगाना नहीं आता.....
बहुत एहसान है तेरी उन नफरतों का मुझ पर... ऐ ज़ालिम,
तुझसे मिली ठोकर ने मुझे संभलना सिखा दिया.....!! —
बेख्याली में भी कभी तेरा ख्याल नहीं जाता
तू साथ नहीं,पास नहीं ये मलाल नहीं जाता
मैं सदा उसके पैर और वो मेरे गले पड़ता रहा
मेरे सर पे पाँव रख के वो सीढ़ियां चढ़ता रहा.
हर एक बात पे कहते हो तुम के ‘तू क्या है ’
तुम्हीं कहो के यह अंदाज़ -ए -गुफ्तगू क्या है... ?
"एक बेहतरीन इंसान अपनी जुबान से ही पहचाना जाता है;
"वर्ना अच्छी बातें तो दीवारों पर भी लिखी होती है..
सामने हैं जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिसको देखा भी नहीं उसको खुदा कहते हैं.
ये मेरा इश्क था की दीवानगी की इम्तहाँ,
तेरे करीब से गुज़र गया, तेरे ही ख्याल में...
किसी के आने या जाने से जिँदगी नही रुकती...
बस जीने का अँदाज बदल जाता है
नादान हैं वो,
कुछ समझते ही नहीं ।
सीने से लगा कर पूछते हैं,
धड़कन तेज क्यो है...
आपकी नज़रें इनायत हो गई,
दूर बरसों की, शिकायत हो गई ।
बाहर के सर्द मौसम पर तो तुम्हे ऐतराज़ हो चला है;
रगों में बहते सर्द खून का कभी तुम ज़िक्र नहीं करते..
मैं ताक रहा.. उस को.. वो झांक रहा.. मुझ को..
इस ताक - झांक.. में ही.. ज़िन्दगानी गुज़र गई ...
मौज मस्ती में कटे उम्र,
यही याद रहे
मैं रहूँ या ना रहूँ,
फिर भी मेरी याद रहे.
रास्तों के सीने में भी दिल धड़कते हैं.....
जाने कौन कोई मुसाफिर जाना पहचाना निकले....
संभव क्या असंभव क्या, ये तो इक आडम्बर है...!!
पहचानो उस शक्ति को, जो छुपी तुम्हारे अंदर है....!!
तेरे दर से उम्मीद टूटी थी न टूटी है न टूटेगी,"
या रब,
मैं इस दुनिया से मायूस हो सकता हूँ तेरी रहमत से नही"
एक वक़्त तक मैं उसकी ज़रूरत बना रहा,
फिर यूँ हुआ कि उसकी ज़रूरत बदल गयी ...
ये सीडियाँ उन्हें मुबारक जिन्हें छत पर जाना है !
जो आसमा की आरजु रखते हैं, उन्हें अपना रास्ता खुद बनाना है !!
अपनी मर्ज़ी से भी दो-चार कदम चलने दे,
ज़िन्दगी, हम तेरे कहने पे चले हैं वर्षों।
फ़ासले घटा देते है दिल से नफरतों को
वो जो दूर हुए कुछ मुहब्बत सी होनी लगी !'
उन्हीं को मिलीं सारी ऊचाईयां
जो गिरते रहे और संभलते रहे
तू अगर मुझे नवाज़े तो तेरा करम है मेरे "मालिक" !!
वरना तेरी रहमतों के काबिल मेरी बंदगी नहीं !!
दुनिया मेरी तलाश में रहती है रात-दिन,
मैं सामने हूँ मुझ पे किसी की नज़र नहीं ..!!
यूँ तो कर लेता आपका इंतज़ार कयामत तक,
पर मौत से बचाने वाला कोई खुदा न मिला.....
जब किसी से कभी गिला रखना *********
सामने अपने आईना रखना !
यह आसूं
वक़्त बे वक़्त मेरी आखों मैं
टहलने चले आते हैं
ख़ुशी हो या गम
मेरा पूरा साथ निभाते हैं
हम तेरे अपने हैं
ये जताने चले आते हैं.
मैं डूबता हूँ और दरिया उछाल देता है...
मैं परेशां था,परेशां हूँ, नई बात नहीं,
आज वो भी हैं परेशान, खुदा खैर करे।
मेरे हाथों को मालूम है तुम्हारे गिरेबानों का पता,
चाहूं तो पकड़ लूं पर मजा आता है माफ करने में ।
तुम्हें ग़ैरों से कब फुर्सत हम अपने ग़म से कब ख़ाली
चलो बस हो चुका मिलना न तुम ख़ाली न हम ख़ाली.
उस ने फिर मेरे ज़ख्मों को ताज़ा कर दिया !
पुराने अंदाज़ में आने का कल वादा कर दिया !!
थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँ।
ये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूँ।
कुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ महकी-महकी यादें,
जीने का मैं इतना ही सामान बचा पाया हूँ .
तू अगर मुझे नवाज़े तो तेरा करम है मेरे "मालिक" !!
वरना तेरी रहमतों के काबिल मेरी बंदगी नहीं !!
-ये किन की तोहमतों से घबरा के तूने सर झुका लिया बन्दे,
वो जिन के अपने सिरों पर तोहमतों की पगड़ियाँ बंधी है.
आज कोई नया जख्म नहीं दिया उसने मुझे ,
कोई पता करो वो ठीक तो है ना .............
"ईश्वर चित्र में नहीं
चरित्र में बसता है ;
अपनी "आत्मा" को
मंदिर बनाओ".
मेरी कारनामा -ए- जिन्दगी, मेरी हसरतों के सिवाए कुछ नहीं,
ये किआ नहीं, वो हुआ नहीं, ये मिला नहीं, वो रहा नहीं..
रंगत लाई हैं...शायरों की महफ़िल...
दर्द भी कितना...महकता हैं यहां...
मैं और मेरा ईश्वर, दोनों एक जैसे हैं। हम रोज़ भूल जाते हैं।
वो मेरी गलतियों को और मैं उसकी
.
..
...
मेहरबानियों को।
"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए
तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
तुझ सी हुनरबाज़ नहीं मैं..... ऐ शख्स.......
....लहूलुहान कर किसी को ....मुझे सीने से लगाना नहीं आता.....
बहुत एहसान है तेरी उन नफरतों का मुझ पर... ऐ ज़ालिम,
तुझसे मिली ठोकर ने मुझे संभलना सिखा दिया.....!! —
बेख्याली में भी कभी तेरा ख्याल नहीं जाता
तू साथ नहीं,पास नहीं ये मलाल नहीं जाता
मैं सदा उसके पैर और वो मेरे गले पड़ता रहा
मेरे सर पे पाँव रख के वो सीढ़ियां चढ़ता रहा.
हर एक बात पे कहते हो तुम के ‘तू क्या है ’
तुम्हीं कहो के यह अंदाज़ -ए -गुफ्तगू क्या है... ?
"एक बेहतरीन इंसान अपनी जुबान से ही पहचाना जाता है;
"वर्ना अच्छी बातें तो दीवारों पर भी लिखी होती है..
सामने हैं जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिसको देखा भी नहीं उसको खुदा कहते हैं.
ये मेरा इश्क था की दीवानगी की इम्तहाँ,
तेरे करीब से गुज़र गया, तेरे ही ख्याल में...
किसी के आने या जाने से जिँदगी नही रुकती...
बस जीने का अँदाज बदल जाता है
नादान हैं वो,
कुछ समझते ही नहीं ।
सीने से लगा कर पूछते हैं,
धड़कन तेज क्यो है...
आपकी नज़रें इनायत हो गई,
दूर बरसों की, शिकायत हो गई ।
बाहर के सर्द मौसम पर तो तुम्हे ऐतराज़ हो चला है;
रगों में बहते सर्द खून का कभी तुम ज़िक्र नहीं करते..
मैं ताक रहा.. उस को.. वो झांक रहा.. मुझ को..
इस ताक - झांक.. में ही.. ज़िन्दगानी गुज़र गई ...
मौज मस्ती में कटे उम्र,
यही याद रहे
मैं रहूँ या ना रहूँ,
फिर भी मेरी याद रहे.
रास्तों के सीने में भी दिल धड़कते हैं.....
जाने कौन कोई मुसाफिर जाना पहचाना निकले....
संभव क्या असंभव क्या, ये तो इक आडम्बर है...!!
पहचानो उस शक्ति को, जो छुपी तुम्हारे अंदर है....!!
तेरे दर से उम्मीद टूटी थी न टूटी है न टूटेगी,"
या रब,
मैं इस दुनिया से मायूस हो सकता हूँ तेरी रहमत से नही"
एक वक़्त तक मैं उसकी ज़रूरत बना रहा,
फिर यूँ हुआ कि उसकी ज़रूरत बदल गयी ...
ये सीडियाँ उन्हें मुबारक जिन्हें छत पर जाना है !
जो आसमा की आरजु रखते हैं, उन्हें अपना रास्ता खुद बनाना है !!
अपनी मर्ज़ी से भी दो-चार कदम चलने दे,
ज़िन्दगी, हम तेरे कहने पे चले हैं वर्षों।
फ़ासले घटा देते है दिल से नफरतों को
वो जो दूर हुए कुछ मुहब्बत सी होनी लगी !'
उन्हीं को मिलीं सारी ऊचाईयां
जो गिरते रहे और संभलते रहे
तू अगर मुझे नवाज़े तो तेरा करम है मेरे "मालिक" !!
वरना तेरी रहमतों के काबिल मेरी बंदगी नहीं !!
दुनिया मेरी तलाश में रहती है रात-दिन,
मैं सामने हूँ मुझ पे किसी की नज़र नहीं ..!!
यूँ तो कर लेता आपका इंतज़ार कयामत तक,
पर मौत से बचाने वाला कोई खुदा न मिला.....
जब किसी से कभी गिला रखना *********
सामने अपने आईना रखना !
यह आसूं
वक़्त बे वक़्त मेरी आखों मैं
टहलने चले आते हैं
ख़ुशी हो या गम
मेरा पूरा साथ निभाते हैं
हम तेरे अपने हैं
ये जताने चले आते हैं.
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